देहरादून : कोरोना वायरस से देश एकांतवास में है. इस महामारी ने लोगों को अपने घरों में रहने को मजबूर कर दिया है ताकि बाहर संक्रमण के चपेट में न आये. ऐसे में लोग अपने आप को बोरियत से बचाने के लिए आजकल लूडो और कैरम, चैस या शतरंज का भरपूर उपयोग कर रहे है. अचानक लूडो, कैरम, चेस जो कभी अलमारियों में पड़े-पड़े सालों हो जाते थे रखे हुए, आज अचानक में इस संक्रमण काल में करोड़ों परिवारों का सहारा बन गए हैं ये आम खेल.
इन खेलों की खूबी यह है कि ये खेल एक तो महंगे हीं है, परिवार के लोग आपस में खेल सकते हैं. बच्चे हो या बुजुर्ग सभी उम्र के लिए खेल सकते हैं. शारीरिक तौर पर भी इनमें जोर नहीं लगता है. दो या चार व्यक्ति जो भी मौजूद हों खेल सकते हैं. सबसे आसान भी है खेलने में. आजकल लोग बुजुर्ग हो या जवान, बच्चे हों या महिलायें सभी कैरम, लूडो खेलने में व्यस्त दिखाई देते हैं. इससे एक तो समय का पता नहीं चलता दूसरा इसके लिए कोई ज्यादा जगह भी नहीं चाहिए. इनको आप टेबल, बेड, सोफा या जमीन पर कहीं पर भी खेल सकते हैं. ये खेल सैकड़ों वर्षों से खेले जाते हैं. प्राचीन खेल के तौर पर इनको जाना जाता है. आजकल इन खेलों को आप डिजिटल माध्यम से भी खेल सकते हैं. अगर आपके पास खेलने के लिए बोर्ड, गोटियां, प्यादे नहीं हैं भी तो लोग ऑनलाइन या फिर उनके मोबाइल में डाउनलोड किया हुआ होता है.लोग अपने मोबाइल में भी खेलते हैं. लॉकडाउन से पहले शहरों में लोग ऑफिस आते-जाते समय भी खेलते हैं अपने-अपने मोबाइल में.
कैरम कब और कैसे खेला जाता है ?
कैरम एक शानदार खेल है. इसे दो, तीन या चार खिलाड़ी खेल सकते हैं. इसके लिए एक कैरम बोर्ड और नौ-नौ काली और पीली गोटियाँ तथा एक लाल रंग की रानी गोटी होती है. एक स्ट्राइकर होता है जिससे मारकर गोटियों को कैरम बोर्ड के चारों कोनों पर बने छिद्रों में से किसी एक में धकेलना होता है. इसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई. प्रथम विश्व युद्ध के बाद यह बहुत लोकप्रिय हुआ. इसके कई प्रतियोगितायें होती थीं. 1935 के आस पास यह भारत के अलावा श्रीलंका में भी खेला जाने लगा. इसके लिए आधिकारिक रूप से खेल प्रतियोगितायें भी होनी शुरू हुई. वर्ष 1988 में इसका अंतरराष्ट्रीय रूप में विकास हुआ और अंतरराष्ट्रीय कैरम महासंघ की स्थापना चेन्नई, भारत में हुई. इसी वर्ष इसके नियमों को प्रकाशित किया गया और यह धीरे-धीरे अन्य देशों में लोकप्रिय होता हुआ,अब यह पूरी दुनिया में फैल गया.
लूडो असल में चौपड़ा का मॉर्डन रूप है आज का लूडो. लूडो को खेलने के लिए गट्टा चाहिए होता है सबसे पहले और गोटियां .गत्ते पर बना यह खेल अमूमन आज के समय हर कोई खेलता है. खासकर खाली बैठे रहने से बेहतर टाइम पास करने का लूडो सबसे अच्छा साधन है. कुछ-कुछ ऐसा ही खेल है चौपड़. प्राचीन काल से ही चौपड़ का खेल खेला जाता रहा है. महाभारत के समय कहें या फिर मुगल साम्राज्य में या फिर राजपूतों के रजवाड़ों में यह खेल आम था. उत्तराखंड में भी यह खेल प्राचीन समय से ही खेला जाता रहा है. सीधी तरफ गिरने वाली कौड़ी के अंक गिने जाते हैं और उसी के अनुरूप बारी-बारी से खेलने वाले की गोटियां आगे बढ़ाई जाती हैं.
शतरंज (चैस) दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला एक बौद्धिक एवं मनोरंजक खेल है. बताते हैं कि किसी अज्ञात बुद्धि-शिरोमणि ने पाँचवीं-छठी सदी में यह खेल संसार के बुद्धिजीवियों को भेंट में दिया था .समझा जाता है कि यह खेल मूलतः भारत का आविष्कार है, जिसका प्राचीन नाम था- ‘चतुरंग’; जो भारत से अरब होते हुए यूरोप गया और फिर 15 या 16 वीं सदी में तो पूरे संसार में लोकप्रिय और प्रसिद्ध हो गया. इस खेल की हर चाल को लिख सकने से पूरा खेल कैसे खेला गया इसका विश्लेषण अन्य भी कर सकते हैं. हकीकत में शतरंज एक चौपाट (बोर्ड) के ऊपर दो व्यक्तियों के लिये बना खेल है. चौपाट के ऊपर कुल 64 खाने या वर्ग होते है, जिसमें 32 चौरस काले या अन्य रंग ओर 32 चौरस सफेद या अन्य रंग के होते है. खेलने वाले दोनों खिलाड़ियों को काला और सफेद कहलाते हैं. प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक राजा, वजीर, दो ऊँट, दो घोडे, दो हाथी और आठ सैनिक होते है. बीच में राजा व वजीर रहता है. किनारे में ऊँट, उसके दूसरे किनारे में घोड़े ओर अंतिम कतार में दो दो हाथी रहते है. उनकी अगली रेखा में आठ पैदल या सैनिक रहते हैं. चौपाट रखते समय यह ध्यान दिया जाता है कि दोनो खिलाड़ियों के दायें तरफ का खाना सफेद होना चाहिये तथा वजीर के स्थान पर काला वजीर काले चौरस में व सफेद वजीर सफेद चौरस में होना चाहिये. खेल की शुरुआत हमेशा सफेद खिलाड़ी से की जाती है. विश्वनाथन आनंद कई बार विश्व चैम्पियन रह चुके हैं इस खेल में, भारत के कई अन्य खिलाड़ी विश्व रैंकिंग में टॉप पर आये हैं इस खेल पर हैं. भारत के अलावा रूस का भी इस खेल में काफी अच्छा नाम है.
इन खेलों की खूबी यह है कि ये खेल एक तो महंगे हीं है, परिवार के लोग आपस में खेल सकते हैं. बच्चे हो या बुजुर्ग सभी उम्र के लिए खेल सकते हैं. शारीरिक तौर पर भी इनमें जोर नहीं लगता है. दो या चार व्यक्ति जो भी मौजूद हों खेल सकते हैं. सबसे आसान भी है खेलने में. आजकल लोग बुजुर्ग हो या जवान, बच्चे हों या महिलायें सभी कैरम, लूडो खेलने में व्यस्त दिखाई देते हैं. इससे एक तो समय का पता नहीं चलता दूसरा इसके लिए कोई ज्यादा जगह भी नहीं चाहिए. इनको आप टेबल, बेड, सोफा या जमीन पर कहीं पर भी खेल सकते हैं. ये खेल सैकड़ों वर्षों से खेले जाते हैं. प्राचीन खेल के तौर पर इनको जाना जाता है. आजकल इन खेलों को आप डिजिटल माध्यम से भी खेल सकते हैं. अगर आपके पास खेलने के लिए बोर्ड, गोटियां, प्यादे नहीं हैं भी तो लोग ऑनलाइन या फिर उनके मोबाइल में डाउनलोड किया हुआ होता है.लोग अपने मोबाइल में भी खेलते हैं. लॉकडाउन से पहले शहरों में लोग ऑफिस आते-जाते समय भी खेलते हैं अपने-अपने मोबाइल में.
कैरम कब और कैसे खेला जाता है ?
कैरम एक शानदार खेल है. इसे दो, तीन या चार खिलाड़ी खेल सकते हैं. इसके लिए एक कैरम बोर्ड और नौ-नौ काली और पीली गोटियाँ तथा एक लाल रंग की रानी गोटी होती है. एक स्ट्राइकर होता है जिससे मारकर गोटियों को कैरम बोर्ड के चारों कोनों पर बने छिद्रों में से किसी एक में धकेलना होता है. इसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई. प्रथम विश्व युद्ध के बाद यह बहुत लोकप्रिय हुआ. इसके कई प्रतियोगितायें होती थीं. 1935 के आस पास यह भारत के अलावा श्रीलंका में भी खेला जाने लगा. इसके लिए आधिकारिक रूप से खेल प्रतियोगितायें भी होनी शुरू हुई. वर्ष 1988 में इसका अंतरराष्ट्रीय रूप में विकास हुआ और अंतरराष्ट्रीय कैरम महासंघ की स्थापना चेन्नई, भारत में हुई. इसी वर्ष इसके नियमों को प्रकाशित किया गया और यह धीरे-धीरे अन्य देशों में लोकप्रिय होता हुआ,अब यह पूरी दुनिया में फैल गया.
कैरम खेलते हुए बच्चे
लूडो कैसे और कब से खेला जाता है ?लूडो असल में चौपड़ा का मॉर्डन रूप है आज का लूडो. लूडो को खेलने के लिए गट्टा चाहिए होता है सबसे पहले और गोटियां .गत्ते पर बना यह खेल अमूमन आज के समय हर कोई खेलता है. खासकर खाली बैठे रहने से बेहतर टाइम पास करने का लूडो सबसे अच्छा साधन है. कुछ-कुछ ऐसा ही खेल है चौपड़. प्राचीन काल से ही चौपड़ का खेल खेला जाता रहा है. महाभारत के समय कहें या फिर मुगल साम्राज्य में या फिर राजपूतों के रजवाड़ों में यह खेल आम था. उत्तराखंड में भी यह खेल प्राचीन समय से ही खेला जाता रहा है. सीधी तरफ गिरने वाली कौड़ी के अंक गिने जाते हैं और उसी के अनुरूप बारी-बारी से खेलने वाले की गोटियां आगे बढ़ाई जाती हैं.
लूडो खेलते हुए छोटे-बड़े
शतरंज कैसे और कब से खेला जाता है ?शतरंज (चैस) दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला एक बौद्धिक एवं मनोरंजक खेल है. बताते हैं कि किसी अज्ञात बुद्धि-शिरोमणि ने पाँचवीं-छठी सदी में यह खेल संसार के बुद्धिजीवियों को भेंट में दिया था .समझा जाता है कि यह खेल मूलतः भारत का आविष्कार है, जिसका प्राचीन नाम था- ‘चतुरंग’; जो भारत से अरब होते हुए यूरोप गया और फिर 15 या 16 वीं सदी में तो पूरे संसार में लोकप्रिय और प्रसिद्ध हो गया. इस खेल की हर चाल को लिख सकने से पूरा खेल कैसे खेला गया इसका विश्लेषण अन्य भी कर सकते हैं. हकीकत में शतरंज एक चौपाट (बोर्ड) के ऊपर दो व्यक्तियों के लिये बना खेल है. चौपाट के ऊपर कुल 64 खाने या वर्ग होते है, जिसमें 32 चौरस काले या अन्य रंग ओर 32 चौरस सफेद या अन्य रंग के होते है. खेलने वाले दोनों खिलाड़ियों को काला और सफेद कहलाते हैं. प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक राजा, वजीर, दो ऊँट, दो घोडे, दो हाथी और आठ सैनिक होते है. बीच में राजा व वजीर रहता है. किनारे में ऊँट, उसके दूसरे किनारे में घोड़े ओर अंतिम कतार में दो दो हाथी रहते है. उनकी अगली रेखा में आठ पैदल या सैनिक रहते हैं. चौपाट रखते समय यह ध्यान दिया जाता है कि दोनो खिलाड़ियों के दायें तरफ का खाना सफेद होना चाहिये तथा वजीर के स्थान पर काला वजीर काले चौरस में व सफेद वजीर सफेद चौरस में होना चाहिये. खेल की शुरुआत हमेशा सफेद खिलाड़ी से की जाती है. विश्वनाथन आनंद कई बार विश्व चैम्पियन रह चुके हैं इस खेल में, भारत के कई अन्य खिलाड़ी विश्व रैंकिंग में टॉप पर आये हैं इस खेल पर हैं. भारत के अलावा रूस का भी इस खेल में काफी अच्छा नाम है.
शतरंज खेलते हुए बच्चे
प्रमुख खिलाड़ियों में गैरी कास्पारोव, विश्वनाथन आनंद , व्लादिमीर क्रैमनिक, कोनेरु हम्पी, जू वेंजून, मैग्नस कार्लसन, हरिका द्रोणावल्ली, फबियानों करूआना, विदित गुजराती, पेंटाला हरिकृष्णा, निहाल सरीन, रमेशबाबू प्रग्गानंधा और उत्तराखंड में उभरते दो युवा भाई सक्षम रौतेला और सद्भाव रौतेला भी हैं.
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