सोमवार, 28 नवंबर 2011

मेरी हल्द्वानी यात्रा.....

एक हफ्ते की छुट्टी के बाद आज वापस ऑफिस लौटा हूँ.....काफी समय बाद अपने लोगों से मिला....रिश्तेदारों से मिला....और प्रकर्ति के साथ गुफ्तगू करने की कोशिश की जो मुझे हमेशा पसंद है....मेरी कजन सिस्टर रेशु की शादी में हल्द्वानी [नैनीताल] गया था...सभ लोग आये थे....अच्छा लगा...इंटर कास्ट होने की वजह से और भी अच्छा लग रहा था...खैर इस दौरान मौसम भी ठंडा था और लोग भी काफी खुस दिखाई दे रहे थे...बुआ, नानी, चाची, कज़न्स सभी लोगों से लम्बे से समय के बाद मिलना अपने आप में एक अलग अहसास था.....ऊपर वाला ऐसा समय रोज क्योँ नहीं लाता...लड़के वाले बंगाल से थे..इसलिए दो संस्कृति का मिलन भी था...घर पर पार्टी और मंदिर में शादी दोनू अद्भुत थे.....मंदिर इतना सुन्दर था की लफ़्ज़ों में बयां कर पाना कठिन है...प्रकर्ति की गोद में क्योँ ऐसे जगह भगवान् वास करते हैं अब समझ आया ...इस दौरान दिल्ली जैसे शहर से दूर रहने का तनिक भर भी अहसास नहीं हुआ....लगा कहीं और नजदीक आ गए हैं अपनी जगह अपने लोगों के बीच....खेत खलिहान, पहाड़, नदी सब जैसे एक परिवार का हिसा लग रहा था..और हैं भी...जब तक नैनीताल में था स्वस्थ था दिली आते ही सर्दी जुखाम और खांसी ....इसलिए यह शहर अपना नहीं पाया हमें...और हम इसे शायद ! लेकिन एक बात है अभी भी छोटे शहर शांत हैं, सकूं से जिंदगी जीते हैं ...और आपा-धापी नहीं हैं वहां पर...और जिंदगी को जिंदगी की तरह जीने की कोशिश करते हैं...सिर्फ रोजगार के अवसर वहां पर मिल जाएँ तो मजा आ जाये...और रोज का खर्चा भी कम है ...

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