खेतों में ऐसे कीटनाशक डालेंगे तो कहाँ से स्वस्थ रहेगा इंसान ?
भारत में कीटनाशकों में 59 फीसदी कीट्नाशक अत्यधिक हानिकारक की श्रेणी में :रिपोर्ट-
दिल्ली : (मनोज रौतेला) भारत एक कृषि प्रधान देश है. देश में कृषि ही प्रमुख आधार है लोगों की आजीविका का. यहाँ कोई न कोई किसी न किसी रूप में खेती से जुड़ा हुआ है. सब मानते हैं किसान खुश हैं तो देश खुश रहेगा. सरकारें नीतियां बनाती हैं किसानों के लिए लेकिन खेतों में ही कीटनाशकों की मात्रा इतनी ज्यादा कर दी गयी है तो कहाँ से फसल अच्छी होगी ? दुर्भाग्य से स्वास्थ्य की चिंता किसे हैं ? जी हैं यही सच है. अभी भारत में इन प्रमुख कम्पनियों द्वारा बेचे गए कुल कीटनाशकों में अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों (HHP) का हिस्सा करीब 59 फीसदी था जबकि इन्ही कंपनियों ने ब्रिटेन में सिर्फ 11 फीसदी एचएचपी की बिक्री की थी. ये हैं दुनिया की पांच सबसे बड़ी कीटनाशक बनने वाली कम्पनियां. ये केमिकल इंसानों में कैंसर और उनकी प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इन एग्रोकेमिकल दिग्गजों में-
बीएएसएफ,
बेयर ,
कोर्टेवा,
एफएमसी और
सिन्जेंटा शामिल हैं।
ये कम्पनियाँ अपनी आय का करीब एक तिहाई हिस्सा हानिकारक कीटनाशकों को बेच कर कमाती हैं. ने केवल ये केमिकल इंसान के लिए बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं लेकिन कोई ध्यान देने वाला नहीं है. सबको मुनाफ़ा कमाना है. बाकी जानकारी के अभाव में ये कंपनियां फायदा उठा रही हैं. ऐसे में सरकार को तुरंत चौकन्ना होने की और इस पर कार्रवाई करने की जरुरत है. चौंका देने वाला सच दो प्रमुख गैर लाभकारी संस्था अनअर्थड एंड पब्लिक आई द्वारा की गयी संयुक्त जांच में सामने आया है. अध्ययन के अनुसार यह कम्पनियां अपने अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों (एचएचपी) को अधिकतर भारत जैसे विकासशील देशों में बेच रही हैं. रिपोर्ट के अनुसार जहां भारत में इन कम्पनियों द्वारा बेचे गए कुल कीटनाशकों में एचएचपी का हिस्सा करीब 59 फीसदी था जबकि उन्होंने ब्रिटेन में सिर्फ 11 फीसदी एचएचपी की बिक्री की थी.
यह रिसर्च 2018 के टॉप-सेलिंग क्रॉप प्रोटेक्शन प्रोडक्ट्स के विशाल डेटाबेस के विश्लेषण पर आधारित है. जिसमें उन्होंने इन कंपनियों द्वारा 43 प्रमुख देशों में बेचे जाने वाले कीटनाशकों का विश्लेषण किया है.जिससे पता चला है कि दुनिया की प्रमुख एग्रोकेमिकल कंपनियों ने अपनी बिक्री का 36 फीसदी हिस्सा अत्याधिक हानिकारक कीटनाशकों को बेच कर कमाया है. सबसे अहम बात यह निकल कर आयी है रिपोर्ट के बाद कि इन कंपनियों ने वर्ष 2018 में करीब 34,000 करोड़ रुपये के हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री की है. यह हानिकारक कीटनाशक इंसानों के अलावा यह जानवरों और इकोसिस्टम पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं. यह सभी केमिकल इंडस्ट्री के प्रभावशाली समूह क्रॉपलाइफ इंटरनेशनल का हिस्सा हैं. भारत में इन कंपनियों के केमिकल्स हानिकारक-अध्ययन के अनुसार इनके द्वारा बेचे जाने वाले कुछ कीटनाशक यूरोपीय बाजारों में प्रतिबंधित हैं क्योंकि वो इंसानों और मधुमक्खियों पर बुरा असर डालते हैं. लेकिन विकासशील देशों में लचर कानूनों और सरकारों की उदासीनता के चलते यह कंपनियां आराम से अपने केमिकल्स को बेच रही हैं. यही वजह है कि भारत और साउथ अफ्रीका, अर्जेंटीना, जापान और ब्राज़ील, जैसे देशों में इनको बेच दिया जाता है. अनुमान है कि भारत में इनके द्वारा बेचे जाने वाले कुल कीटनाशकों में 59 फीसदी कीट्नाशक अत्यधिक हानिकारक की श्रेणी में आते हैं जबकि ब्राज़ील में 49 फीसदी, चीन में 31 फीसदी, थाईलैंड में 49, अर्जेंटीना में 47 और वियतनाम में 44 फीसदी अत्यधिक हानिकारक श्रेणी के कीटनाशक बेचे जाते हैं.आप अंदाजा लगा सकते हैं कैसा बिमारी रहित समाज विकसित होगा इन देशों में. जबकि विकसित और विकासशील देशों के बीच तुलनात्मक रूप से देखें तो इन कंपनियों द्वारा विकासशील देशों में करीब 45 फीसदी अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री की थी.जबकि विकसित देशों में करीब 27 फीसदी एचएचपी की बिक्री की थी . इस विश्लेषण के अनुसार इन पांच कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले करीब 25 फीसदी कीटनाशक इंसान के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं. 10 फीसदी मधुमखियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं जबकि इनमे से 4 फीसदी इंसानों के लिए अत्यंत जहरीले होते हैं.गौरतलब है कि WHO और FAO द्वारा HHP को अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों के रूप में परिभाषित किया है . जिसमें पर्यावरणीय खतरों में जल स्रोतों के प्रदूषण, परागण में आने वाली दिक्कतों और पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले असर जैसी समस्याओं को शामिल किया है. इस खतरे से निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ और एफएओ ने न केवल कठोर नियमों की आवश्यकता पर बल दिया है बल्कि उसके क्रियान्वयन पर भी जोर दिया है लेकिन कौन सुने ?
हमारे देश में भी हानिकारक कीटनाशक एक बड़ी समस्या हैं. इसलिए भारत सबको बड़ा बाजार दिखता है. सब कि लार भारत के बाजार को देख कर टपकने लगती है यही वजह है कि कैसे भी हो भारतीय बाजार में अपने माल को कम्पनियाँ खपाना चाहती हैं और मुनाफ़ा कमानी चाहती है. 2018 में भारत का कीटनाशक बाजार 19,700 करोड़ रुपये आंका गया था जिसके 2024 तक बढ़कर 31,600 करोड़ रुपये का हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है. ऐसे में इन हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. जिससे जल्द निपटने की जरुरत है नहीं तो बहुत देर हो जाएगी. इसलिए आगामी कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2020 अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में कृषि काफी हद तक इन कीटनाशकों पर ही निर्भर है, जिसमें बड़ी मात्रा में ऐसे कीटनाशक शामिल हैं जिनका अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग मनुष्यों, जानवरों, जैव-विविधता और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर भारी असर डाल रहा है. रोज नयी नयी बीमारियों देखने को मिल रही हैं. स्वस्थ इंसान भी कभी-कभी अचनाक घातक बीमारियों की गिरफ्त में आ जाता है. जब तक बिमारी का पता चलता है तब तक बहुत देर हो जाती है. ऐसे में इन हानिकारक कीटनाशकों के उपयोग पर लगाम कसना जरुरी है. इसके साथ ही जैविक खेती को बढ़ावा देना एक अच्छा विकल्प हो सकता है. भारत सर्कार को जैविक खेती को अधिक से अधिक बढ़ावा देने की जरुरत है . इन कीटनाशकों को बनाने वाली कंपनियों के लिए शख्त नियम और कानून बनाने की जरुरत है. पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय के स्कॉलर रहे और वर्तमान में भगवान सिंह यूनिवर्सिटी देहरादून में सहायक प्रोफ़ेसर डा अनिल पंवार ने इस पर चिंता जताई है. साथ ही इसको बहुत ही खतरनाक बताया इंसानों के लिए जिस तरह से कीटनाशक कम्पनियाँ देश में आपूर्ति कर रही हैं. साथ ही सरकार से इस मामले में कठोर नियम कानून बनाने की मांग की है.