मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

दिल्ली की ब्लू लाइन......बाई बाई ....!


दिल्ली बस अड्डा..बस अड्डा बस अड्डा....रेलवे स्टेशन..कनाट प्लेस..., धुला कुवां, आनंद विहार.....आ जाओ आ जाओ... बस अड्डा....जाएगी...ये जाएगी....ये आवाज उस ब्यक्ति की है जो बस के कोने को पीट पीट कर चिल्ला चिल्ला कर अपनी सवारी बैठाता है ....शायद वह आवाज और दरवाजे के कोने को पीटना अब जल्द ही बंद हो जायेगा...दिल्ली की सड़कों से..31जनवरी को कोर्ट ने कुछ राहत तो दी है लेकिन सरकार की मंशा है इनको पूरी तरह से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये...और सायद कुछ दिनों में सारी बसें जो दिल्ली में लाखों लोगों को ढोती थी..वो एक इतिहास बन चुकी होंगी... .जो हज़ारों परिवार इनके सहारे अपना पेट पाल रहे थे...जिसका कमाई का जरिया था वो अब बंद हो चुका है.....वे जहन्नुम में जाएँ....सरकार को इसकी परवाह नहीं है....कौन पूछे सरकार से की ये चलाई क्योँ थी...पहले ये अच्छी लग रही थी सरकार को ....अब बुरी क्योँ हो गई...बजाये सुधार लाने के एक दम हटा दी गई...क्यूंकि जिन नेता, अधिकारी ने अपनी तिजोरी भरनी थी वो भर डाली..अब कोई दूसरी रंग की बस लाइन लायी जाएगी..... लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए बस का रंग बदल डाला लेकिन रूप-स्वरुप नहीं !
एक नजर अगर डालें तो दिल्ली में निजी बस सेवा के बारे में तो..यही कहना उचित होगा...जैसे दिल्ली उजड़ी...वैसे-वैसे निजी बस सेवा भी उजडती चली गई....जब में दिल्ली में आया उस समय डीटीसी की बसें चला करती थी...कुछ जगह पर डबल डेकर भी थी...जैसे करोल बाग़..शादी पुर डिप्पो इत्यादि...उसके बाद ..लाल लाइन आई जिसे रेड लाइन का नाम दिया गया...फिर सफ़ेद लाइन..जिसे व्हाईट लाइन कहा गया...फिर येल्लो लाइन...फिर अंडर डीटीसी जिसमे कंडक्टर सरकारी और ड्राइवर निजी हुआ करता था....और अब नीली लाइन जिसे ब्लू लाइन का नाम दिया गया....इनके रंग बदले लेकिन मिजाज नहीं ..फिर चाहे वो सरकार का हो या फिर निजी बस वालों का.....अंत में लो फ्लोर क्या आई की सरकार को इन बसों से रुसवाई हो गई...और बिना सोचे समझे इनको नमस्ते बोल दिया गया.....इनके मालिक चिल्लाते रहे कोर्ट भी गए लेकिन कुछ नहीं हुआ..और ना होने वाला....{लगता ऐसा ही है} जो कंडक्टर चिल्ला-चिल्ला बुलाता था वो आज घर के चार दीवारी में चुप बैठा है सर पकड़ कर....जो ड्राइवर दिल्ली की सड़कों पर अपने आप को राजा समझता था वो आज अपने परिवार की रोजी रोटी की जुगत में रात दिन फिर रहा है.....जो हेल्पर टांका मार कर गुजारा करता था वो आज अपनी हेल्प नहीं कर पा रहा है....ऐसी सरकार किस काम की ? जो लोगों के पेट पर लात मारती हो .....लोगों की रोजी रोटी छीन ली जिसने ? खूब ड्राइवर बने खूब कंडक्टर बने.....मगर एक अच्छी बस नहीं बना पाए जो दिल्ली को पसंद आ सके..कई लोगों ने अपने खोये इसी बस के नीचे...आंखिर में नाम ब्लू लाइन से किलर लाइन रख डाला...इसमें कंडक्टर- ड्राइवर-हेल्पर लोगों को खुले आम गाली गिफ्ट में देते थे लेकिन फिर भी लोग उसी में बैठते थे....कोलेज वाले भिड़ते थे स्टाफ है.....पुलिस वाले रोब जमाते थे स्टाफ है...डीटीसी वालों की तो यह नाजायज औलाद की तरह थे....फिर भी ये डीटीसी वालों की पिटाई कर देते थे...सवारी लेने के चक्कर में...!

लो फ्लोर बस महँगी बस है.....दिखती भी सुन्दर है...कुर्सियां भी गजब है..अपने आप दरवाजे भी खुलते हैं...ड्राइवर को भी आराम मिल गया है...जनता के लिए भी आराम दायक है...सकूं मिलता है बैठने में....फिर चाहे वातानुकूलित हो या फिर पर्दूषित......लो फ्लोर तो है....न? इसके एक दरवाजे में लिखा होता है आपकी अपनी बस है इसे साफ़ और स्वच्छ रखिये....लेकिन सबसे ज्यादा गंद तो बस का कंडक्टर ही फैलाता है, टिकेट पंच कर कर वो जितना गंद फैलाता है पूरी बस में उतना कोई एक किलो मुन्ग्फुली खा के भी नहीं करता....सरकार को इस पर ध्यान नहीं जाता है.....क्योँ न वो हरयाणा रोडवेज और राजस्थान रोडवेज की तरह पिन पंच करता है....? कौन समझाए अच्छे काम के लिए सरकार सरक-सरक कर काम करती है.....अब तो बटन से काम होता है.....रुक जाओ थोड़े दिन कंडक्टर की नौकरी भी खायेंगे ये...टोकन सिस्टम जल लागू होने वाला है.....फिर क्या करेंगे?

कुल मिलाकर जनता के लिए अच्छी बात है सुबिधा बड़ी है लेकिन अच्छी तरह से प्रबंध का ना हो पाना राजधानी के लिए अभिशाप बन बैठा है. ..और उसका खामयाजा जनता को भुगतना पड़ता है.....लोग एडजस्ट करने में ही लगे रहते हैं...जो दिल्ली की जनता का तकिया कलाम है अगर वह सीट में बैठ जाता है तो....उसे दुसरे को एडजस्ट ही करना पड़ता है...फिर चाहे वो महिला वाली चार सीट्स हो या फिर बिक्लांग वाली इकलौती कुर्सी.....फिर चाहे वो बोनट हो या फिर ड्राइवर के पीछे वाली सीट..या फिर लडकी/महिला को बैठाने में आगे रहने वाली कंडक्टर सीट......गौर करने वाली एक बात और है...अगर महिला कंडक्टर की दोस्त है तो वह अपनी सीट दे देगा और ड्रावर की है तो बोनट में बैठायेगा..फिर उसके लिए वो चालन क्योँ न दे बैठे...? चलेगा...! एडजस्ट करते करते करते लो फ़लूर तक आ पहुचे हैं....देखते हैं इसका रूप और रंग कब बदलता है और गौर करने वाली बात खासकर यह होगी राजधानी दिल्ली के लोग कब तक पसंद करते हैं.....और वह ढोल की तरह बस को पीट पीट कर लोगों को बुलाना सायद अब इतिहास बन जाए......!

[कोशिश करूँगा निजी बस सेवा पर कुछ सिरीज़ लिखने की और आप के साथ शेयर करूँ ...]

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

ye too barson ki prampra hai Gaarib k Pate par Laat maarneey ki ab chaahey usko Blue line ka naam hi kyu na de doo.......mann too aur bahut kuch likhney ka karta hai but ye soch k ruk jaata hu ki.... jaisa bhi hai..........Hai too !!!!!...BHARAT DESH HAI MERA.......!!!... :-(


Nitin Gupta...

SSJ ने कहा…

padha kar achha laga kyunki aam admi ki souch jo likhi thi,chahe kuchh bhi ho lekin ek rol is me media ne bhi nibhaya jise aap shayd behtar jante ho kyunki aap ka nivas delhi hai lekin jis tarh se tv par hamne dekha us se ek baat saaf hai ke delhi ki khabron ko befajul TRP ke chakkar me channel ne blue line accident ko ese pesh kiya jaise mano koi danv apni bhookh ko mitane k liye har roj ek aadmi ki bali mangta ho lekin agr samjhe,samjhe kya sabhi jante hain ki jis tarh india ki abadi bad rahi hai us se to kuchh samay baad log ek dusare ke niche vaise hi dab kar mar jayenge fir kis blue line ko dosh denge,kahne ka matlab itni bheed aur itni badi delhi me ese accident aam baat thi jinhe media ne galt trike se pesh kiya,apki baat sahi hai un garibon ka kya jo ghar me baith apne aur parivar ke pet ke liye inke jariye roti ka jugad karte the unke liye kya niti laai sarkar?yah bhi theek hai ke rang badle lekin iyat nahi sarkar me bethe logon me koi sa nahi jo in me swari kare.theek hai badlav ki jarurat in me thi lekin itni bhi nahi ke kisi ki roti aap log thokar maar do.blog ko ese hi badate rahiye aur aam admi ke dil ka dard byan karte rahiye .thanx

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