-क्या कोरोना वायरस है चीन का घातक जैविक हथियार ?
-क्या 40 साल पहले छपी किताब में छुपा है राज ?
-किताब में जिक्र की गई बातों से इस खतरनाक मुश्किल के हल भी तलाशने की भी कोशिशें जारी हैं.
दिल्ली : आज पूरा विश्व सहमा हुआ है कोरोना वायरस के खौफ में. किसी को नहीं पता क्या होगा आगे ? एक तरह से देखा जाए तो थ्रिलर सस्पेंस फिल्म या किताब आप लोगों ने देखी व् पढ़ी होंगी. वही आज इंसान महसूस कर रहा है.सबके मन में एक ही सवाल है आगे क्या होगा ? आज बड़े से बड़ा मुल्क इस खतरनाक वायरस से डरा हुआ है. चीन से निकल कर यह वायरस आज समूचे विश्व को अपनी आगोश में ले चुका है. 6000 से ज्यादा मौतें अलग अलग देशों में हो चुकी हैं अब तक. लेकिन इस खौफ के बीच लोगों को एक किताब पढ़ने को बेचैन कर रही है. वह है अमेरिकन लेखक डीन आर कुंट्ज की द आइज ऑफ डार्कनेस (the eyes of darkness). इस किताब को पढ़ने वाले जानते हैं कि किस कदर थ्रिल और सस्पेंस का कमाल मिश्रण इस लेखक के किताबों में है. लेकिन इन दिनों किताब द आइज ऑफ डार्कनेस (the eyes of darkness) को लोग पढ़ना चाहते हैं और अचानक भारी मांग में आ गई है और इसकी एक वजह है, वह है कोरोना वायरस. जो एक संक्रामक बीमारी का रूप धारण कर चुकी है. चीन से निकल कर यह इटली, स्पेन, अमेरिका जैसे देशों को अपना शिकार बना रहा है और अब तक इन देशों में सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है.
कहानी में वुहान 400 कोड रखे जाने का तर्क किताब में यह दिया गया है कि इसे वुहान प्रांत के बाहरी क्षेत्र में बनाया गया है और कोड में 400 इसलिए जोड़ा गया क्योंकि यह इस लैब में तैयार 400 वां ऐसा हथियार था. इसका मतलब इससे पहले और कितने हथियार और किस तरह के हथियार टेस्ट किये गए होंगे. एक कमाल यह भी है कि किताब में दूसरे वायरस से इसकी तुलना भी की गई है और जिससे इसकी सबसे करीब तुलना हुई वह खतरनाक इबोला वायरस के सारे लक्षण वाला है यानी पिछले कुछ समय में दुनिया को जिन दो बड़े खतरों से सामना करना पाड़ा है उन दोनों का ही जिक्र इसमें शामिल है. यदि किताब के तर्क को मानें तो यह वायरस इंसानी शरीर से बाहर एक मिनट भी जीवित नहीं रह पाता है. इस तरह का संक्रामक वायरस तैयार करने से आक्रमण करने वाले देश के लिए कब्जा करना आसान हो जाता क्योंकि वायरस का संक्रमण इंसानों के साथ ही खत्म भी होते जाता है. इस थ्रिलर उपन्यास के कई तथ्य चौंकाने के लिहाज से बेहतर हैं लेकिन अब इस किताब में जिक्र की गई बातों से इस खतरनाक मुश्किल के हल भी तलाशने की कोशिशें जारी हैं.जैसे वैज्ञानिक इस तथ्य पर भी बहुत ध्यान दे रहे हैं कि इस वायरस के जिस तरह के व्यवहार बताए गए हैं. क्या उनमें से किसी को इस पर काबू में लाने का आधार बनाया जा सकता है .
मैंने कुंट्ज को यूनिवर्सिटी के दौरान कुंट्ज को पढ़ा था लेकिन उस समय मुझे कुंट्ज एक लम्बे शब्दों को लिखने वाला और लम्बे लम्बे वाक्य लिखने वाला थ्रिलर, सस्पेंस वाला लेखक लगता था. कुन्टज की इस किताब में बताया गया है कि संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद जैसे ही की लाश का तापमान 86 डिग्री फेरनहाइट या इससे कम पर पहुंचता है, सारे वायरस तुरंत मर जाते हैं. असर सिर्फ इंसान पर दिखाया गया है जानवरों पर नहीं.
लेकिन आज किताब को पढ़ने वाले कई वर्गों में विभाजित हो गए हैं. किताब को पढ़ने वालों में अब शौकिया पुस्तक प्रेमी ही नहीं हैं बल्कि रिसर्च, दवाई बनाने वाली कंपनियां और मेडिकल से जुड़ी हस्तियां भी शामिल हो गई हैं. आंखिर, दुनिया को एक ऐसे 'नए' खतरे से बचाना जो है. जो अब महामारी बनने की कगार पर है. लेकिन जिसका जिक्र कुंट्ज ने 1981 में ही कर दिया था. किताब में वायरस का 100 फीसदी मोरेलिटी रेट है जबकि आज ऐसा नहीं हैं. 24 घंटे के अंदर मौत मतलब. जबकि आज ऐसा नहीं है. कई लोग ठीक भी हो रहे हैं और संक्रमित होने के बाद कई दिनों, हफ़्तों वे जिन्दा रहे हैं और ठीक हो कर घर गए हैं. कई लोगों का कहना है कि किताब में कोड वुहान-400 1989 में दूसरी बार जब किताब को पब्लिश किया गया उस वक्त वक्त जोड़ा गया. जबकि शुरू में किताब में उसी कोड का नाम गोर्की-400 था जो एक रूसी इलाके से जुड़ा था . जबकि एक्सपर्ट द्वारा अभी मृत्यु दर 3 से 4 फीसदी बतायी जा रही है. इसलिए कुंट्ज एक लुभावना लेखक हो सकते हैं लेकिन मानसिक तौर पर जानकार नहीं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें