बदले-बदले से राजधानी के गांव
राष्ट्रीय राजधानी के वो गांव जिंहूने इतिहास बनते बिगड़ते कई बार देखा है . बदलाव व विकास दोनू इ गावौं को एक नया रूप दे गया . गांव का स्मरण करते ही जहाँ मन में बिभिन्न प्रकार की यादें घर कर लेती हैं। वहीँ आज इन गावौं को गांव की नज़र से देखें तो सब बदला-बदला सा लगता है. मन का ये समय चक्र किसी को नही बख्सता है. परन्तु इन गावौं की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व नैतिक हालत आज "परिवर्तन की चौपाल" में बेबस खड़ी है. चौपाल सूनी है । दूसरी नज़र से देखे तो यह यूवाऊ व ताश खेलने वालौं का अड्डा बन चुकी है. वही इन गावौं में नीम और कीकर के पेड़ ढूंढें से नही मिलते. लोगौं का पहनावा बदल गया है, पहले परम्परावादी लिबास पहना जाता था. अब शायद ही कोई पहन कर खुश है. राजधानी का इलाका होने का खामियाजा भी इन गावौं को भुगतना पड़ता है.. विकास के साथ भयानक बदलाव जो देखने को मिल रहा है उससे आने वाली पीढी इनके बारे में किताबो में पढेगी . पहले लोगौं के पास पैसा नही था. अब इतना पैसा आ गया है की लोग गांव से पलायन कर कस्बू में आशियाना ढूंढते फ़िर रहे हैं... कभी समय था बेटी और ज़मीन को बेचने वाला नही मिलता था, आज उल्टा हो रहा है
लोग जमीन के पैसे से सबसे पहले कोठी बंगला और गाड़ी लेते हैं. एक समय था खाने को दो वक्त की रोटी पसीना बहाकर मिलती थी वही आज फास्ट फ़ूड व जंक फ़ूड ने गांव को जकड लिया है. गांव में जाती संप्रदाय का नाम सब लेते हैं लेकंग लेकिन बाहर आकर वही इंसान जाती संप्रदाय को भूल जाते हैं. दो प्रकार की स्थिति नही होनी चाहिए समाज में । सबसे दुखद यह है ki पिछले कई वर्षौं से gaoun का स्वरुप बदला तो hai , परन्तु shikshya को अगर देखे तो कुछ खास बदलाव nahi आया है. अभी भी gaoun में शिक्षया का level बहुत नीचे है. यह halat सोचनीय है. लोगौं का दिमाग अब business में दौड़ने लग गया है. लड़कियौं की तादाद gaoun में और भी कम हो रही है. इसका उदहारण आप हरियाण जैसे राज्य को ले सकते हैं जो न केवल राजधानी से लगा हुआ है बल्कि इस राज्य की आर्थिक हालत utni ख़राब नही है जितनी doosre rajyoun की । सामाजिक रहन सहन, खाना paan काफी बदल चुका ई. कुछ हौज़ खास, पिलंजी , तिहाड़ आदि जो famous तो है, परंतू waha पर gaoun का का vyavsaee karan हो चुका है . यही हाल देहात का भी हो रहा है. यहाँ पर ज़मीन की आसमान chootee कीमते गांव वालौं को बहुत कुछ सोचने पर mazboor कर रही अं.
इन gaoun का भोला भला इंसान आज chatur और चटक बन चुका है. आने वाले समय में यही ज़मीन की कीमत इन gaounoo को ग्रामीण परिवेश से काफी दूर ले जा सकता है. आज विश्व में भारत की पहचान महात्मा गाँधी , ताजमहल और गरीबी के sath sath तेज़ी से विकास करते हुए इस देश के औद्योगिकीकरण के karan भी हो रही है . हमारे देश में लोग इस बात से सायद सहमत न होऊं पर ये सच बात है की अभी भी हम gareebee रेखा को poori तरह पार नही कर सके हैं. राजीनेतिक समीकरण इन gaoun का जाती और संप्रदाय तक सीमित रहा ना की विकास पर आज तक वो भी दल सत्ता में आया वही "लुभावने नारे और वायदे" कर चला गया. राजधानी में बहार के लोग आकर राज कर चले गए. इन गौण की अपनी राजनीती ख़तम नही हो पाती है. चुनाव मके समय पर इनको जाती संप्रदाय याद आ जाता है. महात्मा गाँधी ने कहा था की भारत गौण में बसता है अरथां यह देस गौण की मिलिल उली संस्कृति का वाट वृक्ष्य है. आधुनिक विचारधारा व वैस्वी कारन के कारन गांव में जो बदलाव देखने को मिल रहे हैं उस उसे आने वाली पीढी एक नै मिश्रित संस्कृत से भरपूर होगी. गौण के विकास की बात सब कहते हैं लेकिन कार्य रूप में नही . गो में जाने पर कोठी बंगले देखने को मिलते इं. ग्रामीण परिवेश, रहन सहन कम देखते को मिलता है. हिंसा, द्वेष, जलन की बू आज इन गौण से आ रही है. यही हाल रहा तो थोड़े समय में गांव अपना अस्तित्व पुरी तरह मिटा चुके होंगे और अपना वजूद तलासते फिरेंगे. इसलिए गौण की धरोहर, संस्कृति और ताबा बना को बचाए रक्खने केलिए राजधानी शेत्रोउन के इन गौण को देश के अन्य गौण के लिए एक रोल मॉडल बनना चैये ताकि वे भी कुछ सीख सके और हम अपनेग्रामीण स्वरुप को संभल कर रख sake।
राष्ट्रीय राजधानी के वो गांव जिंहूने इतिहास बनते बिगड़ते कई बार देखा है . बदलाव व विकास दोनू इ गावौं को एक नया रूप दे गया . गांव का स्मरण करते ही जहाँ मन में बिभिन्न प्रकार की यादें घर कर लेती हैं। वहीँ आज इन गावौं को गांव की नज़र से देखें तो सब बदला-बदला सा लगता है. मन का ये समय चक्र किसी को नही बख्सता है. परन्तु इन गावौं की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व नैतिक हालत आज "परिवर्तन की चौपाल" में बेबस खड़ी है. चौपाल सूनी है । दूसरी नज़र से देखे तो यह यूवाऊ व ताश खेलने वालौं का अड्डा बन चुकी है. वही इन गावौं में नीम और कीकर के पेड़ ढूंढें से नही मिलते. लोगौं का पहनावा बदल गया है, पहले परम्परावादी लिबास पहना जाता था. अब शायद ही कोई पहन कर खुश है. राजधानी का इलाका होने का खामियाजा भी इन गावौं को भुगतना पड़ता है.. विकास के साथ भयानक बदलाव जो देखने को मिल रहा है उससे आने वाली पीढी इनके बारे में किताबो में पढेगी . पहले लोगौं के पास पैसा नही था. अब इतना पैसा आ गया है की लोग गांव से पलायन कर कस्बू में आशियाना ढूंढते फ़िर रहे हैं... कभी समय था बेटी और ज़मीन को बेचने वाला नही मिलता था, आज उल्टा हो रहा है
लोग जमीन के पैसे से सबसे पहले कोठी बंगला और गाड़ी लेते हैं. एक समय था खाने को दो वक्त की रोटी पसीना बहाकर मिलती थी वही आज फास्ट फ़ूड व जंक फ़ूड ने गांव को जकड लिया है. गांव में जाती संप्रदाय का नाम सब लेते हैं लेकंग लेकिन बाहर आकर वही इंसान जाती संप्रदाय को भूल जाते हैं. दो प्रकार की स्थिति नही होनी चाहिए समाज में । सबसे दुखद यह है ki पिछले कई वर्षौं से gaoun का स्वरुप बदला तो hai , परन्तु shikshya को अगर देखे तो कुछ खास बदलाव nahi आया है. अभी भी gaoun में शिक्षया का level बहुत नीचे है. यह halat सोचनीय है. लोगौं का दिमाग अब business में दौड़ने लग गया है. लड़कियौं की तादाद gaoun में और भी कम हो रही है. इसका उदहारण आप हरियाण जैसे राज्य को ले सकते हैं जो न केवल राजधानी से लगा हुआ है बल्कि इस राज्य की आर्थिक हालत utni ख़राब नही है जितनी doosre rajyoun की । सामाजिक रहन सहन, खाना paan काफी बदल चुका ई. कुछ हौज़ खास, पिलंजी , तिहाड़ आदि जो famous तो है, परंतू waha पर gaoun का का vyavsaee karan हो चुका है . यही हाल देहात का भी हो रहा है. यहाँ पर ज़मीन की आसमान chootee कीमते गांव वालौं को बहुत कुछ सोचने पर mazboor कर रही अं.
इन gaoun का भोला भला इंसान आज chatur और चटक बन चुका है. आने वाले समय में यही ज़मीन की कीमत इन gaounoo को ग्रामीण परिवेश से काफी दूर ले जा सकता है. आज विश्व में भारत की पहचान महात्मा गाँधी , ताजमहल और गरीबी के sath sath तेज़ी से विकास करते हुए इस देश के औद्योगिकीकरण के karan भी हो रही है . हमारे देश में लोग इस बात से सायद सहमत न होऊं पर ये सच बात है की अभी भी हम gareebee रेखा को poori तरह पार नही कर सके हैं. राजीनेतिक समीकरण इन gaoun का जाती और संप्रदाय तक सीमित रहा ना की विकास पर आज तक वो भी दल सत्ता में आया वही "लुभावने नारे और वायदे" कर चला गया. राजधानी में बहार के लोग आकर राज कर चले गए. इन गौण की अपनी राजनीती ख़तम नही हो पाती है. चुनाव मके समय पर इनको जाती संप्रदाय याद आ जाता है. महात्मा गाँधी ने कहा था की भारत गौण में बसता है अरथां यह देस गौण की मिलिल उली संस्कृति का वाट वृक्ष्य है. आधुनिक विचारधारा व वैस्वी कारन के कारन गांव में जो बदलाव देखने को मिल रहे हैं उस उसे आने वाली पीढी एक नै मिश्रित संस्कृत से भरपूर होगी. गौण के विकास की बात सब कहते हैं लेकिन कार्य रूप में नही . गो में जाने पर कोठी बंगले देखने को मिलते इं. ग्रामीण परिवेश, रहन सहन कम देखते को मिलता है. हिंसा, द्वेष, जलन की बू आज इन गौण से आ रही है. यही हाल रहा तो थोड़े समय में गांव अपना अस्तित्व पुरी तरह मिटा चुके होंगे और अपना वजूद तलासते फिरेंगे. इसलिए गौण की धरोहर, संस्कृति और ताबा बना को बचाए रक्खने केलिए राजधानी शेत्रोउन के इन गौण को देश के अन्य गौण के लिए एक रोल मॉडल बनना चैये ताकि वे भी कुछ सीख सके और हम अपनेग्रामीण स्वरुप को संभल कर रख sake।
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