जगह- द्वारका सेक्टर चार का राजापुरी बस स्टॉप, समय- सुबह के दस बज के चालीस मिनट के आस पास . मैं ऑफिस जा रहा था, हालांकि ड्यूटी ३ बजे से थी, लेकिन कुछ ज़रूरी काम करना था तो सोचा कि जल्दी पहुंचा जाये और वैसे भी दिल्ली में आफिस जाना रोज़ किसी युद्घ पर जाने से कम थोड़े ही है- तीन घंटे भीड़, धुआं और धक्के से लड़ते हुए जाना और उतनी ही जद्दोजहद करके वापिस आना . नेहरु प्लेस के लिए द्वारका-नजफगढ़ की हॉट-फेब्रेट बस नंबर ७६४ की इंतज़ार में खड़ा था, क्यूंकि इस टाइम बस में भीड़ नहीं होती और सीट आराम से मिल जाती है. जैसे ही मैं बस स्टॉप पर पहुंचा...वहां दो तीन लोग और थे. लो फ्लोर बस में जाने का मूड था- ब्लू लाइन के झूले सहने की हिम्मत नहीं थी, और फिर वह साथ में पूरी जिल्ली के दर्शन भी तो कराते हुए जाती है. ऊपर से बस स्टाफ का व्यवहार- मासा अल्लाह ! कभी हरियाणवी गलियां तो कभी अजीबोगराब हरक़तें. .... इन बस वालों से पूरी दिल्ली वाक़िफ है...यही वजह है कि आज सरकार इन्हें हटाने पर तुली है ......इसी हटाने की प्रक्रिया का भुक्त भोगी भी बना मैं. . ख़ैर दो ऑप्शन थे मेरे पास- या तो वातानुकूलित बस आ जाए या फिर नॉरमल. थोड़ी देर में दो युवक कंधे पर चमड़े का काला एक्ज्कुतिव बैग लिए बस स्टॉप पर आये. सूट- बूट में एकदम कसे हुए वो भी अपने- अपने युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार लग रहे थे. दोनों मेरे बग़ल में आ कर बैठ गए और इसके साथ ही उनसे मेरा रिश्ता जुड़ गया- रिश्ता तीन योद्धाओं का. अब उनमें से जो इमरान नाम के शख्स़ थे , बड़े ही रसिक मिज़ाज के इंसान लगे....और बड़े चटक भी. जबकि उनके साथी महापात्र जी उनसे उलट -शांत स्वभाव के और कम बोलने वाले.....दोनों ही जीवन बीमा का काम करते हैं और बताया कि ये तीन महीने उनके लिए बड़े ही उपयोगी होते हैं, इस टाइम लोग टैक्स बचाने के चक्कर में होते हैं और इसी वजह से इनकी पोलिसी बन जाती है....दोनों ही सेल्स मेनेजर थे देश की अग्रणी कंपनी में, जो दो भाइयों की है लेकिन वे अपने काम से कम और आपसी विवाद और झगडे से ज्यादा फेमस हो गए हैं.हमारे बीच एक सुंदर- सी कन्या बैठी थी- लाल स्वैटर, नीली जीन्स, चाइनीज जूते और मुंह में च्वींगम. तो जनाब इमरान जी ने अपना विज़िटिंग कार्ड लड़की को पकड़ा दिया और फटाक से पूछा- कहां पढ़ती हो? लड़की ने बताया कि वो फैशन डिजाइनिंग की स्टुडेंट है और साउथ एक्स के किसी संस्थान से तीन साल का कोर्स कर रही हैं... उनके पिता जी किसी कंपनी में मेनेजर के पद पर हैं, ये सब जानकारी इमरान ने ली और साथ में हमारे कानों तक भी आई...हमें लगा कि अब तो यह लड़की को पटा कर ही मानेगा लेकिन उसका मुंह खुलते ही हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. लड़की से कहा गया - आप अपने पापा को बोलना की मुझे फ़ोन करे, और टैक्स बचाने के मामले में हम उनसे बात करेंगे, और उन्हें अच्छी सलाह देंगे. उसकी बीमागिरी देखकर लड़की ने हां में सिर हिला दिया और अपनी पॉकिट में बड़ी ही बेदर्दी से विजिटिंग कार्ड डाल लिया. इतने में एक ब्लूलाइन बस स्टॉप पर आकर रुकी, उसके पाछे- पीछे हमारी लो-फ्लोर भी चली आई. लेकिन ब्लू लाइन वहां खड़ी होने के कारण वो बिना रुके उसके पीछे से निकल गई.. और हम पैर पटकते रह गए... उस वक़्त बलूलाइन पर ऐसी भड़ास निकली मानो बरसों की गर्मी से राहत दिलाने इकलौता सावन आया था और ऐसे ही निकल गया. तीनों के मुंह से निकला- अब तो हम बैठते ही नहीं इस बस में.....और वो कंडक्टर बेचारा हमारी शक्लों की ओर कुछ डरी –सी मुद्रा में देख रहा था ......कन्या के चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था, शायद उसे बसों की ज्यादा जानकारी नहीं थी .फिर एक और ब्लू लाइन बस आई, और हमारे कोप का भाजन बनी. आखिर फैसला हुआ कि हम लो फ्लोर बस में ही जायेंगे, इमरान जी बार बार कह रहे थे- मुझे तो जल्दी नहीं कालका जी रहता हूँ और लो फ़्लोर बस में ही जाऊँगा. और हमें पूरे कॉनफिडेंस के साथ यह आश्वासन भी दिए जा रहे थे कि अभी और लो- फ्लोर बसें आएंगी लड़की ने भी कहा कि वो भी लो फ्लोर में ही जायेगी- खुन्नस जो निकालनी थी ब्लू लाइन पर... लगा कि अब तो इमरान जी इनके पूरे परिवार का बीमा करके ही जाएंगे..इस बीच हम सभी का एक दूसरे से परिचय हुआ- कौन क्या करता है कहां रहता है....इत्तिफाक से लड़की के भैया किसी न्यूज़ चैनल के कर्मचारी निकले और ....फिर कन्या ने हमसे दूरभाष संख्या मांगी और हमारा पद और नाम भी पूछा लेकिन हमने अपना और चैनल का नाम बताया, दूरभाष संख्या नहीं दी...बातचीत से सभ्य लग रही थी...और भावी योजनाओं में लड़की ने बताया की उसका अब फैशन डिजाइनिंग में इंटरस्ट नहीं रहा है शायद भविष्य में वो लाइन चेंज करे.....हमने बताया कि जो आप कर रही हैं वो भी जाया नहीं जायेगा , और आपके काम ही आएगा, लड़की के चेहरे पर कुछ आत्मविश्वास के भाव दिखे,...इस बीच हमारे आगे से तक़रीबन १०-१२ ब्लू लाइन बस निकली मगर हम किसी में नहीं चढ़े. कितने जिद्दी थे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है. मगर बस स्टॉप पर बैठे-बैठे २ घंटे बीत गए और १ बजने को हो रहा था...इसी बीच लड़की ने कहा- मेरी तो क्लास ही १ बजे की है और मुझे अभी पहुंचना था . लेकिन लगता है मुझे अब घर जाना चाहिए, कब पहुंचूंगी अब? इमरान के साथी महापात्र जिद्द करने लगे की चलो यार ब्लू लाइन पकड़ते हैं और चल पड़ते हैं, लेकिन इमरान जी थे कि- नहीं, लो फ्लोर आएगी... और हम उन पर विशवास कर बैठे....हम तो खुन्नस में थे न की कैसे ब्लू लाइन बस ने हमारी लो फ्लोर बस निकलवा दी.....
.....इस बीच वह स्टॉप जेएनयू का ढाबा हो चला था -हम और महापात्र ...राजनीति, मीडिया, देश , बीमा,अमरीका पता नहीं क्या-क्या डिस्कस कर बैठे वहां पर.....खैर महापात्र वैसे अच्छे जानकार लग रहे थे.....और इंसान भी अच्छे लगे. इस बीच कन्या ने अपने घर फ़ोन किया और बताया कि वह बस स्टॉप पर बैठी है और बस नहीं आई, और वापस घर आ रही है, और चल पड़ी.....! फिर हम तीनों बात करते रहे ....थोड़ी देर बात इमरान जी के प्रवचन शुरू हुए......बोले- सर ये लो फ्लोर बस है न वो १०:३० वाली लास्ट थी, हम रोज के यात्री हैं और हमें पता है...अब ४ बजे से पहले कोई लो फ्लोर नहीं आएगी.....uffffffffffffffff जब आपको पता था तो ऐसा क्योँ किया.....कन्या जब तक सामने थी- बस आएगी आयेगी और वह चली गई तो ४ बजे के बाद आयेगी....उसने शायद हमें 4 बजे तक बेवाकूफ़ बनाने की सोची थी पर कन्या के जाते ही अब वह भी हमारी श्रेणी में ही शामिल हो गया था... इसलिए सच्चाई बताने में ही भलाई समझी .चढ़ जाओ ब्लू लाइन बस में अब....जहाँ से कहानी शुरू हुई थी वही आ कर रुक गई. ऊपर से उस खुन्नस का क्या हुआ ?.....उस भड़ास का क्या हुआ....?मन तो ऐसा किया कि बस क्या कर दूं....कैसे इंसान होते हैं.....खैर हंसी भी आई और रोना भी, पछतावा भी और सर पकड़ के बैठना भी पड़ा.....खैर एक ब्लू लाइन बस आई, बोला चलो इस में चलते हैं में बोला नहीं एक देख लेते हिं इसे जाने दो...दूसरी फिर से ब्लू लाइन बस.....मैंने कहा चलो अब में यहाँ पर नहीं रुकना चाहता ...ढाई घंटे बैठे रहे अंत में उसी बस में....उफ़....! चलो बस में बैठे और आ गए नेहरु प्लेस ...वे भी साथ में आये, रास्ते में महिला वाली सीट खाली हुई तो इमरान जी फटाक से बैठ गए....मै और महापात्र हंस पड़े, नहीं सुधरेंगे इमरान ! मुझे दूसरी साइड सीट मिल गई एक स्कूल का छात्र उठा में उस सीट पर बैठ गया.....महापात्र को भी सीट मिल गई मेरे बगल में ही....नेहरु प्लेस आया तो उतरने पर पूछा- इमरान भाई ऐसा क्योँ किया हमारे साथ.......क्या माजरा है...खैर अब तक हम समझ चुके थे-.थ्री इडियट्स और एक लड़की हो तो.....! फिर भी वो बोले- चलो नीचे उतरते हैं फिर बताता हूं. मैंने सोचा पता नहीं क्या रह गया अब...नीचे उतरे तो इमरान ने अपने मोबाइल में नंबर दिखाया महापात्र को और कहा की बगल वाली का नंबर है , यानी बस में जिसके बगल में बैठे थे जनाब ! चीज़ पहुची हुई है ये....वहां भी अपनी बीमा की बीमारी से बाज नहीं आया.. बोले- बॉय फ्रेंड से मिलने आई है. जान न पहचान ये भी पता कर लिया ...मैने सोचा- बीमा लाइन ही ठीक है...कैसे लड़की से अन्दर की बात पूछ लेते हैं.....महापात्र बोले- अपनी आदत नहीं सुधारेगा....बोला नहीं यार फिर तो हो लिया बिज़नस , दे दिया बिज़नस ! पब्लिक डीलिंग का काम है काहे की शर्म..मन ही मन सोचा- भैया ,लगता है इसे कहीं चप्पल - थप्पड़ नहीं पड़े....या फिर जेल जाना पड़ जाए- वह भी संभव हो सकता है...ख़ुदा करे ऐसी नौबत न आये नहीं तो जेलर के पूरे परिवार का बीमा कर डालेंगे. ख़ैर हमारे बीच एक नया रिश्ता जुड़ गया था..और अब तक काफ़ी गहरा भी हो चला था...................................
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