बुधवार, 25 मई 2011

एक कलाकार जो DTC बस में पैदा हुआ लोगों के लिए








'हो चुकी जब ख़त्म अपनी जिंदगी की दास्ताँ,उनकी फरमाईस हुई है इसको दोबारा कहें"

ये कवि शमशेर की लिखी पंक्तियाँ उस सख्स पर ठीक बैठती है जो अपने लिए नहीं बल्कि लोगों के लिए जीता है। जिसे अपनी जिंदगी का ख्याल नहीं है बल्कि लोगों की फरमाइश का इंतज़ार है. जो पैसे का मोहताज नहीं बल्कि प्यार का कदरदार है. ऐसा ही एक कलाकार जो पिछले पंद्रह सालों से राजधानी की डीटीसी की बसों में गा रहा है और समाज को निहायत एक सुन्दर पैगाम दे रहा है जिसका नाम है ''जिन्दादिली''!

समय रात दस बजे, जगह दक्षिण दिल्ली का श्रीनिवासपुरी बस डिप्पो जहाँ से बस नंबर ७६४ नजफगढ़ के लिए चलती है. वहीं से होता है जिन्दादिली का सफ़र और कुछ घंटों के लिए रुक जाता है पालम पहुचने पर और पीछे छोड़ जाता है एक पैगाम जिसे लोग सोचते हैं, महसूस करते हैं और अगले दिन फिर से जिन्दादिली का हमसफ़र बन जाते हैं. यह सफ़र रोज चलता है दोपहर में ऑफिस जाते हुए और शाम में घर आते हुए सिर्फ और सिर्फ बस में, जो आम लोगों की बस है, जहाँ भीड़ भी है,खालीपन भी है, जहाँ प्यार भी और दुस्साहस भी है. इस बस में चलने वाले अधिकतर डीटीसी स्टाफ के अलावा आम लोगों की भी तादाद होती है और वह इस शख्स को देखकर मुस्करा देते हैं, रोज आने वाले कोई हाथ मिलाता है तो कोई अपने गाने की फरमाईस देता है, कोई ताली बजाता है तो कोई चुप चाप सुनता रहता है. मगर सुरेन्द्र “आनंद” भी कहते हैं और यह नाम आम लोगों ने ही उन्हें दिया और उसे यह पसंद भी करते हैं
'आनंद' नाम का यह सख्स लोगों को एक अदभुत आनंद दे जाता है. उनका अंदाज भी निराला है, सर में खास तरह की टोपी पहने वह दिल्ली के लोगों के आनंद बन चुके हैं वह एक अच्छी संस्थान में नौकरी करते हैं अच्छा कमाते हैं और एक खुशहाल जिंदगी अपने परिवार के साथ बिता रहे हैं.जब दिन भर काम के दवाब से और थके हारे लोग जब अपने घर जा रहे होते हैं तब 'आनंद' की आवाज डीटीसी बस के इंजन की गरजती आवाज को शांत करती है जिसमे सिर्फ नगमों की ठंडी बौछार होती है जो लोगों के दिलों में उतर कर उनको सकूं देती है. उनको मरहूम किशोर कुमार से बड़ा प्यार है उनके गाने तो उनकी जबान पर रटे हुए हैं और उतने ही दिल से वह उनको गाते भी हैं. उनकी गायकी की ख़ास बात है बिना संगीत के लफ़्ज़ों को पिरोना. जो अपने आप में एक अनोखी बात है और उनका कहना भी है सब लोग संगीत का सहारा ले कर गा रहे हैं, कोई बिना संगीत के गा कर तो दिखाए? उनका कोई गुरु नहीं है बल्कि हरियाणा के एक छोटे से गाँव से निकल कर गायकी का शौक चढ़ा और इसी शौक को उन्हूने बनाया अपना मिशन.उन्हें सीट में बैठ कर गाना अच्छा नहीं लगता खड़े हो कर लोगों की ओर मुंह कर गाते हैं. बस में कोई पीछे से धक्के मार रहा होता है तो कोई आगे से खींच रहा होता है, कोई टिकट लेने के लिए जद्दोजहद में लगा होता है लेकिन लोग उनके गाने को सुन कर जाते हैं. सबसे ख़ास बात उसमे बैठा डीटीसी का स्टाफ और और दैनिक यात्री भी उनको पसंद करते हैं. वह गाना ख़त्म करके बीच बीच में अच्छी बातें भी करते हैं, उसमें सभी तरह की बातें होती हैं, कभी वह सरकार पर कटाक्ष करते है तो कभी किसी महापुरुष की बात, कभी आम इंसान की दिल की बात तो कभी किसी गरीब का दुःख बाँट रहे होते हैं. लेकिन इन सब में वह जिन्दादिली से कैसे जिया जाए वह सिखाते हैं. कहते हैं में भी नौकरी कर के दिन भर थके हारे आ रहा हूँ लेकिन आपके लिए मेरा दिल कहता है कुछ बोल कुछ नगमें सुना और कुछ संगीत का छिडकाव कर बस के अन्दर शांति और प्यार का पैगाम दे. वह भी आम इंसान है लेकिन इस रात और दोपहर की दूरी को वह एक कर देते हैं अपने गानों से.
कहते हैं कलाकार की कोई सीमा नहीं होती है, कोई धरम नहीं होता है बल्कि उसके अन्दर कला को प्यार करने वाला एक इंसान होता है जिसे वह आम लोगों के साथ बांटता है और उसके लिए एक बस से बढ़िया और कोई मंच नहीं हो सकता है. आनंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं पेशे से वह ग्राफिक डिजाइनर हैं और पेंटिंग में माहिर साथ ही गाने के उस्ताद रचनात्मकता उनके रग-रग में बसी है. लोगों को कुछ करने की प्रेरणा देते हैं, वह लोगों को अपने अन्दर झाँकने पर मजबूर करते हैं और जिन्दादिली से जीने का सन्देश भी.
यह नज़ारा आप कहीं और नहीं बल्कि रोज दिल्ली की सड़कों पर देख सकते हैं और उसी बस में रात के समय उसी समय गर्मी हो या सर्दी या फिर झमाझम बारिस बस में पैदा हुआ यह कलाकार गाते चला जाता है. जिंदगी जीने के लिए और जिन्दादिली सिखाने के लिए ......

2 टिप्‍पणियां:

sadasangrur ने कहा…

achhe logon ko aaj bhi koi nahi puchhta is jamane me jab tak thok baja kar sina choda kar samne nahi khada jata ye dunia jine nahi deti baki sache aur achhe logon ka samman hamesha barkrar rahega ,aapki lekhani achhi lagi is par dhnayavad vyakt karta hun.aur jo log apne bare me khud mian mithu bante rahte hain aur dusaron ke bare me likhna bhool jate hain unko bhi thodi akl aani chahiye.aur esi baten likhni chahiye.

sadasangrur ने कहा…

achhe logon ko aaj bhi koi nahi puchhta is jamane me jab tak thok baja kar sina choda kar samne nahi khada jata ye dunia jine nahi deti baki sache aur achhe logon ka samman hamesha barkrar rahega ,aapki lekhani achhi lagi is par dhnayavad vyakt karta hun.aur jo log apne bare me khud mian mithu bante rahte hain aur dusaron ke bare me likhna bhool jate hain unko bhi thodi akl aani chahiye.aur esi baten likhni chahiye.
sumit joshi sangrur

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