शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
HAPPY NEW YEAR 2011
बुधवार, 15 दिसंबर 2010
पाकिस्तान में पत्रकार की गोली मारकर हत्या--
सोमवार, 13 दिसंबर 2010
घर में बीबी के 72 टुकड़े, फिर भी शांति ?
पेशे से सोफ्टवेयर इंजीनियर,राजधानी दिल्ली का रहने वाला है, और उसकी पत्नी भी दिल्ली के द्वारका इलाके कि रहने वाली.....बताया जाता है कि राजधानी देहरादून में ये पिछले कई सालों से रह रहे थे...११ साल पहले प्रेम विवाह करने वाले इस युगल के पास सब कुछ होते हुए भी पता नहीं किस चीज़ कि कमी थी कि इतना बुरा खुनी खेल अपने ही घर में खेल रच डाला.....वो भी उस सख्स ने जो आज के सामाज में पढ़ा लिखा है और एक कुशल प्रोफेसनल ! मैं भी द्वारका में था....घर पर सुबह जब पता चला कि सामने वाले अपार्टमेन्ट के बहार मीडिया के लोग आये हुए हैं...तो पता चला कि देहरादून में हुए क़त्ल कि कहानी के पीछे सामने वाले अपार्टमेन्ट में रहने वाले एक परिवार के साथ लिखी गई है....मैं भी गया...हमारे भी रिपोर्टर आये थे..सभी पत्रकार आये हुए थे....लोग पूछ रहे थे क्या हुआ ..कैसे हुआ ....कब हुआ .....आदि...मगर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि इंसान क़त्ल कर सकता है लेकिन इतना बुरा क़त्ल वो भी अपने परिवार के सदस्य का और वो भी अपनी पत्नी का....जीने मरने कि कसम जिसके साथ खाई हों...जिसे पत्नी माना हो.....रिश्ते नाते कहा रहे..?
क्या इंसान इतना पापी हो सकता हैं....जिस समाज में जन्म लिया है तो उस समाज को इसको समझना भी होगा....आंखिर ऐसा क्योँ हो रहा है...आंखिर हिन्दुस्तानी समाज जो विश्व में मिशाल के साथ पेश होता है ...उसके ऊपर प्रश्न उठने लग गए हैं....अगर ऐसे ही घटना देखने को मिलती रही तो ..वो दिन दूर नहीं जब लोग सामाजिक नहीं बल्कि एक दुसरे के खून के प्यासे हो जायेंगे...और कुछ कुछ ऐसा दिखने भी लग गया है...जो भी हुआ वह अचंभित करने वाला तो था ही. खास बात यह कि जो इंसान अपनी बीवी का क़त्ल करके घर में फ्रिज में तीन महीने रख सकता है और फिर उसी घर में रह भी रहा है....वो इंसान नहीं राक्षस है..इसमें कोई दो राय नहीं है....क्राइम के कई घटनाएं होती,दिखती रही हैं...क्राइम के एंगल से देखे तो यह घटना क्राइम के लिए एक अलग चैप्टर भी लिख गई ..!
विपक्ष बोला जेपीसी, सरकार बोली 'नो'!
नौ नवंबर से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में पहले दिन को छोडकर हंगामे के कारण दोनों सदनों में प्रश्नकाल नहीं हो पाया। इस पुरे मसले पर जिसे 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन भी कहा गया है...इसमें हुई अनियमितताओं के चलते सरकारी खजाने को हुए कथित एक लाख 70 करोड रूपए के नुकसान हुआ है...इसी को लेकर विपक्ष मांग कर रहा था मगर पूरे शीतकालीन सत्र पर पानी फेर दिया... इस सबके लिए कौन जिम्मेदार होगा...कौन और किसकी जवाबदेही होगी....और जो खर्चा हुआ वह क्या वाजिब है...?आंखिर आम जनता ने यह सोच कर संसद में नेता को भेजता है की वह वहां पर लोगों की समस्या और देश के विकाश को लेकर आवाज उठाएगा और फैसले लेंगे...लेकिन सब बेकार....संसद के इस सत्र को चलाने में करीब डेढ अरब रूपए का खर्चा आया जबकि दोनों सदनों में 32 बैठकों के दौरान मुश्किल से दस घंटे बैठक चली, वो भी भारी हंगामे और नारेबाजी के बीच...अगर ऐसा ही होता रहा तो आने वाले समय में इसके बुरे नतीजे हो सकते हैं...क्यूंकि आम जनता खामोश नहीं बैठेगी !
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010
आंखिर सरकार तीन साल तक क्योँ सोई रही ?
सोमवार, 6 दिसंबर 2010
मैं तेरा राजा तू मेरी रानी..बेटा चाहिए तो चलो फतेहपुरी सीकरी...
स्पेस तकनीकी पर फ़्रांस के साथ समझौते हुए....ज्यादा तवज्जो नहीं मिली...रक्षा मामलों में कई समझौते हुए वो भी ऐसा ही रहा...सार्कोजी मंच पर बीच बीच में कंधे उचकाते नज़र आये...ऐसा इसलिए सायद हिंदी वो जानते नहीं अंग्रेजी उन्हें आती नहीं ....वहां पर कोई दुभाषिया भी नहीं था ना ही ट्रांसलेटर- कम- इयर फ़ोन....कुल मिलाकर उनका दौरा बड़ा रोचक रहा है अभी तक....ब्रूनी को तो सिर्फ ताज देखने में मशगूल थी....और शायद लगता भी है की सरकोजी को बोला हो मुझे ताज दिखाओ....! में कुछ नहीं जानती बस ! सार्कोजी ने सोचा होगा की वैसे तो जाया नहीं जायेगा दल बल के साथ और पत्नी के साथ जाया जाये..और ओबामा भी कुछ दिन पहले गए थे और यह मौका भी अच्छा है......ब्रूनी के साथ वह फतेहपुरी सिकरी भी गए..मजार पर भी गए....हमारे यहाँ एक बात गोरों को सही ढंग से बेवकूफ बनाया जाता है....बेटा मांगने के लिए फतेहपुर सिकरी पहुच गए...इतिहास में लिखा हुआ है फलाना राजा गया था...बेटा माँगा था और मिल गया...ये भी चल दिए मांगने केलिए....जबकि गोरे बेटा या बेटी वाले मसले पर कम ही बिलीव करते हैं.......जो हो गया जो पैदा हो गया चलेगा....वही गिफ्ट होता है..क्योँ की कुछ समय बाद तो तलाक लेना और देना होता है न ? जिंदगी भर के लिए जोड़ी तो बनती नहीं है ....अब देखना यह है की बेटा कब होता है..अगर जल्द हो जाता है तो फतेहपुरी सिकरी 'बेटा देना वाला एक BRANDED जगह बन जाएगी ' और फिर देखो गोरों के साथ देशी जोड़ों की भी लाइन लग जाएगी वहां पर....ताज को फिर जलन होगी....!
खैर सार्कोजी और ब्रूनी की प्रेम कहानी कोई ट्विस्ट से कम नहीं है....बीच में टूटने के कगार में पहुच चुकी थी...शुक्र हैं हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं है वरना 'राजनीतिक भंवर ' आ जाता ....मगर एक राष्ट्रपति हो कर भी प्यार कर सकता है और अपनी प्रेमिका के साथ घूम सकता है ....कितना और कैसे टाइम मिल जाता है यह देखने वाली बात है...खैर.....दिखाने केलिए एक दिन एड्स मरीजों को देखने के लिए ब्रूनी सफदरजंग हॉस्पिटल भी गई....वो भी इसलिए क्यूंकि उनके भाई की भी एड्स से मौत हुई थी....बाकी उनको प्रोटोकोल से भी लेना देना नहीं...उनका चलना..हाव भाव...बोलना सब मस्त और अपनी मर्जी का...कोई प्रोटोकोल की परवा नहीं..खैर ये उनका अपना निजी और सरकारी दोनू तरह का मसला था...अंत में जायेंगे वह मुंबई हमें में मारे गए लोगों को सुमन अर्पित करने ...वो भी आखरी दिन...प्रधान मत्नरी की मीटिं भी बाद पहले ताज देखंगे..फिर बेटा की मुराद पूरी होगी...वो भी फतेहपुरी सिकरी में....मज़े की बात तो यह हुई ..जिस दिन ताज देखा... उसके दूसरे दिन बताया गया कि फिर से ताज देखेंगे .फिर फतेहपुर सिकरी जायेंगे...
लेकिन हमारे रिपोर्टर के उस होटल के गेट के बाहर खड़े-खड़े पेट में चूहे कूदने लगे मगर सरकोजी और ब्रूनी नहीं निकले होटल से बाहर...मैंने रिपोर्टर से पूछा निकले बाहर ...?मगर उधर से जवाब आया नहीं ! अंत में दोपहर ३ बजे के आस पास बड़ी मुश्किल से निकले..तब तक होटल में पता नहीं क्या कर रहे थे....शायद मुमताज़ और शाहजहाँ कि कहानी सुनने और सुनाने का काम कर रहे होंगे..फिर सीधे चल दिए बेटा मांगने फतेहपुरी सिकरी !.....मगर एक बात समझ से परे है वो यह कि मुराद किसने मांगी होगी सार्कोजी ने या फिर ब्रूनी ने.....दोनू मांग नहीं सकते एक साथ....? मगर एक बात है राष्ट्रपति हो तो ऐसा..! खैर खुदा का शुक्र है ब्रूनी ने यह नहीं कहा चलो खजुराहो..फिर तो क़यामत ना आ जाती...? मगर इस सबका केंद्र बिंदु रहा फतेहपुर सिकरी के दिन लगता है अब फिरने वाले हैं ?
रविवार, 31 अक्टूबर 2010
कब सुधरेगा इंडिया... भ्रस्ट देशों में 57 नंबर पर !.....
सोमवार, 25 अक्टूबर 2010
अमृत खीर दिल्ली की सडकों पर.....!
रविवार, 3 अक्टूबर 2010
खेलों का मेला राजधानी में शुरू....!
गेम्स की तैयारियों में जुटी ऑर्गनाइजिंग कमिटी के पास खुश होने के लिए अब कई कारण आ गए ..... बाहर से आने वाले लोगों को गेम्स विलेज काफी भा रहा है ऑस्ट्रेलिया प्रेस के सहचारी जॉन ग्रटफिल्ड ने बताया कि गेम्स विलेज काफी अच्छा है और हमारे एथलीट काफी खुश ... पहले ओलंपियन और पाकिस्तानी हॉकी टीम के मैनेजर मुहम्मद जुनैद ने कहा कि यह काफी प्राइड की बात है कि एक एशियन देश कॉमनवेल्थ जैसे गेम्स को पहली बार करवा रहा है।
गौर फरमाएं तो गेम्स विलेज 63.5 हैक्टर में फैला हुआ है और इसमें 34 रेजिडेंशल टॉवर हैं इसमें 1,168 अपार्टमेंट हैं, जिसमें 4,008 बैडरूम हैं। काफी गेस्ट विलेज को अपने घर की तरह अपना चुकें .... इसमें गेल्ट्स के लिए छोटी-छोटी फेसलिटी का भी ध्यान रखा गया है.... यहां पर पोस्टल सर्विस, एटीएम, बार, बैंक, हैंडीक्राफ्ट, स्पा और भी कई जरूरी चीजों का ध्यान गेस्ट के लिए रखी गई है। विलेज में प्लेयर्स एक साथ मस्ती करते और बात करते भी आसानी से दिख जाते हैं .... कई ऐसे खेल भी है जिनके कॉम्पिटिशन ओपनिंग सेरेमनी के बाद होंगे ऐसे प्लेयर्स बाद में गेम्स विलेज में आ सकते हैं ..... गेम्स वेन्यू के पास सिक्युरिटी का भी काफी ध्यान रखा गया है। अच्छी सुरक्षा दिख रही है..दिल्ली में ब्लू लाइन बस बंद होने से ट्राफिक तो स्मूथ चल रहा है, इतना जाम नहीं लग रहा है जितना पहले लगा करता था...और सड़कों पर डिसिप्लिन भी देखने को मिल रहा है.....
शनिवार, 11 सितंबर 2010
देव भूमि दर्शन.......संख्या-1
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
वादियाँ तेरा दामन......!
आपका अपना
एम्एस
बुधवार, 25 अगस्त 2010
एक सुंदरी हीरा चोर, दूसरी बनी मिस यूनिवर्स ..!
औधोगिक नगरी मुंबई में पर्दर्शनी चल रही थी.....वो भी गोरे गाँव मेन...मुंबई होंक-कोंग की कंपनी के हीरे थे..बेचारे बेचने के लिए और दिखाने के लिए लाये थे यहाँ पर......कहते हैं इंडिया में हर गली में एक चोर मिल जायेगा....वही हालत यहाँ पर भी हुई...कर दिए हीरे पार...इतनी सख्त सुरक्ष्या के बावजूद ऐसा कर पाना वो भी एक नहीं 73 डब्बे ......अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में नुमाइश के लिए रखे गए 6.6 करोड़ रुपये कीमत के हीरे फ़िल्मी अंदाज में उड़ा डाले....सब धुवां- धुवां कर फुर्र हो गए....इन महारानी के साथ चार मुस्टंडे भी थे..वो भी दुबई में धरे गए....बताये जाते हैं अब कब इंडिया आते हैं देखना होगा....हमारी पुलिस लगी होगी अब कागज़ काले करने में....इससे बढ़िया होता उनके लिए जब वे चाहते तो बच निकलते.....अगर इंडिया से नहीं निकलते.....क्यूंकि यहाँ तो धरमशाला है न?....जो भी आये स्वागत है....मेहमान हैं जी अपने !फिर चाहे संसद में हमला कर दे या फिर किसी बाज़ार में....मौत का मंज़र देखने को मिले ... ख़बरों के अनुसार जो पकडे गए हैं,, इनकी पहचान एलिवा ग्रिसेल (24),यही सुंदरी है..... कैंपोस मोलान एलियास (39), गोंजलेज मैडलोनैंडो (24) (तीनों मेक्सिको के) और वेनेजुएला के ग्युटिरेज ऑर्लैंडो के रूप में की गई है....पुलिस ने तलाशी के बाद सीसीटीवी कैमरों की रेकॉर्डिग में 1500 चेहरों में से इन चारों को शक के घेरे में पाया। लेकिन तब तक मेक्सिकन सुंदरी अपने तीनों साथियों के साथ नौ दो ग्यारह हो चुकी थी...यह तो हुई हीरे चोर की गाथा...
दूसरी सुंदरी सच में सुन्दर है....दिखने में,बोलने में,चलने में..वैसे मैंने नहीं देखी उसकी चाल ...लेकिन ठीक ही होगी तभी तो सुंदरी बनी है...और भी बहुत कुछ में होगी...मगर सुन्दर है चेहरे पर बिना क्रीम पावडर पोते इसमें नो शक !.....वो इसलिए क्यूंकि दिमागी प्रश्न सायद इसमें काफी कुछ अहमियत रखता है....खैर अय्याश शहर के नाम से जाने वाला नवेदा...लास वेगास में हुए रंगारंग समारोह में मेक्सिको की जिमेना नवारेत्ती के सर में छोटा सा मुकुट रख दिया गया...और बन बैठी मिस यूनिवर्स ! वहीं मिस जमैका, येंदी फिलिप्स को फर्स्ट रनरअप और मिस ऑस्ट्रेलिया, जेसिनता कैम्पबेल को सेकंड रनरअप चुना गया है....मतलब दूसरी और तीसरी....! हमारे मुल्क की भी एक सुंदरी गई थी...सायद विदेशी पानी राज नहीं आया...और पंद्रह सुन्दरियौं में भी जगह नहीं बना पाई...अब उसके लिए मुश्किल यह है कि नाटकों में रोल मिल पाते हैं या नहीं ....कुल मिलाकर दो सुंदरी दोनू मक्सिको की....फर्क सिर्फ इतना है एक सुंदरी जेल में क़ैद में और दूसरी ब्रह्माण्ड में घूमेगी.......!
रविवार, 22 अगस्त 2010
भगवान् दर्शन को गए, लेकिन भगवान् सन्डे मनाने गए..!
हम भगवान् के दर्शन के लिए गए... लेकिन दर्शन नहीं हुए....वाह रे नसीब वालो ....भगवान् भी रविवार होने के कारण विश्राम कर रहे थे.. .और हमें दर्शन नहीं दिए... मगर सबसे बड़ी बात.... हम उदास नहीं हुए बल्कि प्रण कर के आये कि फिर आयेंगे और दर्शन कर के जायेंगे........फिर किसी दिन भगवान् मिलन की भयानक योजना अमल में लायी जाएगी......योजना कार के अन्दर बनेगी.....ड्राइव करते हुए क्यूंकि अमूनन वही हमारी बातचीत करने की सबसे अच्छी और महफूज जगह होती है...और सकूँ से हम ड्राइव करते-करते देश दुनिया प़र तर्क वितर्क,ख़बरों की चीड-फाड़ कर इस नवाबी,अंग्रेजी,और मुगलाई शहर के साथ हमराह होते हुए कार्यालय तक पहुच जाते हैं....चलो सोचा आपके साथ भी शेयर करूँ....
नंबर प्लेट गड्ढे के कब्र में दफ़न हो गई है....अब वो नयी बनवानी है..जय हो एमसीडी की...जय हो गड्ढे की...वो इसलिए की एक दिन की छुट्टी तो मिली...योगिंदर को बोल रखा है वो बनवा के रखेगा, लगवा कर चल पड़ेंगे..लेकिन महिपालपुर पहुचे... तीनों मिले भी ..नंबर प्लेट नहीं मिली...पंडित जी को समय नहीं मिला...और हमें लगवानी पड़ी....लगवाई वो भी...रास्ते में रविवार होने की वजह से ट्राफिक भी कम था...ऑफिस के नजदीक पहुचे तो हमारे पास पूरे पैन्तालीश मिनट थे...मंदीप बोला चल कहीं चलते हैं टाइम बचा है ....उसे पहले ऑफिस के अन्दर जाना पसंद नहीं है...सर में दर्द हो जाता है...कारण कई हैं...वो जानता है या में जानता हूँ....तीन बजे की ड्यूटी है........तीनों ३ बजे उंगली लगाने के चक्कर में आराम-आराम से ऑफिस जा रहे थे...लेकिन हमारे पास ४५ मिनट बाकी थे... और मंदीप बोला चल कही चलते हैं...टाइम है अभी...मैंने आईडिया दिया इस्कोन मंदिर चलते हैं...दिल्ली में इकलौता मंदिर है..और सुना है भगवान् वहां पर अंग्रेजी में बोलते हैं...विश्व प्रसिद्ध भी है...बड़ा मन कर रहा था देखने को काफी सालों से...पिछले २ सालों में हज़ार चक्कर काट चूका हूँगा मंदिर के आगे पीछे... मगर अन्दर जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका..लगता है भगवान् ज्यादा ही नाराज़ हैं..सोचा नजदीक भी है... और में भी कभी पहली बार दर्शन कर के आऊंगा ..भगवान् के दर्शन भी हो जायेंगे..वह भी नहीं गया था...पंडित जी परिवार वाले हुए इसलिए वो पहले हाथ मार आये थे..और हमारे लिए अच्छा भी था.....कोई तो होगा जो रास्ता बतायेगा....लवर बॉय के दर्शन करने को .....! गया तो पहले तो सोचना पड़ा कि कहाँ कार पार्क की जाए?..मुश्किल से पार्किंग ढूंढी...क्यूंकि रविवार होने की वजह से ज्यादातर जगह खाली थी....हम भी कम नहीं थे सीधे गाडी ले गए ऊपर पहाड़ जैसी जगह पर जहाँ पार्किंग के लिए पर्ची काटने वाला प्राणी भी नहीं था...कार खडी की...मंदीप साहब ने कार की इतनी बार कटाई कर दी...में भी हैरान ...ये कर क्या रहा है..टेढ़ी, मेधी, सीधे,तिकोना, वो कोना..सब ! कोई कोना नहीं छोड़ा हाई ने.....अंडी आदमी है! [हरयाणवी में अंडी का मतलब जबरदस्त,झक्कास]...
खैर ढूँढा भगवान् का द्वार.. .मैंने पूछा कहाँ मिलेंगे भगवान् ?पंडितजी ने कहा नीचे ...मैंने सोचा नीचे तो पातळ लोक होता है ..फिर भी गए तो गेट पर काली मूर्ति थी...फिर सोचा क् कृष्ण भगवान् इतने काले तो नहीं थे...इंसान ने बना दिए होंगे...उनको नमस्ते की ! फिर आगे चले गए..देखा बाएं हाथ एक रेस्टोरेंट...! लंच, डिन्नर,नास्ता सब...पानी, नमकीन,मिठाई सब अन्दर मिलता था..लिखा तो था...अन्दर नहीं गए....सामने क्या...?एक चोटी नुमा आदमी सफ़ेद धोती पैजामा में बैठा....सामने उसने सीसे के घर के छोटे से अन्दर तीन लड्डू रखे हैं..एक मोतीचूर का...एक नारियल और एक पता नहीं काला काला जैसा था...आगे लिखा था प्रसादम ! देख के ऊपर चले गए...एक काली टी शर्ट में युवक आया ...बोला भगवान् बंद हैं...चार बजे आना...! ओए ये क्या...किस्मत...?वह बोला मुजियम देख लो....गुस्सा बहुत आया ..और भगवत गीता सुनायेंगे...हम कहाँ भगवत गीता सुनने वाले थे..ध्याड़ी पर जो जाना था, वहां की गीता कौन सुनेगा...उसने सोचा लफंगे, आवारा हैं ये.....क्या पता था कि उसे ये दोनू प्रताड़ित पत्रकार हैं....और एक लाइन मारने वाला ग्राफिक्स डिजाइनर !
गुरुवार, 5 अगस्त 2010
हाय रे बीमारी मार जात है......!
मेरी भी मुलाकात 'बिमारी' के साथ हुई ....दिन बुधवार, मेरा साप्ताहिक अवकास ! घर पर था...सोचा सोऊंगा देर में उठूँगा..लेकिन माता जी को यह याद नहीं था ...और ग्यारह बजे उठा डाला मुझे..ऑफिस नहीं जाना ? फिर थोड़ी देर में मोबाइल ने भी अपनी घंट मार कर ड्यूटी पूरी कर डाली....खैर..ममी को सूचित किया आज ऑफ है...शायद ममी जी को भी शायद सकून पंहुचा.. चलो कभी तो घर पर रहेगा यह लड़का...! लेकिन हालत ठीक नहीं लग रही थी..मंगल वार को भी हालत ठीक नहीं थी..ऐसे ही बुझे दिल से न्यूज़ रूम में डेस्क पर काम करने में लग्न रहा...खबर कोई इतनी बड़ी नहीं थी..बस एक पकिस्तान में बम्ब फटा था...नेता के परखचे उड़ गए थे..बाकी कश्मीर तो धधक ही रहा था..अमित शाह वाला केस करवटें बदल रहा था...इसलिए यही बड़ी ख़बरें थी.....बारह बजे सो कर उठा....पापा आये और ३ कागज मेरे कमरे के टेबल पर पटक कर चले गए....फरमान जारी हुआ...ये बिल भर के आना..दो घरों के बिजली के और एक पानी का ....कुल मिलाकर २०००-३००० हज़ार रुपये का अवकाश मना मेरा ....मैंने दर्द के साथ बड़ी मुश्किल से कहा भर दूंगा पापा ....बाकी मेरी हालात की किसी को फिक्र नहीं....कहते हैं न 'गरीब की बहु सबकी भाभी.... ' ममी को करवट बदलते हुए बताया मेरी हालत ठीक नहीं है...ममी ने पूछा क्या हुआ....मैंने कहा पेचिस ! वो समझ गई और मेरे लिए कुछ ऐसा बनाने के लिए चल दी जो इसमें फायदे मंद होता है....फिर देखा थोड़ी देर में पेट में ज्वार भाटा उठने लगा....फिर छोटे ऑफिस की ओर भागा....ऐसा कई बार हुआ जब तक घर पर था..फिर सोचा चल यार बिल भर के आता हूँ...बाज़ार आया तो पैसे निकाले और बिल भर के दोनूं ऑफिस में वापस भारद्वाज जी के ऑफिस में आया.......मैंने सोचा शायद ठीक हो जाऊंगा लेकिन नहीं हुआ !
शाम को ऑफिस फोन किया....अपने बरिष्ठ को की शायद में वीरवर को नहीं आ पाऊंगा...मेरी हालत पतली है...खाना भी पतला, और निकल भी पतला ही रहा था....इसलिए सोचा डॉक्टर के पास तो जाना ही पड़ेगा.....अजीब बिडम्बना है बीमार होने पर एक डॉक्टर ही ऐसा है जो खुश रहता है और उम्मीद करता है की लोग ज्यादा से ज्यादा बीमार होने चाहिए...खैर रात भर हालत पतली ही रही...एक महिला मित्र से बात हुई, वो अपने मामले के कारण परेशान थी....मगर मेरी अच्छी मित्र थी इसलिए बात कर ली..मामला सुलझ गया उसका....वो तो खुश....मगर अपनी हालत फिर पतली....बीमारी जो घुशी पड़ी थी....खैर जैसे- तैसे रात काटी...सुबह उठा तो अंकल को फोन किया....अंकल ऐसा हो गया है और आप कहा हो? अंकल ने कहा आ जा और चलते हैं डॉक्टर के पास....!
गया भारद्वाज जी के ऑफिस में ..वहां अंकल मिले....गए उनके जानकार डॉक्टर के पास...मेरे साथ गुरु जी और अभियंता साहब दर्शन जी भी गए....कुल मिलाकर दल बल के साथ चल दिए हम ..खुद हम बीमारी का कुछ नहीं कर सकते हैं...लेकिन डॉक्टर के पास हम चारों गए.....पिछली गली में ही डॉक्टर टुटेजा जी का अभुत्पुर्ब क्लिनिक था....अभूत्पुर्ब इसलिए उसके आगे पीछे इंसान को खुश करने की चीज़ों की दुकाने थी ...बोले तो साइकल झूले....खिलोने....और बीच में टुटेजा जी की क्लिनिक ...सुई घुसोते रहते हैं मरीजों को ...वाह रे इंडिया ! क्या जगह है क्या काम है..............!
बुधवार, 21 जुलाई 2010
राजनीतिक हंगामा या फिर टीवी के लिए तमाशा?
कोई विधायक धरने पर बैठा है तो कोई विधायिका गमले तोड़ रही है....वो भी एक नहीं दो नहीं पूरे पंद्रह गमले चकना चूर कर दिये...बेचारे फूल...पौधे...उनका क्या कसूर था ...फूल पौधे के लिए आवाज उठाने वाले 'पेटा' वालों को भनक नहीं लगी ?..और जो गमले तोड़े उनका नुकशान? ... और बेचारे कुम्हार की मिटटी का खुले आम बलात्कार हो रहा था..पटना विधान सभा की सीड़ीयौ में....वो भी खुले आम...! दुर्भाग्य था की पुलिस...गार्ड सब देखते रहे और पंद्रह गमले तोड़ने दिए...विसुअल्स तो एक गमले में ही बन पड़ते...पिछली रात को लालू को विधान सभा परिशर में जाने की अनुमति नहीं दी गई..बस क्या था अगले दिन बिदक गए..कर डाली प्रेस कांफेरेंसे...अब लालू की प्रेस कांफेरेंस हो और मीडिया का तेल ना फुके..ऐसा कैसे हो सकता है...मैराथन प्रेस कांफेरेंस कर डाली...ये होता है लोगों को दिखाने के लिए की हम अभी जिन्दा है और चुनाव नजदीक हैं...और हम क्या कर सकते हैं...कैसे कर सकते हैं और किस तरह की उल्टी सीधी हरकतें कर सकते हैं .....टीवी पर देख लो...वाह रे इंडियन पोलिटिक्स !.....
ओमामा के 'सफ़ेद हाउस' के गमले तोड़ के दिखाओ ना? पता चल जायेगा....खैर...ये सोची समझी योजना है नेताओं की ...चुनाव सर पर हैं और लोगों को चेहरा दिखाने के लिए कुछ ना कुछ ऐसा कर डालो ...जिससे सरकार भी घिरे..और टीवी पर हम भी दिखे....क्यूंकि अब गाँव देहात में जाने पर जनता नेताओं को घास नहीं डालती है..बस २१ इंच के 'टीवी बॉक्स' में सब कुछ कर डालो....वोट जनता दे ही देगी...वहीं से....लेकिन जो हर काटें देखने को मिली वो शर्मसार करने के लिए तोक्तंत्र को काफी है...फिर चाहे अन्दर सदन में चप्पल फैंक लो या बहार गमले फोड़ लो.....और बिहार में तो अभी शुरुवात है...चुनाव से पहले देखते जाओ क्या क्या विसुअल्स देखने को मिलते हैं...हालांकि ६७ विधायक सस्पेंड कर दिए गए..लेकिन क्या यह सजा उचित है...?बड़ा प्रश्न है..?
समय का तकाजा है, नेता लोगों को 'सभ्य' होने का बिल सदन में जल्द पेश हो...नहीं तो आने वाले दिनों में नेताओं के बीच जूतम पैजार या फिर गमला तोड़ प्रतियोगिता शुरू हो सकती है.....
गुरुवार, 15 जुलाई 2010
आंखिर रुपैया हुआ चिन्हित....
देशी शब्दों में कहूँ तो 'निक नेम' चुन लिया गया लेकिन यह आधिकारिक नाम या चिन्ह होगा....लेकिन इसकी जो प्रक्रिया रही वो बहुत सोचने वाली है..पहला इतना समय क्योँ लगा? दूसरा जो प्रक्रिया थी क्या वो उचित थी ? तीसरा जिन पांच मंत्रियौं ने इसको हरी झंडी दी क्या उनको ये अधिकार है? या फिर क्या अधिकार दिया जाना चाहिए था? क्या और कोई प्रक्रिया हो सकती थी? और यह आम लोगों के रुपये से जुडा मसला था...और हर एक हिन्दुस्तानी से जुड़ा मसला था....हिन्दुस्तानी मुद्रा का सवाल था....अच्छी बात है प्रतीक होना....प्रतीक अच्छा है...उस पर सवाल नहीं उठा रहा हूँ ...लेकिन जो प्रक्रिया थी ये उचित थी? इस पर सवालिया निशाँ खड़े होते हैं....ठीक है आम आदमी से डिजाइन मंगाए गए थे जो अच्छी बात थी ...और जो राशि रखी गई थी वो बहुत कम थी....इतने महत्वपूर्ण मामले पर जिस इंसान का डिजाइन चुना गया उसको एक अच्छी राशि या अन्य सुबिधा तो सरकार दे सकती थी..... जहाँ तक प्रतीक की बात है वो सुन्दर है..देवनागरी लिपि से जुड़ा है..और हिंदी और इंग्लिश दोनू का साझा डिजाइन है..और एक लाइन पंक्ति के रूप में डाली हुई है...जो देवनागरी लिपि या फिर हिंदी भाषा में डाली जाती है....
बधाई उदय कुमार जी को..जो आई आई टी गुवाहाटी में असिस्टैंट प्रोफ़ेसर के पद पर शुक्रवार को ज्वाइन करने जा रहे हैं....
सोमवार, 12 जुलाई 2010
बारिस ने दिल्ली को रुलाया ...
सबसे पहले तो रेड लाईट बंद हो जाती है....पुलिस वाले अपने बिलों में भाग खड़े होते हैं...अब ट्राफिक को देखे कौन....बाकि नेता सरकार...सब बारिस के नाम का घूट पी कर लोट -मोट हो जाते हैं....बाकि जनता कीड़ो मकड़ों के साथ खेलती..अठखेली करती हुई...जैसे तैसे घर पहुचते हैं दिल्ली वासी...ऊपर से बिजली दीदी अपने घर चली जाती है...वो भी रूठ कर...ये हालत है दिल्ली की अभी...कहते हैं आदर्श शहर बनायेंगे....ख़बरों में देखा पढ़ा कई बार बार इस शहर का नंबर रहने वालों शहरों में आया कई बार बुरे शहरों में..तारीफ भी हुई... बुराई भी ...फिर भी दिल्ली नहीं सुधरी....मेट्रो भी आई...रोड भी चौड़े हुए...लेकिन बारिस में जगह जगह पानी भर जाता है....जगह जगह इंसान खुद को परेशान पाता है...बारिस के लिए सड़कें छोटी हो जाती हैं...
ड्रेनेज सिस्टम यहाँ की कब सुधरेगी कहा नहीं जा सकता है..जब देखो प्लास्टिक के बैग यहाँ जहाँ तहां पड़े मिलेंगे....जो इन ड्रेनेज सिस्टम को बिलकुल ख़तम कर देते हैं....खैर...काफी गर्मी के बाद कुछ तो रहत मिली....दिल्ली वासियौं को...अब अगले दिन अगर धूप निकल आई तो सब लोग पसीना में नहायेंगे....अल्टरनेटिव रास्ते ढूँढने होंगे.....कुल मिलाकर देखा जाए तो बारिस ने पांच लोगों की जिंदगी ले ली....और बाकी तो लोग यहं वहां पानी ही पानी देख कार लोग रो रहे हैं....मुझे अभी घर जाने की चिंता सताए जा रही है..अभी रात के बारह बजने जा रहे हैं और रास्ते में अगर पानी भरा होगा तो परेशानी हो सकती है......लेट्स होप फॉर दी बेस्ट !
रविवार, 11 जुलाई 2010
ऑक्टोपस का कप या फिर फुटबाल का वर्ल्ड कप?
फुटबाल के महाकुम्भ २०१० का आज अंतिम दिन है......और दो टीमें फाइनल में आपस में भिड़ेंगी...हौलेंड जिसे नेदरलैंड भी कहते हैं और स्पेन जो यूरोपियन चैम्पियन भी है....स्पेन के खेल को देखकर लग रहा है वो जीतेगा....लेकिन होलैंड भी छुपा रुस्तम निकल सकता है....और भाग्य ने थोड़ा साथ दिया तो स्पेन के लिए खतरा भी हो सकता है....स्पेन के लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर थोडा दवाब रहेगा वो भी उस पुलिस वाले रेफरी का...जिसने पहले भी उल्टे सीधे फैसले दे कर स्पेन को लाल पीला कर दिया था...और आज भी वो लाल पीले कार्ड दिखाकर अपना पुलिसिया खौफ इस खेल में दिखाकर होलैंड के पक्ष में कर सकता है....और इस लातम-लात खेल में किसको लात पड़ेगी ये भी देखने लायक होगी...
वहीं होलैंड भी हमले करने में निपुण है....उसके स्ट्राइकर अच्छे हैं.....सेमीफाइनल तक उसको कोई नहीं पूछ रहा था लेकिन अचानक वो फाइनल तक पहुच गया.....और बड़ी-बड़ी टीम्स बाहर होती गई....ब्राज़ील, फ़्रांस..जर्मनी....इंग्लैण्ड....सब बाहर....! वहीं सट्टा मार्किट में स्पेन के भाव काफी तेज़ है....लेकिन इस विश्व कप में काफी चीज़ें देखने को कम मिली, जो पिछले विश्व कप में देखने को मिलती थी......जैसे इंग्लैण्ड जैसे देश के फैन्स का गुस्सा....और हैरान कर देने लायक गोल्स....पिछले विश्व कप में में हमें जिदाने के गोल देखने को मिले थे जो सच में अजीब से थे...लेकिन इस बार वो हमें देखने को नहीं मिले हैं...स्पेन तकनीकी रूप से मजबूत टीम है...इसमें कोई शक नहीं है...लम्बे-लम्बे पास और सटीक पास देख कर अच्छा लगा...और उनकी मेहनत रंग भी ला रही है...
लेकिन सबसे अजीब इस विश्व कप में एक समुद्री जीव के बारे में देखने को मिली...जिसने अपने पंजे दो बक्सों में से एक में रख कर लोगों की सोच बदल डाली..और पूरा यूरोप हैरान है...जो भविष्यवाणी में यकीन नहीं करता है..जो अपने आप को आधुनिक सोच वाला मानता है..वो भी उसके आगे नत मस्तक है....खैर..ऑक्टोपस नाम का यह अजीबो गरीब समुद्री जीव स्पेन के पक्ष में है...और इससे पहले इसने जर्मनी को हरा दिया था..जबकि खुद जर्मनी का नमक खा रहा है...वहां लोग इसके रातों रात दुश्मन बन बैठे हैं....वहीं भारत में तोता, कौवा, चिड़िया..बन्दर और न जाने कैसे कैसे पंडित अपना जोर दिमाग लगाने में लगे हुए हैं...और अपने हिसाब से अलग अलग टीम को जिताने में लगे हुए हैं...खैर कुछ घंटों में सब साफ़ हो जायेगा लेकिन....एक समुद्री जीव ने यूरोप वालों की सोच बदल डाली.....और सच बात करें तो दो टीम के अलावा अब यह गेम ऑक्टोपस और अन्य पक्षी,तोता के बीच इज्ज़त का सवाल बन बैठा है....ख़ास कर अगर स्पेन जीत जाता है तो ओक्ट्पस की पौ बारह....और क आने वाले समय में कहीं इंडियन पंडितों के लिए यह खतरे की घंटी न बन जाये...?अगर स्पेन जी जाता है और फिर देखिये मिसन ऑक्टोपस लोजिक शुरू होगा मीडिया में...लोग यह जानना चाहेंगे कि क्योँ और कैसे इसकी भविष्यवाणी सच हुई है....? कुल मिलकर फुटबाल वर्ल्ड कप से ज्यादा इस समुद्री जीव ने ज्यादा दिल जीता है..और फेमस भी हुआ है.....इसलिए सिर्फ फाइनल जीतना ही काफी नहीं है...ऑक्टोपस के बारे में भी रिसर्च शुरू होने वाली है....में दोनू में से किसी के पक्ष में नहीं हूँ ...जो अच्छा खेल खेलेगा वो कप उठाएगा...सेमीफाइनल तक में स्पेन के पक्ष में था...क्योँ की वह टीम कमाल की फुटबाल खेल रही है...बाल पर कमाल का कण्ट्रोल देखने को मिला है...इसलिए उसका पलड़ा भारी है...यूरोप की चैम्पियन भी है.....और कई टान्गू वाले बाबा भी उसके पक्ष में बैठ गए हैं.....लेकिन फाइनल में जो टीम अच्छा लातम-लातम मारेगी.... वो जीतेगी...वही कप उठाएगी...
उसको सलाम!
.देखते रहिये......फाइनल....चीयर्स!
कलम का सिपाही का क़त्ल?
रविवार, 27 जून 2010
साईना ने झटका इंडोनेशियन ताज...!
इस खेल में इंडोनेसिया, जापान, चीन जैसे देश हमेसा दबदबा रहता था. पहली बार प्रकाश पादुकोण के बाद सायद कोई खिलाड़ी इतनी जोरदार तरीके से फॉर्म में दिखा है...वो साईना ही दिखी...टाइमिंग भी अच्छी थी...और पुरे विश्वास में दिखी पुरे मैच के दौरान....वहीं अब साइना टॉप रैंकिंग पर लक्ष बना कर खेलेंगी.....हमारी सुभकामना है वो जल्द इस मुकाम पर पहुचे...कहते हैं मेहनत एक दिन जरुर रंग लाती है....इरादा पका होना चाहिए...बस!
गुरुवार, 24 जून 2010
45 मिनट में तीन क़त्ल राजधानी में ...जिम्मेदार कौन?
सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि अभी कुछ दिनों से ऐसा क्या हो गया कि सरकार,कोर्ट,और अपने को सामाजिक रूप से लिबरल कहने वाले लोगों के गले की फांस बन गया है मुद्दा . ओनर किल्लिंग के नाम पर मीडिया, सरकार,कोर्ट और अपने आप को लिबरल कहने वाले ठेकेदार लामबंद हो गए हैं. अचानक खाप पंचायत का विरोध होने लगा है. जहाँ खाप नहीं है वहां क़त्ल नहीं हो रहे हैं क्या? एक तरह सरकार पंचायाती राज लागू करने जा रही है और मजबूत करना चाहती है...दूसरा पंचायत के फैसलों को गलत बता रही है. सरकार कहती है कि पंचायत को मजबूत किया जायेगा....लोकल मुद्दे पंचायत में निपट जाए तो ठीक है....वहीं अब दो प्यार करने वाले अगर शादी कर लेते हैं या फिर एक गोत्र में शादी करते हैं तो उनका क़त्ल कर दिया जाता है..ऐसा क्योँ ? कुल मिलाकर सरकार का दोहरा चेहरा ? एक तरह विरोध वहीं दूसरी तरह समाज में जाने पर उनका समर्थन...क़त्ल पहले भी होते थे...प्रेमी जोड़े पहले भी भागते थे...सजा पहले भी दी जाती थी...खाप को पहले गैर जाट बहुल समाज जानता तक नहीं था...खाप की पंचायत होती थी मीडिया देखता भी नहीं था उसकी ओर...खाप तो चलो हरियाणा और कुछ उत्तर प्रदेश के हिस्से में देखने को मिलती है...वो भी जाट बहुल इलाकों में....लेकिन बाकी देश के अन्य हिस्से में भी तो लोग रहते हैं...वहां पर भी इस तरह के फैसले और सजा दी जाती है...उस पर कोई बवाल नहीं करता...सामाजिक रूप से कोई भी अपनी इज्ज़र नहीं खोना चाहेगा...और पश्चिमी सभ्यता अपनाने का आप विरोध करते हैं...कोई करे तो करे क्या...कुल मिलकार युवा पीढ़ी चौराहे पर खादी है...कोई उसे समझाने वाला नहीं है....इसका नतीजा भटकाव के रूप में देखा जा रहा है...और भयानक मंजार हमारे सामने है...अचानक क्या हो गया कि प्रेमियौं कि शामत आ गई....और एक के बाद एक प्रेमी जोड़े भागने लग गए....उनका क़त्ल होने लग गया...समाज में तरह तरह के नारे लगने लग गए कुछ पक्ष में कुछ विपक्ष में...दबे जुबान से नेता भी बोलने लग गए....
ये ऊपर तीन चेरे, युवा हैं पढ़े लिखे हैं, अच्छे घर के खाते पीते हैं, लेकिन क्या मिला ये सब कर के....जेल की चार दीवारी..कुछ करने, गुजरने की हसरत धरी रह गई...माता पिता,भाई बहन के लिए जिंदगी भर का दुःख..टैग लग गया इन पर 'कातिल' का वो भी एक नहीं दो नहीं तीन लोगों का कत्ल का.....लेकिन इस सबके लिए जिम्मेदार कौन था...क्या ये तीनों अकेले थे....या फिर घर वाले..या फिर हालात जो इन्हूने देखे...? किसी ने जानने की कोशिश नहीं की ....क़त्ल करना गलत है, था और करना भी नहीं चाहिए..लेकिन जब इंसान इंतना मजबूर हो गया, तीन लोगों का क़त्ल कर दिया तब कुछ न कुछ मजबूत कारण रहा होगा...वो क्या था किसी ने जानने के कोशिश नहीं की...और सरकार को यह बात समझनी होगी...नहीं तो आगे और भी भयानक नतीजे हो सकते हैं..समाज में उथल पुथल के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद हम, सरकार जिम्मेदार हैं. सालों से गोत्र में शादी नहीं होती थी..अचानक विरोध होने लगा..की नहीं गोत्र नाम की चीज़ नहीं है..एक गाँव में शादी कर लो....तो फिर क्योँ भारत को संस्कृति वाला देश कहा जाता है ....बनाना क्या चाहते हैं इस देश को ....?हर चीज़ का हल होता है..इसलिए सरकार को समाज के साथ मिल बैठकर कोई ठोस नतीजे पर आना चाहिए....नहीं तो कोर्ट,सरकार और समाज आपस में सर फोड़ते रहेंगे.....और हल कुछ नहीं निकलना वाला...क्यूंकि यह मुद्दा किसी एक आदमी का नहीं बल्कि हर उस इंसान से जुदा है, धर्म से जुडा है वो संस्कृति के साथ जीना चाहता है...
अभी नेता दबी जबान से बोल तो रहे हैं लेकिन ब्याक्तिगत तौर उनसे पुचा जाये तो तो भी नहीं चाहते कोई बात समाज के खिलाफ जाए...फिर चाहे वो वोट बैंक कारण हो या फिर उनका पारिवारिक मामला....ऐसे ही हर इंसान पर लालू होता है...खाप पंचायत हिन्दू मैरीज एक्ट में संसोधन की मांग कर रहे हैं तो क्योँ नहीं सरकार उन्हें बुला लेती बातचीत के लिए ....आंखिर सरकार समाज,देश से ऊपर तो नहीं है...खाप जो इतने सालों से चलती आ रही हैं...उनको एक झटके में दरकिनार भी नहीं कर सकते...और अगर करोगे तो हम उसका मंजर रोज देख रहे हैं..आज वो प्रेमी जोड़ा मारा गया..आज वो भाग गया...सो- सो .... कोर्ट के ऊपर में टिपण्णी नहीं करना चाहता, लेकिन सरकार कदम उठाये तो हर चीज़ संभव है..नहीं तो क़त्ल तो और भी होंगे...कोई अपनी इज्ज़त समाज में ऐसे नहीं उछालना चाहेगा..कोई नहीं चाहेगा कि घर कि बहन बेटी या फिर बेटा कहीं और बिना बताये चला जाये या फिर ऐसा कर ले जो समाज को स्वीकार नहीं हो..शादी करना गलत नहीं है... आंखिर कोर्ट कितने प्रेमी जोड़ों को सुरक्ष्या दे पायेगा? और सरकार कितना विरोध कर पाती है या सपोर्ट कर पाती है उसकी भी लिमिट है मगर यह देखने वाली बात होगी...हल कुछ नहीं निकलने वाला....समाज को अगर विखरने से बचाना है तो सरकार,समाज और जो एनजीओ समाज के लिए काम कर रहे हैं वो सब मिल बैठकर बातचीत करें और उचित फैसला लें. जो समाज और देश के हक़ में हो...और आने वाले दिनों में इज्ज़त और नाम के खातिर समाज में किसी का क़त्ल न हो जिससे पढ़े लिखे युवा अपना जीवन गर्त में न डालें.....
वहीं इस केस में दिल्ली पुलिस की किरकिरी हुई है...क्रेडिट उत्तर प्रदेश की पुलिस ले गई......मसला दिल्ली का था और प्रेस कांफेरेंस लखनऊ से हो रही थी...और दिल्ली पुलिस टीवी पर देख कर अपने हाथ मॉल रही थी......कुल मिला कर सरकार को इस मसले पर बढे सोच समझ कर कोई हल निकालना चाहिए, समाज की भावनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए...किसी की हत्या करना बिलकुल गलत कदम है....लेकिन ऐसे नौबत ना आये इसके लिए समाज को जागरूक होने की जरुरत है...सरकार, समाज, पंचायत सभी को मिलकर बैठ कर कोई हल निकालना चाहिए...
कातिल पढ़े लिखे युवा थे, संपन्न घरों से ताल्लुक रखते थे, तीनों कातिल सब कुछ समझते थे, लेकिन अपने समाज और परिवार की खातिर तीन पढ़े लिखे लोगों का क़त्ल कर दिया गया.....चाहे पुलिस दे? या सरकार दे? या फिर गाँव की पंचायत? कहीं न कहीं कमीं तो जरुर है.... लेकिन जवाब तो समाज को देना ही होगा ..........
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