शनिवार, 23 जनवरी 2010

दिल्ली की ठण्ड और शमशान घाट....

जनवरी का महिना और ठण्ड न हो ऐसा कैसे हो सकता है और इस ठण्ड का मंजर क्या होगा....अंदाजा लगाए तो दिल्ली के निगम बोध घाट से ज्यादा उपयुक्त जगह और क्या हो सकती है.....निगम बोध घाट जी हाँ ऐसी जगह जहाँ पर हिन्दू लोग अंतिम संस्कार करने आते हैं....में भी गया था चौहान जी की माता जी के अंतिम संस्कार में भाग लेने.... न्यूज़ रूम में था रात घर से फ़ोन आया की चौहान जी की माता का देहांत हो गया है सुबह अंतिम संस्कार होगा ....रात ऑफिस से घर देर पंहुचा.. जिस वजह से सुबह जल्दी नहीं उठ सका और थोडा देर हो गई शमशान पहुचने में. फिर भी जब तक पंहुचा तब तक मृतक का पार्थिव शरीर अग्नि के हवाले कर दिया गया था. बस अग्नि ने मृतक शरीर को अपनी आगोश में लगभग पूरी तरह ले लिया था ......मंजर देखा था चौकाने वाला ! कम से कम ३०-४० मुर्दे एक साथ.....हे भगवान्....! जहाँ देखो मुर्दे ही मुर्दे .....खैर पहली बार नहीं जा रहा था इसलिए कोई डर या फिर सहम की बात नहीं थी लेकिन इतने सारे मुर्दे देख कर निश्चित ही मन में कई सवाल उठे....... अंतिम सत्य भी वही है....सभी ने यही आना है....एक दिन ! चौहान जी का परिवार मेरी कजन सिस्टर का परिवार है. खैर गया तो देखा यमुना नदी किनारे मुर्दे ही मुर्दे जल रहे हैं....अधिकतर इनमे से बुजुर्ग थे जो ठण्ड के कारन परलोक सिधार गए. अम्मा जी की उम्र भी 80 के ऊपर थी. लेकिन इस बार की ठण्ड वो भी नहीं सह सकी और जिंदगी को अलविदा कह दिया1. रिकॉर्ड मेन-टेन करने वाले से पुछा तो बोला कि सर आज तो अधिक तर बूढ़े ही आये हैं, और अब तक 4३ मुर्दे आ चुके हैं..........जबकि उस टाइम बजा था शाम तक पता नहीं क्या होगा..?और कितने मुर्दे आयेंगे? बगल में बिजली से जलाने वाला बड़ा सा हाल था वहां पर भी भीड़ लगी हुई थी. मन ही मन सोचा मरने वालूँ कि भी कमी नहीं है इस दुनिया में....खैर ये सब इश्वर कि मर्जी है कौन कब किधर जायेगा...मुर्दे जलाने के लिए लकडियाँ देखी तो कची थी, और मुर्दे के ऊपर कोई चीनी तो कोई घी कोई वही बैठे एक लाला जैसे इंसान से लकड़ी के बॉक्स के पतले फट्टे खरीद रहा था, जो चंडी लूट रहा था एक लड़की का बॉक्स का मतलब 3०० रुपये, जो पेटी सेब या फिर फ्रूट कि होती है. ये हाल हैं शाम शान घाटों का. ....मुह में पान चबाये सर में पंडित जी वाला लाल कपडा लपेगे हुए ऐसे लग रहा था जैसे वही इस शमशान घाट का प्रधान हो, और हो भी क्या पता.....मगर वहां का मंजर देख कर दिल दुखी जरुर हुआ, अंतिम संस्कार कि जगह भी इतनी बुरी तरह बिकी हुई है जहां देखो ब्यापार ही ब्यापार ...इंसान को मर कर भी चैन नहीं मिलना...अंतिम संस्कार करने वाले पण्डे तो ऐसे लग रहे थे जैसे मवाली, और इतनी बुरी तरह से काम कर रहे थे जैसे उनमे होड़ लगी है मंदी में कौन कितनी जल्दी सब्जी बेचता है या फिर ग्राहक को पकड़ता है....और जलने के बाद उस राख को एक तसले में दाल कर यमुना के नाले जैसे गंदे पानी में डूबा कर चांटा है और उसमे कुछ सोना या फिर कुछ कीमती चीज़ मिलती है तो उसको मुह में दाल लेता है.....हे भगवान् ! इंसान कैसे कैसे काम करता है.....जवान युवक जिनकी उम्र 15-25 साल की बीच है वो ऐसा कम करने में लगे हुए हैं....काम तो चलो जैसा भी है लेकिन जिस तरीके से कर रहे थे वो अजीब था.....सच में मंज़र बड़ा खतरनाक था वो ..... एक इंसान मरे इंसान के शरीर को जलाकर,बहाकर,हिलाकर.... कैसे - कैसे अपना पेट भरता है.....वो भी यमुना किनारे....राजधानी दिल्ली हाल ये है.....ठण्ड में इससे खतरनाक मंजर और कही का नहीं हो सकता है.....

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