उत्तराखंड में हुए विधान सभा चुनाव और उनके नतीजों ने सियाशी गलियारों में गहमा-गहमी तेज़ कर दी है.इस पहाडी राज्य में 70 सीटों के लिए हुए चुनाव में सब कुछ देखने को मिला....लेकिन सबसे बड़ी हैरान कर देने वाली जो बात थी वह खुद मुख्यमंत्री मेजर जनरल [सेवानिवृत]भुवन चन्द्र खंडूड़ी का चुनाव में बुरी तरह हारना | यह बात न भारतीय जनता पार्टी को पच रही है और ना ही उनके विरोधियौं को लेकिन खंडूडी के लिए यह दोतरफा हार है एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत ना दिला पाने की और दूसरी उनकी ब्यक्तिगत सियाशी हार |वह कोटद्वार विधान सभा सीट से वह कांगेस प्रयाशी एस एस नेगी से 4632 वोटों से हार गए. पार्टी को बहुमत न मिलने के बाद बुधवार को मुख्यमंत्री खंडूड़ी इस्तीफा देने के लिए राजभवन पहुंचे तो बीस मिनट तक चली इस मुलाकात के दौरान राज्यपाल खंडूड़ी के इस्तीफे की औपचारिकता के तुरंत बाद राज्यपाल आल्वा पूरी तरह अनौपचारिक हो गई। राज्यपाल ने कहा कि जनता कभी-कभी अच्छे लोगों को हरा देती है। राज्यपाल ने कहा खंडूड़ी के चुनाव हारने का उन्हें भी दुख है । साथ ही यह भी कहा कि खंडूरी अच्छे मुख्यमंत्री रहे हैं। वे समर्पित एवं स्पष्टवादी हैं। खंडूड़ी ने कहा कि राज्यपाल के रूप में श्रीमती आल्वा का उन्हें बहुत सहयोग मिलता रहा है। इसके लिए उन्होंने आभार भी जताया।
जनता निशंक के कार्यकाल से त्रस्त दिख रही थी और भाजपा ने इस बात को पहचाने में देर तो की लेकिन लेकिन अंतिम समय में आनन्-फानन में छह महीने के लिए मुख्यमंत्री खंडूडी को 'डैमेज कण्ट्रोल' के तहत फिर से मुख्यमंत्री की गद्दी सँभालने के लिए कहा गया...यह खंडूडी की ईमानदारी और मेहनत का नतीजा था जो भाजपा 31 सीटों पर कब्जा कर पायी वर्ना और नुक्शान हो सकता था. एक अजीब सोच लोगों की देखने को मिली प्रदेश में जिससे भी पूछो वह यही कहता मुख्यमंत्री खंडूडी होने चाहिए लेकिन भाजपा सत्ता में नहीं आनी चाहिए. चुनाव परिणाम वाले अंतिम समय तक दोनू दल कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे के आगे पीछे रहे.70 सीटों में से कांग्रेस को 32 और भाजपा को 31 सीटें मिली हैं. बसपा को 3 सीटें और एक सीट उत्तराखंड क्रांति दल [पी] को मिली है. कांग्रेस से बागी उम्मीदवारों ने निर्दलीय चुनाव जीत दर्ज की है | दो दलों का दबदबा रहा प्रदेश की राजनीती में यह एक बात अच्छी रही है. उक्रांद और नयी नवेली यूआरएम् भी कुछ खास नहीं कर पायी. उक्रांद ने एक सीट जीती है वहीं उत्तराखंड रक्षा मोर्चा [यूआरएम्] खाता भी नहीं खोल पाया.वहीं उतर प्रदेश में परचम लहराने वाली समाज वादी पार्टी के लिए उत्तराखंड अभी मुंगेरी लाल के हसीं सपने जैसा है. दूसरा कारण सपा के लिए उत्तर प्रदेश चुनाव पर पूरा ध्यान ही रखना भी एक कारण रहा है. दूसरी सबसे बड़ी हार भाजपा के दिग्गज माने जाने वाले प्रकाश पन्त की रही जो पिथौरागढ़ सीट पर कांग्रेस के मयूख महर से चुनाव हार गए. यह भाजपा लिए यह सीट भाजपा का गढ़ माना जाता था लेकिन इस बार वह भी हाथ से निकल गयी.
मुख्यमंत्री खंडूडी का हारना सबसे चौकाने वाला था और इसके लिए कोटद्वार की जनता नहीं बल्कि भाजपा के अन्दर गुटबंदी जिम्मेदार रही है. भाजपा को मंथन करना चाहिए कहाँ गल्ती हुई जो अपने ईमानदार और मेहनती मुख्यमंत्री को भी जिता नहीं पायी.वहीं कांग्रेस के लिए प्रदेश में अच्छा परिणाम आया है.हरीश रावत की मेहनत रंग लायी है हो सकता है हरीश रावत आने वाले दिन में मुख्यमंत्री की कुर्सी में नज़र आयें और यह उनकी सालों की मेहनत का नतीजा भी है. सब जानते हैं इससे पहले नारायण दत्त तिवारी और सतपाल महाराज जैसे दिग्गजों ने केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के रास्ते पर हमेशा रुकावट ही डाली और अब उनके पास मंत्रिपद का अनुभव भी है.सरकार जो भी बनाए लेकिन प्रदेश से युवा शिक्षा और रोजगार के लिए पलायन कर रहा है. यह अजीब बात है बाहर से शुरुवाती शिक्षा पाने के लिए लोग अपने बच्चों को उत्तराखंड के नैनीताल,मसूरी, देहरादून,घोडाखाल जैसी जगह भेजते हैं. जबकि प्रदेश की जनता अपने बच्चों को इन शिक्षण संस्थानों में पढ़ा लिखा नहीं सकती ? क्योंकि इतने महंगी फीस कहा से दे पाएंगे?प्रदेश में शिक्षा के आधार भूत ढाँचे को भी और मजबूत करने की जरुरत है. निशंक और खंडूडी दोनू ही इसमें कुछ ज्यादा नहीं कर पाए हैं.
मतदान का प्रतिशत इस बढ़ा है पिछली बार के मुकाबले इस बार 9.95 प्रतिशत की दर से यह बढ़ा है. देहरादून में 67.54 और हरिद्वार में 75.46 और उधम सिंह नगर में 76.84 रहा. खंडूड़ी का हारना प्रदेश की राजनीती के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. क्यूंकि राजनीती में वैसे ही ईमानदार और मेहनती लोगों की संख्या गिनी चुनी है. जनता को भी इस पर सोचना चाहिए. यूरोप और भारत में यह सबसे बड़ा अंतर है वहां मतदाता परिपक्व है, समझता है अच्छा बुरा, हमारे यहाँ पर वह जात-पात,और लोभ लालच के भंवर में चक्कर खाता रहता है और अपनी वोट की महत्वता खो बैठता है. उत्तराखंड को सैनिक प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है इस वजह से वहां पर फौजी मतदाता भी काफी हैं.चुनाव में भी दो जनरल थे, एक मुख्यमंत्री खुद दूसरा यूआरएम् के लेफ्टीनैंट जनरल टीपीएस रावत जो चुनाव हार गए. पोस्टल वोटरों का काफी हजारों की मात्रा में बैरंग लौटना भी खंडूड़ी और उनकी सरकार के लिए नुक्सान दायक रहा. भाजपा ने चुनाव आयोग से मांग भी की दुबारा मतदान पत्र भेजे जाएँ लेकिन चुनाव आयोग नहीं इस मांग को नकार दिया. किसी मतदाता ने भी मांग नहीं की नहीं तो भेजा सकता था और कुछ सीटों का नतीजा कुछ और ही होता दोनू दलों के लिए. निशंक के समय में घोटाले हुए उनसे वह अब तक पीछा नहीं छुड़ा पाए हैं. इसका खामियाजा प्रदेश में पार्टी को चुनाव में उठाना पडा. आने वाली सरकार के लिए आने वाला समय और चुनौती पूर्ण होगा अगर कांग्रेस सरकार बनाती है तो कितना चलेगी इस पर संसय बना रहेगा और अगर भाजपा बनाती है कितना अपने आप को साबित कर पायेगी.
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