सोमवार, 12 नवंबर 2012



मित्रों,
दीपावली पर आप सभी लोगों को बहुत बहुत शुभ कामनाएँ, दादी-अम्मा का देहांत की वजह से इस वर्ष दीपावली नहीं मना पा रहा हूँ, लेकिन आपके प्यार को देखते हुए अत्यंत ख़ुशी हुई। इस वर्ष गौर करूँ तो फेसबुक के छाती पर और मोबाइल के दिल रूपी इनबॉक्

स में अनगिनत मित्रों के बधाई सन्देश घुश आये हैं, ऐसी हिमाकत आप लोग ही कर सकते हैं जो मुझे बुरी नहीं लगती बल्कि ख़ुशी देती है !यह हम लोगों का ख़ुशी का त्यौहार है, दीप का त्यौहार है, इसी मौके पर हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए दीपावली अपनी नहीं बल्कि पराई होती है।उनके लिए यह एक आस, एक उम्मीद बनी रहती है हमेसा !उनके लिए कुछ ज्यादा कर तो नहीं सकते लेकिन उनका दर्द तो बाँट ही सकते हैं कुछ पंक्तिओं के साथ .. डॉक्टर नागेश पाण्डेय 'संजय' की कुछ पंक्तियाँ उन लोगों के नाम समर्पित हैं, मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ। उम्मीद है आपको पसंद आयेंगी उनकी ये पंक्तियाँ, शीर्षक है कैसे दीपावली मनाऊं ?
कैसे दीपावली मनाऊं?

कैसे दीपावली मनाऊं?
पास नहीं अम्मा के पैसे,
बापू की तबियत खराब है।
हुई उधारी बंद हर जगह,
कर्जे का भारी दबाव है।
घर के बर्तन बेच-बाचकर
कल का खाना गया बनाया।
जिसको हम लोगों ने मिलकर-
गिन-गिनकर कौरों में खाया।
अम्मा भूखी सोयीं बोलीं-
‘‘मुझे भूख ना, मैं ना खाऊँ।’’
कैसे दीपावली मनाऊँ?
नहीं मदरसे जा पाएँगे
भइया, उनका नाम कट गया।
दादी, को कम दिखता, उनका
बुनने का था काम, हट गया।
दीवाली के दीप बनाकर,
मैंने पैसे चार कमाए।
आशाओं के पुष्प खिले थे-
मन में, जितने, सब मुरझाए।
अपने आँगन भी दमकेंगे-
दीप ख़ुशी के मन झुँठलाऊं
कैसे दीपावली मनाऊँ?

किशोर - कविता : डा. नागेश पांडेय 'संजय'

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