लम्बे समय बाद कोई हिंदी फिल्म ठीक सी लगी, में अपने एक पत्रकार महिला लम्बे समय बाद कोई हिंदी फिल्म ठीक सी लगी, में अपने एक पत्रकार महिला साथी के साथ देखने गया..पहले तो वह जिझक रही थी..फिर मैंने मजाक में कहा आप अपने सीट में बैठेंगे और हम अपने...और सिल्क को परखेंगे....वह फिर मान गई..बाद में फिल्म देखने के बाद बोली फिल्म अच्छी थी..खैर..पिछले कुछ दिनों से मीडिया और अन्य प्रचार माध्यम से इस फिल्म का काफी कुछ मसाला लोगों के आँखों में परोसा जा चुका था...और जिस हिसाब से इसका प्रचार किया गया था वह भी काबिले तारीफ था...'डर्टी पिक्चर' ...जैसा इस फिल्म का नाम है, वैसा किस सेन्स में होना यह बड़ी बात थी...डर्टी माने गन्दा! ॥कैसा गन्दा यह इंसान की सोच पर निर्भर करता है...
इस फिल्म को दक्षिण भारत की फिल्मों की अभिनेत्री/नचनिया रही सिल्क स्मिता की जिंदगी पर बनाया गया था॥मतलब साफ़ है एक तो लुट के मर गई, दूसरी अब लूटने जा रही है..आगे भगवान् जाने...निर्देशक ने कोशिश अच्छी की है..और फिल्म के अंत में छोड़ कर बाकी फिल्म में पूरी तरह उसका कंट्रोल रहा है...निर्देशक ने अंत में जल्दी-जल्दी शोट्स लगा दिए हैं ,लगता है फिल्म की लम्बाई कुछ ज्यादा हो रही होगी..यह बात हिंदी फिल्मों के निर्देशकों के लिए हमेशा सर दर्द रहा है ..फिल्म खीच ले जाते हैं अंत तक और फिर छोड़ देते हैं खुले मेले में..और फिल्म उनके हाथ में ना रह कर इधर-उधर भटकती है..और दर्शकों के दिल में कई प्रश्न बार-बार उठते हैं..कि ऐसा क्योँ ?वैसा क्योँ नहीं इत्यादि ...लेकिन सिल्क के सपने धरती पर नहीं बल्कि आसमां में हिचकोले ले रहे थे..उसे तो हीरोइन बनना था..डांसर बनना था...कैसे भी...जो ले-लो, जैसा ले लो...सिल्क तैयार..इसलिए एक बात है यह फिल्म उन लड्कियौं के लिए भी है जो हद से ज्यादा महत्वकांशी होते हैं..और जीवन में दिखावा वाली सफलता पाने के लिए सब कुछ लुटा बैठती है, और अंत में सिर्फ सून्य पर आकर अपना नाम ऊपर वाले के नाम कर देती हैं..महत्वकांशी लडकी को जरुर देखनी चाहिए यह फिल्म ...उसके लिए एक सीख भी है।फिल्म इंडस्ट्री की प्रष्ठ - भूमि पर बनायी गई इस फिल्म को निर्देशक मिलन ने पूरे कंट्रोल के साथ फिल्म में अपनी छाप छोडी है, वहीं सिल्क के रूप में विद्या बालान ने बखूबी अभिनय किया है...जैसा फिल्म का नाम वैसा उसमे है भी...शुरू में ही कमरे में यौन क्रीडा में लग्न एक जोड़े को सिल्क पोप-कोर्न या कुछ और खाते हुए एन्जॉय करती है...और वही यौन क्रीडा एक बार उसके फ़िल्मी काम में भी मदादगार साबित होता है...लेकिन विद्या ने जितना एक्सपोज़ इस फिल्म में सायद अब ना कर पाए..क्यूंकि और कुछ बचा ही नहीं, आने वाली फिल्म में कुछ दिखाने के लिए उसके लिए...डायलोग बहुत बेहतरीन हैं..और उतने अच्छे तरीके से विद्या ने उनको बोला भी है..लेकिन जितने किस विद्या ने किये हैं वह काबिले तारीफ नहीं हैं...सायद सिल्क भी नहीं रही होगी..इस कला को फ़्रांस जा क़र सीख आने की जरूरत है...हीरो के रूप में नसीर, इमरान हाशमी और तुषार कपूर का अभिनय अपनी जगह उम्दा है..तुषार को फिर से कहूँगा कि घर की मार पड़ गई है...या उनको सिल्क जैसे महिला प्रधान कोई फिल्म बनानी चाहिए, हीरो के रूप में नहीं बल्कि निर्देशक या फिर प्रोडूसर के रूप में..नहीं तो अपनी बहन एकता कपूर का असिस्टंट बन जाना चाहिए ..
महिला आधारित फिल्म होने के कारण निर्देशक कहानी को विद्या बालान या सिल्क के चारों तरफ रखने में सफल हुआ है...संगीत के रूप में एक गाना अच्छा है सूफियाना-सूफियाना...उ ला ला ला भी ठीक ठाक है उन लोगो के लिए जो तेज़ म्यूजिक पसंद करते हैं...वहीं फिल्म में विद्या जब सब कुछ होते हुए भी चिल्लाते हुए कहती है की कोई है मुझसे बात करने वाला ? बहुत कुछ सोचने पर मजबूर और बहुत सरे प्रश्नों के जवाब भी सामने रख देता है .
कुल मिला कर विद्या के बिंदास अभिनय, मजबूत डायलोग और दुखद क्लाइमैक्स ने फिल्म को हिट की कटेगरी में रख दिया है...वहीं इस फिल्म ने फिल्म इंडस्ट्री के सनसनीखेज और विवादास्पद हकीकत को सामने भी रखा है...अब जो फिल्म देखने जायेगा उसके पैसे तो वसूल हो ही जायेंगे बसर्ते पॉप-कोर्न और पेप्सी ना खाएं-पियें तो...
3 टिप्पणियां:
भाईसाहब डर्टी फिल्म का नजरना काफी अच्छा है ........इस नजराने को कभी सिल्क की तरह नजर ना लगे .....
POPCORN JITNA BHI OODE OOSE GIRNA BARTAN MAI PARTA HAI LEKIN DIRTY PICTURE KABHI BHI NAHI GIREGA.
thanx satya and suraj
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