शनिवार, 31 जनवरी 2009

लास्ट नाईट ड्यूटी...

लास्ट नाईट :-
३१ जनवरी की रात मेरी अन्तिम शिफ्ट रात थी...पिछले ३ महीने से में रात्रि शिफ्ट में था...कम अपना खबरू से खेलना....पुरा देश विदेश से खबर मगाई, की और कुल मिलाकर ख़बर से ही जीते हैं...जौनालिस्ट की जिंदगी एक तरह से लोगूँ के लिए हो जाती है..अपने लिए कुछ नही कर पता है वो..लेकिन लोग नही समझ पते हैं इस चीज़ को...खैर...खबरू के मामले में हम किसी से पीछे नही थे...और सबसे बरी बात अच्छे लोगूँ के साथ काम करने का मौका मिला। मेरा बिभाग जो की एक तरह से बहुत ही महत्व पूर्ण बिभाग है...... और इस दौरान मैंने अपने और से किसी भी तरह से कोई ढिलाई नही बरती और कोसिस की की अपना सौ प्रतिशत दू। कईए बड़ी खबरे दी, घटित हुई ,और लाइव हुए...रिपोर्टर्स ने भी काफी सहयोग किया...और चाहे वो आदेश हो, अरविन्द, अजय,प्रभात हो या फ़िर निशाना जी सभी ने काफ़ी अच कम किया। शिफ्ट इंचार्ज धर्मेन्द्र सर बहुत ही अच्छे इंसान लगे चाहे वो प्रोफ़ेस्सिओनल्लि हो या फ़िर ब्यक्ति गत तौर पर उनका ब्यौहार काफी अच्छा लगा। कभी भी इर्रितेत नही होते हैं। हमेसा अपना बेस्ट करने की कोसिस करते हैं...उनसे काफी कुछ सीखने को मिला इस दौरान काफी कुछ सीखने को मिला....hअमेसा अच्छी ख़बर की खोज में रहते हैं और उस ख़बर को खेलते भी अची तरह हैं और प्रस्तुत भी अची तरह करते हैं....और सहयोगी भी काफी मदद गार रहे....मुंबई हमला ऐसा था जो बड़ा ही महत्व पूर्ण था और मैंने कोसिस की अच्छी तरह से अपना काम करू। अभी प्राइम टाइम में ड्यूटी लगी है इसलिए हो सकता है हेक्टिक लगे कुकी रात में जो भी काम करू शान्ति से करने को मिलता था दिन में ऐसा नही होगा। लेकिन बदलाव भी जरूरी है...अपने चैनल को अपना बेस्ट देने की कोशिश की है...और आगे भी देता रहूँगा...और आने वाला टाइम और चुनौती पूर्ण होगा...में जनता होऊं ..इस बीच ब्यक्तिगत तौर पर दुःख भी काफी झेलना पड़ा.... सोचा नही था वो हुआ...झेला...बुरा भी लगा...परिवार से भी अनबन रही ....और फ़िर सोचा की ये भी जिंदगी का हिस्सा है...इंसान जो सोचता है ग़लत नही सोचता है...उसने भी ठीक सोचा होगा...लेकिन मैंने कोई गलती नही की है...सब कुछ ऊपर भगवन के हाथ में छोड़ रखा है..जब मैंने किसी का बुरा नही किया तो मेरा क्योँ होगा..यही सोच कर खुश रहता होऊं और अपना कम करता होऊं..फ़िर भी भगवान् पर पुरा भरोसा है और इंसान पर भी जो होगा अच्छा होगा...लेकिन अपने काम में कोई कमी नही आने दी...घर से पिक रात करीब १०:३० या ११ बजे हो कर सीचे ऑफिस आना और सुबह सीधे घर जन..और फ़िर सोना यही दिन चर्या रही....इस बीच मम्मी का ओपेरेसन हुआ, भगवन के आशीर्वाद से ठीक रहा...कुछ अच्छे लोग मिले...लेकिन ज्यादा बात करने का मौका नही मिला...और न ही मिलने का...फ़िर भी अपना अपना होता है...मैंने सब कुछ छोड़ कर अपना टाइम अधिकतर काम में लगाया...इस बीच किसी को बुरा लगा हो तो माफ़ी चाहता होऊं...दिल का बुरा नही होऊं में , फ़िर भी कोई सब्द या ब्यौहार ग़लत लगा हो तो दोस्तों फ़िर से माफ़ कर देना......

सोमवार, 26 जनवरी 2009

राज पथ ने फ़िर से किया भव्य पर्दर्शन हमारी 60वीं वर्षगांठ का

सबने देखा राजपथ पर 60वीं वर्षगांठ का नज़ारा जो अपने आप में भव्य और सुंदर तो था ही साथ ही वीरता का परिचायक दिखने वाले जाम्बजू की कहानियौं से सारा देश गूंज उठा. इतिहास के साक्षी राजपथ पर सोमवार को भारतीय गणतंत्र यदि अपनी सैन्य क्षमता पर गर्वित था तो दूसरी तरफ शहीदों की स्मृति में विनीत और उदास भी। नज़ारा भारतीय गणतंत्र की 60वीं वर्षगांठ का उत्सव था जिसमें अपनी संस्कृति, अपनी सेना और अपने शहीदों पर समारोह के मुख्य अतिथि कजाखस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान एबशिवच नजरवायेव दुनिया की बड़ी शक्ति बनने की तरफ अग्रसर भारत के शक्ति प्रदर्शन को देखकर अभिभूत थे। आज राजपथ पर पहले बिखरीं यादें और फिर दिखी भारतीय सैन्य शक्ति व संस्कृति की बहुरंगी झांकी। कोहरे ने भी आख़िर अपनी हार मन ही ली और बियर जवानू के आगे वो भी नमस्तक हो गया...मुंबई हमले में शहीद जांबाजों के परिजन सम्मान के लिए मंच की तरफ बढ़े तो तमाम आंखे अपने आप नम हो गई। मुंबई एटीएस के पूर्व चीफ हेमंत करकरे, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और बटला मुठभेड़ के शहीद इंस्पेक्टर एम सी शर्मा समेत इंस्पेक्टर विजय एस सालस्कर, अन्य शहीदों के परिवारीजन जब राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से अशोक चक्र सम्मान ले रहे थे . पुरा देश इसको देख कर गर्व महसूस कर रहा था की हमारी रक्ष्या करने वाले जब तक ऐसे वीर रहेंगे तब तक हमें कुछ नही हो सकता है. पुरा भारत इनकी बहादुरी को सलाम कर रहा था। इसके बाद शुरू भारतीय युद्धक क्षमताओं का नजारा। सतह से सतह पर 3000 किलोमीटर तक मार करने वाली अग्नि-3, टी-90 टैंक भीष्म, टी-72 और सतह से आकाश में मार करने वाली 'आकाश' मिसाइल हर चुनौती के लिए भारत की तैयारी को रेखांकित कर रही थीं। इजरायल से एयरबोर्न अर्ली वार्निग एवं नियंत्रक प्रणाली वाले फाल्कन राडार के साथ वायुसेना अपनी प्रस्तुति कर रही थी. रोहिणी थ्री-डी राडार के साथ यह प्रणाली भारत को एयरोस्पेस पावर बनने में मदद करेगी. वही महिलाऊ की तुक्दिया भी देखने को मिली जो कन्धा से कन्धा मिला कर चलते हुए अपनी वीरता का अहसास करा रही थी. राजपूत रेजिमेंट जय बजरंग बली का उद्घोष करते जवान आगे बर्हते नज़र आ रहे थे. वही पैराशूट रेजिमेंट के विशेष बल कमांडो तो अपने पुरे जोश खरोश के साथ आगे बर्हते चले जा रहे थे. अंत में मोटरसाइकिल सवारों ने शानदार पर्दर्शन कर यह दिखा दिया की भारत हर शेत्र में आगे रहना चाहता है.अर्द्धसैनिक बल भी अपने फ़र्ज़ और वीरता का परिचायक देने में पीछे नही रहे. इनमे सीमा सुर्क्क्ष्य बल ,केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल , केन्द्त्रिया औद्योगिक सुरक्ष्य बल,भारतीय तिब्बत बॉर्डर पुलिस और अन्य अपना पर्दर्शन करने को पीछे नही थे. ...

रविवार, 25 जनवरी 2009

क्या जीत पायेगा ऑस्कर?

कहानी हिन्दुस्तानी,पात्र हिन्दुस्तानी,लोकेशन हिन्दुस्तानी,गरीबी हिन्दुस्तानी,संगीत हिन्दुस्तानी,संगीतकार हिन्दुस्तानी,कहानी जिसने लिखी वो हिन्दुस्तानी केवल निर्देशक ब्रितानी.... डैनी लोयिड नाम है उनका ....अपने आप में सख्सियत है और एक उम्दा इंसान भी हैं। ये फ़िल्म ऑस्कर ले आए कोई शक की गुंजाइश भी नही है। अगर यह ऑस्कर जीत जाती है तो यहाँ की फ़िल्म इंडस्ट्री को काफी फायदा होगा। जो अभी तक बाहरी मुल्कू में सिर्फ़ इसलिए जनि जाती थी की पेड़ के चारू तरफ़ एक लड़का और एक लड़की नाचते हैं, उचल कूद करते हैं और कई बार कुछ लोग उनके चारू तरफ़ उनकी तरह डांस करते हैं....और लडाई ऐसी होती है जैसे रोबोट लड़ रहे हो...पता नही कौन कहा से गोली मर दे और किसको ...कुछ भी हो सकता है...इसलिए तथ्य आधारित प्रस्तुतीकरण करने में हम काफ़ी पीहे रहे हैं...इसलिए अन्तर रास्ट्रीय मंच पर पहचान की मोहताज़ रही है। खासकर अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर। इस फ़िल्म में जो गरीबी बेचीं गई है हिंदुस्तान की वो सोचनीय है......वही इतने ऑस्कर नामांकित होने के बाद गरीबी हिन्दुस्तान की न रह कर बल्कि एक अभिशाप बन कर रह गई है.....स्लम से करोड़पति बनना या बनाना मुंबई की फितरत रही है.....और इस शहर ने पता नही अनगिनत लोगूँ को ऐसा बनवाया भी है। इसलिए मुंबई को सप्नू का शहर भी कहा जाता है। जो इंसान सपने देखता है वो कामयाब भी होता है। निर्देशक ने बख्बूबी अपना कम किया है.....विदेशी होने के बावजूद उसने विषय की गहराई को समझा है.....परखा है और फ़िर प्रस्तुत किया है....इसी का नतीजा है की वो ऑस्कर के दरवाजे पर आज दस्तक दे रही है.....क्या यह फ़िल्म जीत पायेगी ऑस्कर....हमें उम्मीद है अबकी बार ऐसा होगा। अल्लाह रखा रहमान ने जो संगीत दिया है वो बहु उम्दा है और वैसे भी हमेसा काबिले तारीफ और शानदार रहा रहा है उनका संगीत। संगीत पैदा करने में परिश्रम् करते हैं। यही उनकी सफलता का राज है। उसको महसूस करते हैं उसको जीने की कोसिस करते हैं यहाँ पर उन्हूने हिन्दुस्तानी फ़िल्म इंडस्ट्री को जो नया आयाम दिलवाया है उसके लिए यह देश उनका हमेसा शुक्र गुजार रहेगा, और हम दुआ करते हैं यह फ़िल्म ऑस्कर जीते ताकि आने वाला कल हिन्दुस्तान का भी हो.....

अगर ओस्कर जीत लेती है ये फ़िल्म तो रहमान और समूचे देश के लिए यह बहुत खुसी की बात होगी...और हमें उम्मीद है की ऐसा होगा......जरूर होगा.....

स्लम डौग मिल्लेनिअर ?







Kya jeet payegi OSCAR?



मंगलवार, 20 जनवरी 2009

वेलकम अमेरिकन प्रेजिडेंट

बराक ओबामा विश्व शक्ति के पहले राष्ट्रपति बन ही गए। २० जनवरी २००९ को जब हमने इस अमेरिकी रास्त्रपति की शपथ शमारोह देखा। काफ़ी अच्छा लगा । लोग कितनी रूचि ले रहे थे अपने राष्ट्रपति के बारे में। उनकी आखु में साफ़ दिख रहा था की वे क्या चाहते हैं। किसी भी लोकतंत्र के लिए इससे खुसी की बात और क्या हो सकती है जब दो नेता आपस में चुनाव लड़ रहे हो और फ़िर उनमे से एक जीत ते ही उसी को वो अपनी सरकार में शामिल कर लेते हैं वो भी खास ओहदा दे कर। और ऐसा ही बराक ओबामा ने किया हिलेरी को अपनी सरकार में शामिल कर। यह बहुत नेक और दूरदर्शी इंसान की सोच हो सकती है। और अगर वह राजनेता है या बनता है तो निश्चित ही उस देश के लिए खुसी का मौका होगा। हमारे देश के नेताऊ को इस बात से सीख लेनी चैये। और इसमे शर्म वाली कोई बात नही होनी चाइये। विश्व में तरह तरह की समस्याए हैं एक तरफ़ आतंकवाद वही दूसरी तरफ़ आर्थिक मंदी दोनू ही नासूर की तरह हैं। लेकिन ये आने वाला समय कैसा निकालता है देखने वाली बात है। वही दूसरी तरफ़ अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है और लोग इसे एक नए युग की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं। लोगों को उम्मीद है कि ओबामा के कार्यकाल के दौरान नस्ली रिश्तों में सुधार आएगा।
जहा तक नस्लवाद की बात करे तो 22 फीसदी श्वेत समस्या मानते हैं, जबकि 44 फीसदी अश्वेत इसे गंभीर मसला मानते हैं। इसी तरह नस्लीय समानता के मामले में भी श्वेत और अश्वेतों के विचार जुदा हैं। जहां पचास फीसदी अश्वेत मानते हैं कि अफ्रीकी-अमेरिकियों ने नस्लीय समानता का लक्ष्य हासिल कर लिया है या जल्दी ही कर लेंगे, जबकि 72 फीसदी श्वेतों ने कहा कि दोनों समुदायों में कोई नस्ल के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।
वही हिंदुस्तानियों की हसरत क्या है देखने और सोचने वाली बात है । दुनिया भर में फैले भारतीयों सहित पूरी दुनिया ओबामा से उम्मीद लगाए बैठी है। सवाल है कि आखिर लोग ओबामा से क्या चाहते हैं। यह जानने के लिए बीबीसी व‌र्ल्ड ने एक सर्वे करवाया, जिससे पता चला कि वैश्विक आर्थिक संकट को दूर करना ओबामा की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। पेश है ओबामा से भारतीयों की उम्मीदें:
-63 फीसदी भारतीय मानते हैं कि अमेरिका का शेष विश्व के साथ रिश्ता सुधरेगा
-35 फीसदी भारतीय चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को सर्वोच्च प्राथमिकता दें ओबामा
-28 फीसदी भारतीय चाहते हैं कि इजरायल-फलस्तीन संकट हल करने को दी जाए वरीयता
-27 फीसदी भारतीय चाहते हैं कि इराक से वापस आ जाए अमेरिकी फौजें
-26 फीसदी चाहते हैं कि अफगानिस्तान सरकार को मिलती रहे अमेरिकी मदद
पहले क्या करें
बीबीसी का एक सर्वे हुआ था इसमे लोगूँ की क्या सोच थी...
1-वैश्विक आर्थिक संकट का समाधान: 72 फीसदी
2-इराक से अमेरिकी फौजों की वापसी: 50 फीसदी
3-जलवायु परिवर्तन से लड़ने की जरूरत: 46 फीसदी
4-दूसरे देशों से अमेरिकी रिश्तों में सुधार:46 फीसदी
5-इजरायल-फलस्तीन संकट का हल: 43 फीसदी
जहा तक अमेरिका में अश्वेतों के संघर्ष की कहानी का है वो इस प्रकार है.
1619: अमेरिका में अफ्रीकी गुलामों का पहुंचना शुरू
1800: अमेरिका में गुलामों की संख्या 66 लाख
1861: अमेरिका में गृह युद्ध प्रारंभ
1865: गृह युद्ध खत्म, संविधान ने गुलामी प्रथा खत्म की, लेकिन नस्लभेद जारी रहा
1950-60: नस्लभेद के खिलाफ अश्वेत और प्रबुद्ध श्वेत सड़कों पर उतरे। 110 शहरों में नस्ली दंगे
1955: अश्वेत महिला रोजा पा‌र्क्स ने श्वेत के लिए बस में सीट खाली करने से इनकार किया
1963: मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने वाशिंगटन में अपना मशहूर भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कहा था, 'आई हैव ए ड्रीम' [मेरे पास एक सपना है]
1964: सिविल राइट्स एक्ट पर हस्ताक्षर। सभी को बराबर अधिकार। श्वेत और अश्वेतों में विवाह पर रोक हटी
1968: मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या
1989: कोलिन पावेल अमेरिकी सेना के पहले अश्वेत प्रमुख बने। बाद में उन्होंने विदेश मंत्री का भी जिम्मा संभाला
2008: बराक ओबामा राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले पहले अश्वेत बने
कल का दिन नया होगा ओबामा के लिए और एक नई सोच और ने ऑफिस के साथ नए युग में नई कार्य शैली के साथ दिखायी देंगे। हमारी शुभकामनाये उनके साथ हैं ......और तहे दिल से स्वागत भी करते हैं..लेकिन याद रखना उनके ये शब्द ..."महानता कभी आसानी से नही मिलती"....बराक ओबामा !

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

निहिलिस्म----कुछ भी नही....


Nihilism – Abandoning Values and KnowledgeNihilism derives its name from the Latin root nihil, meaning nothing, that which does not exist. This same root is found in the verb “annihilate” -- to bring to nothing, to destroy completely. Nihilism is the belief which:
labels all values as worthless, therefore, nothing can be known or communicated.
associates itself with extreme pessimism and a radical skepticism, having no loyalties. The German philosopher, Friedrich Nietzsche (1844-1900), is most often associated with nihilism. In Will to Power [notes 1883-1888], he writes, “Every belief, every considering something true, is necessarily false because there is simply no true world.” For Nietzsche, there is no objective order or structure in the world except what we give it. The objective of nihilism manifests itself in several perspectives:
Epistemological nihilism denies the possibility of knowledge and truth, and is linked to extreme skepticism.
Political nihilism advocates the prior destruction of all existing political, social, and religious orders as a prerequisite for any future improvement.
Ethical nihilism (moral nihilism) rejects the possibility of absolute moral or ethical values. Good and evil are vague, and related values are simply the result of social and emotional pressures.
Existential nihilism, the most well-known view, affirms that life has no intrinsic meaning or value.
Nihilism – A Meaningless WorldShakespeare’s Macbeth eloquently summarizes existential nihilism's perspective, distaining life:
Out, out, brief candle! Life's but a walking shadow, a poor player That struts and frets his hour upon the stage And then is heard no more; it is a tale Told by an idiot, full of sound and fury, Signifying nothing.Philosophers’ predictions of nihilism’s impact on society are grim. Existentialist, Albert Camus (1913-1960), labeled nihilism as the most disturbing problem of the 20th century. His essay, The Rebel1 paints a terrifying picture of “how metaphysical collapse often ends in total negation and the victory of nihilism, characterized by profound hatred, pathological destruction, and incalculable death.” Helmut Thielicke’s, Nihilism: Its Origin and Nature, with a Christian Answer2 warns, “Nihilism literally has only one truth to declare, namely, that ultimately Nothingness prevails and the world is meaningless."
Nihilism – Beyond NothingnessNihilism--choosing to believe in Nothingness--involves a high price. An individual may choose to “feel” rather than think, exert their “will to power” than pray, give thanks, or obey God. After an impressive career of literary and philosophical creativity, Friedrich Nietzsche lost all control of his mental faculties. Upon seeing a horse mistreated, he began sobbing uncontrollably and collapsed into a catatonic state. Nietzsche died August 25, 1900, diagnosed as utterly insane. While saying Yes to “life” but No to God, the Prophet of Nihilism missed both.

शनिवार, 10 जनवरी 2009

के एस मजिला जी का आकस्मिक देहांत....

इंसान जिंदगी में आया तो उसे एक दिन जाना भी है, यह सत्य है ! इसी कड़ी में पिछले जनवरी २००९ को मेरे बड़े नाना जिनको हम बूबू जी भी कहते हैं, स्वर्गवासी हो गए ! उनका देहांत कांदा में उनके अपने पैत्रक विल्लेज में हुआ। उनके बारे में कहू तो बहुत कुछ है, लेकिन यहाँ पर कुछ सबदु के जरिये आपके सामाने उनकी खूबिया रखने की कोसिस कर रहा होऊं। जो चीज़ हम लोगूँ ने उनसे सीखी लेकिन जो अहम् चीज़ देखने को मिली वो भी थी उनकी निडरता और बेबाक तरीके से बात को कहने की खूबी। मुझे नही लगता वो किसी से डरे जिंदगी में। क्यूंकि उन्हूने निडर जिंदगी जी है। मुझे अपना बचपन उनके नजदीक बिताने का सौभाग्य रहा, और मैंने देखा की उन्हूने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ ऐसे काम किया जो आम लोगूँ के लिए समाज के लिए काफी फैदेमंद रहे। वो एक रियल अग्ग्रेस्सिव इंसान रहे हैं। जहा तक हमारी अपनी बात ,ये पारिवारिक श्यति तो है ही साथ ही समाज,इलाके के लिए भी यह बहुत बड़ी दुःख की बात है।

क्योंकि वो साँप काटने से लेकर दम और अन्य कई बीमारियौं का सफल इलाज़ जानते थे। उसके लिए वे देशी दवाई bअनाते थे, ख़ुद मैंने कई बार जडी बूटी लाते हुए देखा है। लेकिन कभी क्या है और किस चीज़ के लिए है कभी समझने की कोशिश नही की। उनका आकस्मिक देहनत होने से मुझे बड़ा दुःख हुआ क्यूंकि उन्हूने दुःख में भी पुरे गर्व के साथ जीना सीखा। आदमी दुबारा नही आता है लेकिन उसकी यादे हमेसा के लिए रहती हैं...... एक बार जब में डेल्ही आ रहा था और उनसे मिलने के लिए गया और मैंने चरण स्पर्श किए तो वो बोले रुक थोडी देर यही पर। मैंने सोचा क्या कहेंगे पता नही। लेकिन थोडी देर बार ए तो उन्हूने मुझे २० रुपये दिए और कहा की नाती रास्ते कुछ अची चीज़ लेना मगर कोई ख़राब चीज़ मत लेना जिससे तुम्हे नुकशान ...हो। उन्हूने अपने लंबे परिवार बचू की अच्छी तरह से शादी ब्याह कर अपनी जिमीदारी निभायी। जीवन के अन्तिम दिनू तक वो खूब काम करते थे और कभी काम करने से नही हिचकते थे। में तो सिर्फ़ उनकी आत्मा के लिए दुआ कर सकता होऊं बाकि उनका आशीर्वाद हमारे सर के ऊपर रहना चैये यही कामना है.....

सोमवार, 5 जनवरी 2009

What is “GAZA”?




What is “GAZA”?

The name name “GAZA” has become huge popular in media whether it is in bulletin’s headlines or front story of any tabloid or news papers। The Gaza is common name in every household of the world. Lets look at this what it is and why it has become so popular।

Gaza strip is a narrow piece of land just 40 km long and between 5km and 10 km wide attached with Israel and Egypt to its south. Over 1.4 million Palestinians lives here. In 1993 , an accord was finalized between Israel and Palestinian political representatives in Oslo, Norway, which phased transfer of governmental authority to Palestinians was to happen. According the accord, Israel retained control of air space, territorial offshores, offshore maritime access, imports and exports and so on. Israeli forces left Gaza city and other areas in 1994 and a new Palestinian athrority led by late Yasser Arafat took over administration of the strip. However, it was not until 2005 that Israel actually removed all Israeli settlements and military bases in the Gaza Strip. By September 2005, it formally declared and end to Israeli militarily rule.


If we go to its long history we get the mid 16th century till the first world war, Gaza was part of Ottoman Empire। After the war Gaza became a part of the British mandate of Palestine. Soon after Israel declared its independence in 1948, Egypt moved in to the Gaza strip, sparking off the Arab-Israeli war of 1948. in 149, Israel and Egypt came to an agreement by which the strip was occupied by Egypt from 1949 till 1967, except for a brief occupation by Israel for four months in 1956. in1967, war broke out againbetween Egypt and Israel and thइस time Israel occupied the Gaza Strip and held on to ittill 1994.

Israel with drawn people in Gaza had to contend with the sanctions imposed by Israel। Israel’ blockade and the resulting international isolation have left them in a dire economic situation. Rafah crossing is Gaza’s sole contact with the outside world not under direct Israel. Officially goods can enter from Egypt by the Kerem Shalo crossing and from Israel via the Sufa and Karni crossings, both of which are controlled by Israeli army. This continued control has allowed the Israeli state to control the inflow and out flow of Gaza’s essential resources, including food, and often led to severe shortages. In the elections held in January 2006, Palestinians voted overwhelmingly for Hamas, the militant islamist Palestinian group. This led to Isreal , the EU and US which consider Hamas a terroirist organization cutting off aid to Gaza strip leadind to its economic collapse. Hamas does not acknowledge the existence of Israel and continues to fire short-range homemade rockets, which can reach bear by Israeli population centres, such as Sderot, less than a kilometer from Gaza’s north-east corner.

These days you can see how many peoples have been killed in this conflict. And still this un-humanitarian process is going on. No one to take care no one to think about this. Even the UN council is also tight lipped. No concrete steps has been taken yet from their side.



गुरुवार, 1 जनवरी 2009

ये कैसा "हैप्पी न्यू इयर" ?

हमें आजाद हुए आज ६० वर्ष हो चुके हैं,इस देश के लोगू को अन्ग्रेजू का हंटर अभी तक याद है. उसी हंटर का नतीजा है की हम अभी तक अपना नव वर्ष न मनाकर अन्ग्रेजू का "हैप्पी न्यू इयर " मानाने में लगे हुए हैं. ३१ दिसम्बर या फ़िर १ जनवरी को हम साल के अहम् दिन मानते हैं. जबकि इसमे ऐसा कुछ भी नही है. जैसे और दिन होते हैं वैसे ही ये भी है. और न ही कोई प्राकर्तिक बदलाव इन दिनू में देखने को दीखता है. एक सनक है अंग्रेजी कैलंडर शुरू होता है तो अँगरेज़ तो मनाते ही हैं साथ में हम भी उनके पीछे पीछे हो लेते हैं. नक़ल करने की हमारी आदत आज तक नही गई और अब तो यह हर हिन्दुस्तानी के खून में दौर्द्ता है। बात यह नही की यह त्यौहार या दिन नही मानना चैये बात है जब उनका आप लोग मन रहे हैं तो हम अपना क्योँ नही मानते हैं। किसी भी त्यौहार को मानना अच्छी बात है। खुसी किसी भी रूप में मनाई जाए उसकी कोई जगह नही ले सकता है। में यह नही कहता की यह नही होना चैये या फ़िर इसकी आलोचना कर रहा हूँ बल्कि मेरा मन्नना है की आज के युग और पढ़े लिखे भारतीय को अपने त्यौहार मानाने में क्या आप्पत्ति है। हम जितना तरक्की कर रहे हैं उतना ही अपने तौर तरीके भूलते जा रहे हैं। वही चीन, जापान, कोरिया ऐसे मुल्क है जो अपनी संस्कृति का ताना बाना बुनकर आगे जन चाहते हैं ।
अब देखिये नया साल मुबारक हो, हैप्पी न्यू इयर,सेम तो यू कहते कहते हम अपने आप दिमागी रूप से संतुष्ट करना चाहते हैं। क्या यही है हमारा तरीका बोलने का या फ़िर सुभकामना देने का? अंग्रेज्जी कैलेंडर एक जनवरी से शुरू होता है। अंग्रेजियत तो इस पर काम करती ही है और उसे काम करना भी चैये । मगर भारत जैसे पारंपरिक देश को इस पर इतना गर्व होने का क्या औचित्य है। हम ६० साल से आजाद है लेकिन आज तक इस 'हैप्पी न्यू इयर' की संस्कृति को पाले हुए है। और वो भी इतनी बुरी तरह की अपना पराया सब भूल कर। अन्गिनात पैसे फूकते हैं, पार्टी करते हैं, नाचते गाते हैं। न जाने क्या क्या कर बैठते हैं। इस दिन के लिए जबकि हिंदू कालानेंदर शुरू होता है । चैत्र के महीने में लेकिन उस दिन को कोई भारतीय इस तरह तवज्जू नही देता है। ऐसा क्योँ? जबकि हम पूजा पाठ, शादी ब्याह, हवं कोई शुभ काम हुमपने कैलेंडर को देखकर करते हैं। लेकिन उसी कैलेंडर का पहला दिन या नव वर्ष हैप्पी न्यू इयर भूल जाते हैं। ये कहा की मंशिकता है। इस मंशिकता को बदलने की जरूरत है । मैं चाहता होऊं की इस दिन को भी भारतीय अनय फेस्टिवल की तरह पूरी जोश नत्मयता से मनाये। जितना अंग्रेज़ी कैलेंडर के पहले दिन को हम मानते हैं। जिससे इस दिन का महत्व बढे और इसको उसका असली नाम मिल सके ..


Дели: правительство Индии вводит запрет на 59 китайских приложений, включая работу Tiktok в Индии, в том числе UC Brozer

-Collab на Facebook может заменить Tik Tok, может скоро запустить Collab в Индии -Решение заставило китайские технологические компании сд...