मंगलवार, 22 मार्च 2011

मेरी खरीदारी भैंस की .....!




मंगलवार का दिन, सोचा पुराने दोस्तों से मिलूँगा और थोड़ी गप-शप होगी...लेकिन उससे पहले ही एक स्कूल के समय दोस्त ने घंटी मारी मेरे मोबाइल पर ...और बोला में घर आ रहा हूँ,...मैंने सोचा क्या हुआ कहा आजा...एक घंटे के अन्दर आ गया.....गेट के बाहर गाडी रुकी तो टाटा शियारा...मैंने पुछा इस हाथी को लेकर कहा जा रहा है...? जवाब मिला कही ना ...यार बाबू ने अज तडके तडके लठ मार दिए मेरे.....मैंने पूछा क्योँ ? बताया कि कई दिन हो गए हैं घर में भेंस नहीं हैं...प्लाट खाली पड़ा है....और दूध नहीं मिल रहा है ....मज़ा नहीं आ रहा है और भेंस के खोज में निकल आया हूँ...भाई अगर ना मिली तो बाबू मेरे घर में घुशना दूभर कर देगा.....मैंने कहा फिर...?फिर क्या चल मेरे साथ....मैंने कहा भैया मैंने भेंस देखी है, जानता भी हूँ, दूध भी पिया है लेकिन ये भेंस खरीदने में कभी जिंदगी में नहीं गया, और ना मुझे इसकी जानकारी है...क्यूंकि सुना है आजकल अच्छी भेंस काफी महँगी आती है.....और क्या देखना है भेंस में हम कैसे जानेंगे ....किसी ने बेवकूफ बना दिया तो...और कैश भी साथ लेना रिस्की है...कहाँ- कहाँ घूमेगा॥?बोला तू बैठ...एसी चला दूंगा गाड्डी में......टीवी है, लप टॉप है गाने हैं...दारू भी है....जो कहेगा सब मिलेगा मगर चल पड़ ॥टंकी फुल कर दी गुस्से में मैंने..आज..मैंने पूछा पैसे कितने लाया है ...? उसने बताया उसकी चिंता मत कर....घणे हैं [मतलब काफी हैं ] ...ओके , चल दिए भैंस खरीदने......

चल पड़े बाहिरी दिल्ली के नांगलोई के पास एक गाँव था....जो हरयाणा सीमा के पास पड़ता है....गाँव के बहार जोहड़ था...बड़ा सा तालाब जिसमे भेंस और इंसान दोनू नहाते हैं और खुश रहते हैं...उसने राम राम करी ...फिर बताया कि गंजे का घर कौन सा है....मैंने पूछा ये गंजा कौन है..उसने कहा कि मेरा जानकार है दोस्त है....अच्छा ...मैंने कहा यार ऐसे क्योँ बोल रहा है कोई नाराज होगा तो...बोला यार जाट ऐसे ही बोलते हैं...आराम से बोलेगा तो पिट जायेगा .. या फिर गाँव वाले के समझ नहीं आएगी ....मैं चौका....एक ब्यक्ति ने बताया कि चोपाड़ के पास घर है उसका घर ...गोबू दादा का नाम पूछ लिओ....! मैंने कहा भाई ये हाथी तू ले आया और गाँव के अन्दर जा भी पायेगी..कहीं फस गई तो? बोला ना ना , ना फसेगी.....मैंने कहा यहीं खड़े कर देते हैं....नहीं माना...! चले गए तो मिला गंजा....मगर शुक्र है उसके सर में बाल थे... ! घर में बुलाया उसने...हाथ भी मिलाया....थोड़ी देर में २ गिलास दूध स्टील के भर के आये...मैंने भी जैसे तैसे पी लिया ...मेरे दोस्त ने भी पिया..फिर उसने अपने फ़ोन से फोन किया...और पूछा घर पर है के? वहां से जवाब आया हाँ आया जा....चल दिए पैदल...उसके घर पर जिसके घर पर भैंस थी...राम राम हुई.फिर देखि भैंस....भैंस काली थी..........!मेरे दोस्त ने पूछा कितना दूध है...मतलब कितनी दूध देती है....अधेड़ उम्र का आदमी जिसके पैर गोबर में सने हुए थे....और कुरता पहना हुआ था लेकिन पैजामा नहीं ............सिर्फ कच्छा ! शकल से पढ़ा लिखा नहीं लग रहा था...लेकिन भैंस कि बात बताने में डिग्री होल्डर लग रहा था...उसने बताया १५ किलो देती है....लात भी नहीं मारती....पूछ भी नहीं मारती....और सींग भी ....हाथ मरना पड़ता है बस....चुन्घाना भी नहीं पड़ता, मतलब उसके बच्चे को थोड़ा दूध पिलाना पड़ता है दूध निकालने से पहले...वो भी नहीं करना पड़ता है...मैंने सोचा बेचारा बच्चा ...फिर उनकी बात हुई मेरे दोस्त ने पूछा कितनी बार बच्चे दिए हैं इसने..? उसने बताया कि यह दूसरी बार है....पहली बार वाला बच्चा बड़ा होकर कहीं बेच दिया ...कहीं और बाप बन गया होगा या फिर किसी के पेट में चला गया होगा...अगर कसाई के घर गया होगा तो...मैंने तो बेच दिया था...५००० में..! दोस्त ने पूछा ये बताओ क्या खिलाना पड़ता है ...उसने बताया खड, बिन्दोले, हरी घाष, और तुडा....अच्छा मारती भी है क्या? उसने कहा नहीं .....पैर भी मारती है क्या उसने कहा नहीं, इधर उधर करती है कभी कभी .........मतलब लात मारती है क्या...हे भगवान् ! कैसे कैसे टेक्नीकल शब्द हैं........चल पड़े भैंस खरीदने...!

उसने बोला कीमत ? ५०,००० रुपये...! दोस्त ने कहा नहीं थोडा ठीक लगा लो.....और दोस्त ने शिकायत भी कि इसके सींग दिखने में सुन्दर नहीं हैं.....सीधे- टेढ़े हैं...मैंने चौंका..ऐसा भी होता क्या..सींग भी दूध देते हैं क्या ..........ख्याल आया ..वो नहीं माना बोला एक पैसे कम नहीं ...कती नहीं ..२ महीने हुए हैं ब्याई हुए...अगर लेना है तो लो..नहीं तो छोड़ दो....अच्छा ! मेरे दोस्त अच्छी नहीं लगी.....निकल पड़े वहां से.....उसको भी साथ ले लिए...दुसरे के पास गए उसी गाँव में..नहीं मिली ना बात बनी वहां ........साथ वाले गाँव में घुसपैठ की ...देखि भैंस... वही इंटरबू वहां भी हुआ.....भैंस का....अब भैंस तो बोल नहीं सकती इसलिए भैंस के मालकिन से हुआ...वहां महिला थी.....उसने बताया कि पति देव कार्यालय गए हैं...ड्राइवर हैं डीटीसी में, और कीमत है ४०००० रुपये....दूध १३+ किलो..!बोली बाकी मेरे हजबैंड से बात कर लो...मगर एक बड़ा अजीब प्रश्न पूछा मेरे दोस्त के दोस्त ने....कि गोबर कितना करती है.........उफ्फ्फ्फफ्फ़ मैं बोला भाई तुम लोग भैंस खरीदने आये हो या गोबर ? तुम्हे भैंस और उसके दूध से मतलब है न ? बाकी क्या लेना....बोले भाई यो बात ना होती..गोबर तै भी रेट लगे हैं भैंस के ..मेरा तो दिमाग काम करना बंद कर गया यह सब सुन देख कर...दिमाग के अन्दर हाई स्पीड तरंग दौड़नी लग गई...अब समझा आया अँगरेज़ क्योँ नहीं पालते भैंस... मैंने कहा जो करते हो करो.....मैं भी कह दिया अच्छी हैं भैंस..ले लो....महिला बोली हजबैंड आवेगा तो दूंगी ऐसे नहीं..उसको फ़ोन मिलाया वो कहीं जाम में बस ले कर फस था...जोर से चिल्लाया उतर ले ने....सवारी उतर रही होगी मगर फोन इधर से गया था...इसलिए स्पेअकर में सुनाई दे रहा था....बोल्या के हुआ..? वो बोली ४० देवे सें ये....वो बोल्या दे दे.....पैसे गिन लिओ....बाबु को बुला लिओ....बोली ओके....मतलब ससुर को....ससुर जी आये...लठ के सहारे...राम राम श्याम हुई...महिला ने मुह छुपा लिया....रेस्पेक्ट में....ससुर के लिए...पैसे निकाले बुजुर्ग के हाथ में रख दिए...उसने गिने और अपने चादर में ले लपेट कर ले गया अन्दर ....बोल्या ले जाओ..और इसके साथ फ्री है यो कटड़ा ..भैंस का लड़का..दोस्त ने कहा ठीक से ताऊ ! दोस्त ने भैंस के पीठ में हाथ मारा ...और अपने दोस्त को कहा कि टेम्पो करवा...जिसमे ले जाया सके भैंस को ....बस आ गए वहां से...मैंने कहा भाई भैंस करीद ली तुने ..अब पार्टी ? बोल्या डबल दूंगा भाई....मगर भैंस खरीदने जाना गजब का अनुभव रहा...! मुझे वोर्क्शोप में जाना था..मैंने कहा, भाई मुझे मेट्रो के नजदीक छोड़ दो..तुम निकलो....मेरा दोस्त इतना खुस हुआ मैंने कभी नहीं दिखा उसे पहले ....पिता जी के लठ से बच गया....और मालिक १० करोड़ का .........साड़ी ज़मीन बेच खाई उसने और उसके बाप ने दिल्ली में अपने गाँव में ....! में रास्ते में सोचता रहा भगवान् ने कैसे लोग बनाए हैं और कहा कहाँ क्या कर देता है......तब सोचा क्योँ स्कूल में प्रस्ताव भैंस का जब लिखते थे तब गाय हमारी माता है लेकिन भैंस नहीं है लिखते थे...अब समझ आया....कुल मिला कर ,मेरा भारत महान !

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