
मेरी भी मुलाकात 'बिमारी' के साथ हुई ....दिन बुधवार, मेरा साप्ताहिक अवकास ! घर पर था...सोचा सोऊंगा देर में उठूँगा..लेकिन माता जी को यह याद नहीं था ...और ग्यारह बजे उठा डाला मुझे..ऑफिस नहीं जाना ? फिर थोड़ी देर में मोबाइल ने भी अपनी घंट मार कर ड्यूटी पूरी कर डाली....खैर..ममी को सूचित किया आज ऑफ है...शायद ममी जी को भी शायद सकून पंहुचा.. चलो कभी तो घर पर रहेगा यह लड़का...! लेकिन हालत ठीक नहीं लग रही थी..मंगल वार को भी हालत ठीक नहीं थी..ऐसे ही बुझे दिल से न्यूज़ रूम में डेस्क पर काम करने में लग्न रहा...खबर कोई इतनी बड़ी नहीं थी..बस एक पकिस्तान में बम्ब फटा था...नेता के परखचे उड़ गए थे..बाकी कश्मीर तो धधक ही रहा था..अमित शाह वाला केस करवटें बदल रहा था...इसलिए यही बड़ी ख़बरें थी.....बारह बजे सो कर उठा....पापा आये और ३ कागज मेरे कमरे के टेबल पर पटक कर चले गए....फरमान जारी हुआ...ये बिल भर के आना..दो घरों के बिजली के और एक पानी का ....कुल मिलाकर २०००-३००० हज़ार रुपये का अवकाश मना मेरा ....मैंने दर्द के साथ बड़ी मुश्किल से कहा भर दूंगा पापा ....बाकी मेरी हालात की किसी को फिक्र नहीं....कहते हैं न 'गरीब की बहु सबकी भाभी.... ' ममी को करवट बदलते हुए बताया मेरी हालत ठीक नहीं है...ममी ने पूछा क्या हुआ....मैंने कहा पेचिस ! वो समझ गई और मेरे लिए कुछ ऐसा बनाने के लिए चल दी जो इसमें फायदे मंद होता है....फिर देखा थोड़ी देर में पेट में ज्वार भाटा उठने लगा....फिर छोटे ऑफिस की ओर भागा....ऐसा कई बार हुआ जब तक घर पर था..फिर सोचा चल यार बिल भर के आता हूँ...बाज़ार आया तो पैसे निकाले और बिल भर के दोनूं ऑफिस में वापस भारद्वाज जी के ऑफिस में आया.......मैंने सोचा शायद ठीक हो जाऊंगा लेकिन नहीं हुआ !
शाम को ऑफिस फोन किया....अपने बरिष्ठ को की शायद में वीरवर को नहीं आ पाऊंगा...मेरी हालत पतली है...खाना भी पतला, और निकल भी पतला ही रहा था....इसलिए सोचा डॉक्टर के पास तो जाना ही पड़ेगा.....अजीब बिडम्बना है बीमार होने पर एक डॉक्टर ही ऐसा है जो खुश रहता है और उम्मीद करता है की लोग ज्यादा से ज्यादा बीमार होने चाहिए...खैर रात भर हालत पतली ही रही...एक महिला मित्र से बात हुई, वो अपने मामले के कारण परेशान थी....मगर मेरी अच्छी मित्र थी इसलिए बात कर ली..मामला सुलझ गया उसका....वो तो खुश....मगर अपनी हालत फिर पतली....बीमारी जो घुशी पड़ी थी....खैर जैसे- तैसे रात काटी...सुबह उठा तो अंकल को फोन किया....अंकल ऐसा हो गया है और आप कहा हो? अंकल ने कहा आ जा और चलते हैं डॉक्टर के पास....!
गया भारद्वाज जी के ऑफिस में ..वहां अंकल मिले....गए उनके जानकार डॉक्टर के पास...मेरे साथ गुरु जी और अभियंता साहब दर्शन जी भी गए....कुल मिलाकर दल बल के साथ चल दिए हम ..खुद हम बीमारी का कुछ नहीं कर सकते हैं...लेकिन डॉक्टर के पास हम चारों गए.....पिछली गली में ही डॉक्टर टुटेजा जी का अभुत्पुर्ब क्लिनिक था....अभूत्पुर्ब इसलिए उसके आगे पीछे इंसान को खुश करने की चीज़ों की दुकाने थी ...बोले तो साइकल झूले....खिलोने....और बीच में टुटेजा जी की क्लिनिक ...सुई घुसोते रहते हैं मरीजों को ...वाह रे इंडिया ! क्या जगह है क्या काम है..............!
जैसे मेरी पतली हालत थी....वैसे ही डॉक्टर वाली गली पतली....कोई पीछे से स्कूटर वाला होर्न मरता तो कभी साइकल की घंटी बजती...कभी खिलोने वाली महिला देखती की कही उसके ग्राहक तो नहीं.....कभी कोई और सामने से टकरा जाता...खैर डॉक्टर क्लिनिक के गेट के अन्दर घुसे,,,देखा कुछ महिलाए कुछ बच्चे और कुछ पुरुष....सब हाल के बेंच में कतार से बैठे हुए हैं.....सब बीमार हैं...! नम्बर आने का इंतज़ार कर रहे हैं...अंकल सीधे अन्दर गए..एम् अधेड़ उम्र की महिला कुर्सी में बैठी हुई थी..और अंकल को देख कर १000 वाट की मुस्कराहट के साथ उसने स्वागत किया.....!अंकल ने कहा मारीज साथ में है डॉक्टर को सूचित कर दो....नाम मनोजीत बताया...!थोड़ी देर तक हम चारों उस महिला के साथ गुफ्तगू में ब्यस्त थे...मुद्दा बीमारी नहीं थी.........बल्कि वहां पर भी हाई रे महंगाई..!खैर कोई नर्स पीछे खडी , कोई दायें कोई बाए कमरे में....कोई मरीजों को चेक अप कर रही थी....मगर अधिकतर नर्स मोबाइल में मेसेज या फिर गेम में मशगूल थी...सुई के बजाये मोबाइल देख कर उनके हाथों में अच्छा लगा ...!काल आई l मनोजीत ..गए हम चारों ....! उन्हूने मेरा परिचय कराया ...डॉक्टर से...! शक्ल परिचय कराने जैसी नहीं थी...डॉक्टर भी सोच रहा होगा .....जूठ है या सच ...?पत्रकार लगता तो नहीं शक्ल से...डॉक्टर ने पूछा... क्या हुआ...मैंने कहा डिस -इंट्री ....! वो बोला चलो अन्दर लेट जाओ ... अन्दर गया तो बिस्तर में लेटा और डॉक्टर ने टी शर्ट ऊपर कर पेट को दो तीन बार दबाया..और कहा इन्फेक्सन है..! सायद ठीक कह रहा था..!टेबल पर वापस गए और पूछा कैसे क्या हुआ...कोई दवाई तो नहीं ली?...उसने दवाई लिखी.....और पर्चा हाथ में पकड़ा दिया....बाहर आये तो केमिस्ट साहब भी इंतज़ार में बैठे थे...परचा उनके हाथ में पकडाया...और भुगतान भी किया ....उसने बताया दिन में दो बार खानी है....और लाल, सफ़ेद रंग की गोली दे पटकी ......फिर वापस हम भारद्वाज जी के ओफ्फिस में आ गए.....लेकिन सबसे बड़ी बात बिना बात का पंगा....! बीमारी ने कैसे कैसे गलियाँ दिखा दी....कैसे कैसे लोगों से रूबरू करवा दिया.....! है न बीमारी अजीब...फिर क्योँ न कहें हम... हाय रे बीमारी मार जात है .......!
4 टिप्पणियां:
अनीस आलम राजस्थान
ठिक कहा भाई बीमारी है तो काम की चीज
जो इस दोड़ भाग बरी जिन्दगी में एक बीमारी ही है जो थोडा इंसान को आराम करवा देती है ......... जय.......... हो बीमारी..... मय्या की, खैर.. ["हाय रे बीमारी मार जात है......!"]
apne swath ka khyal rakhna fir saab kuch karna pooja ho ya kaam kuch bhi health hai to family hai...
film dialogue..
"jamana hum se hai hum jamane se nahin"
अरे सर मुझे तो मालूम ही नहीं चला ,अब कैसे हैं .बीमारी ऐसी चीज है की जिस से इसकी दुश्मनी हो जाये तो खतरनाक ,आप अपना ध्यान रखा की जीए .और समय पर खाना पीना रखें आपकी डियूटी सख्त है लेकिन सवास्थ्य का ध्यान रखना भी जरुरी है,भगवन आपको हमेशा सवस्थ रखे .
अरे सर मुझे तो मालूम ही नहीं चला ,अब कैसे हैं .बीमारी ऐसी चीज है की जिस से इसकी दुश्मनी हो जाये तो खतरनाक ,आप अपना ध्यान रखा की जीए .और समय पर खाना पीना रखें आपकी डियूटी सख्त है लेकिन सवास्थ्य का ध्यान रखना भी जरुरी है,भगवन आपको हमेशा सवस्थ रखे .
Sumit Joshi Sangrur Punjab
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