मुंबई में हालिया हमले में पाकिस्तान के हाथ होने की जो बात सामने आ रही हैं उसमे कोई शक की गुंजाइश नही रह गई है,और उसकी नियत क्या रही है क्या होगी इस पर भी शक किसी को नही है। सारा विश्व जानता है कौन किसने क्या किया?लेकिन इस हमले ने एक बात साबित कर दी वो है लोगू का गुस्सा ! जो खुलकर सड़क पर उतर आया. लोग अपने घर से निकलने से पहले ये सोचने लगते हैं की जाए या न जाए, और चले गए तो क्या वे सुरक्षित हैं? दुष्यंत कुमार की गजल का शेर याद आ रहा है ...
"इस शहर में कोई बारात हो या बारदात
अब किसी भी बात पर खुलती नही हैं खिड़कियाँ"
इस सबका नतीजा ये देखने को मिला की हमारे सुरक्स्य के जिम्मेवार राज्नीतिग्यौं को तुंरत हटाना पड़ा. मुख्या - मंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री तक को बदलना पड़ा. वही पाकिस्तान के ऊपर इंटरनेशनल प्रेशर की वजह से दिन प्रतिदिन वो अपना स्टेटमेंट बदल रहा है. इससे साबित होता है उसकी कारगुजारी किस तरह की है.लेकिन एक बात है वो है दोनू देश के आवाम अमन चैन चाहती है. कुछ लोग हैं जो ऐसा कर अपनी राजनीतिक रोटिया शेक रहे हैं. वही पाकिस्तान के लिए यह एक अच मौका भी है कट्टर पंथियौं के ख़िलाफ़ करवाई करने का. वही उसे आतंकवाद मामले में भारत के साथ हाथ मिलाकर, कंधे से कन्धा मिलाकर चलना चाहिए. ये दोनू देश के लिए फायदे मंद होगा. युद्ध में शामिल होना आक के हालत को देखकर ठीक नही होगा. क्यौकी दोनु देश परमाणु संपन्न देश हैं। ...
ये चार पंकितियाँ मैंने तहसीन मुनव्वर जी के "बेसाख्ता" में पढ़ी थी जो आ आज के लिहाज से ठीक प्रतीत होती है...क्यूंकि दोनु देशौं की आवाम अपने हुक्मरानू से परेशान है...
"तुम भी हो मुसीबत में, हम भी हैं मुसीबत में,
तुम जीते हो दहशत में, हम जीते हैं दहशत में,
मिल-जुल कर लड़े आओ, नफरत के जुनूनी से,
तुम अपनी हुकूमत में, हम अपनी हुकूमत में।
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