
खोज जारी है…......कभी कभी वापस अपने वादियूं में जाने का दिल करता है....वो गाँव का सुन्दर कल कल करती नदी का किनारा, वो हरे भरे खेत, वो कल कल करता शीशे जैसा साफ़ सुन्दर पानी, जिसमे न सरकार का बिल का डर है न ही कोई समय का लफड़ा, मीठे मीठे फल जिन्हें बंदरों की तरह तोड़ने में अपना अलग ही आनंद आता था, वहीं जाने का मन करता है, ना पर्दूषण ना ही खाने पीने का डर , प्रकर्ति की गोद में, प्रकर्ति के लिए और प्रकर्ति के लोगून के द्वारा......काश .....!एक दिन ...सिर्फ एक दिन वो भी बड़ी मशक्कत के बाद...... हफ्ते भर की इकलौती छुट्टी होती है,बाहर के इतने काम होते हैं की घर में रुक नहीं पाता हूँ ममी जी पैर पटकती रह जाती है कि कभी घर पर नहीं रुकता ये लड़का....दिन का खाना खाए घर पर मुद्दत हो गई है....खैर सिस्टर के घर गया था बूढ़ी सास का देहांत हो गया था.....काफी लोग मिले, वहा आये हुए थे.... अच्छा समय निकला छोटी भांजी के साथ ,बात करते हुए ,खेलते हुए....प्यारी प्यारी सी बात, छोटे बच्चे करते हैं...कहते हैं ना भगवान् का रूप होते हैं बच्चे...सच कहा है....अच्छा लगा। पहली बार कुछ अलग तरह के लोगू से मिलना अछा लगा....उसके बाद पुरानी जगह गए जहां कभी काम करते थे, कई पत्रकार मिले वहां, पुराने दिनूं की याद ताज़ा हो गई, जब कभी आकाशवाणी जाया करते थे... इनके साथ काम किया और बहुत अच्छा समय निकला।लगातार जद्दोजहद रहती है हर पल मीडिया में। जब तक आप अपने न्यूज़ रूम में पहुंचते हैं, आप मानसिक रुप से पूरी तरह तैयार हो चुके होते हैं। अगले दिन के लिए आपको फ़िट भी रहना है, और आज का काम भी पूरा करना है, परफेक्ट तरीके से । पूरा दिन थकाने वाला होता है। खाने-पीने की सुध नहीं रहती। फिर भी करना तो है। क्योंकि यही सोचा था कि यही काम करेंगे। और कितने लोग हैं दुनिया में, जो वो करना चाहते थे, वही कर रहे हैं? मैं अपने आप को इस बारे में बहुत ही भाग्यशाली मानता हूँ।मैं आज जीवन के ऐसे दौर से गुज़र रहा हूँ, जहाँ पर मुझे दिल्ली से निकलना ज़्यादा अच्छा लगता है। छोटे शहरों में काम करना ज़्यादा अच्छा लगता है। लोगों से ज़्यादा-से-ज़्यादा मिलना मुझे बहुत अच्छा लगता है। बड़े शहर अब रास नहीं आते हैं। लेकिन हमारा काम पूरी तरह से दिल्ली और नॉएडा में होने की वजह से कहीं-न-कहीं एक मजबूरी भी है बड़े शहर में रहने की। बहरहाल, मेरी शांति और सुकून की जद्धोजहद और खोज जारी है..... और मैं भी आशा करता हूँ कि इसका रास्ता भी मिल ही जाएगा…
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