आंखिर पकडे गए तिहरे हत्याकांड के आरोपी...मोनिका, कुलदीप, सोभा का कतला कर दिया था..पिछले दो तीन दिन से हम टीवी,अख़बार हर जगह दिल्ली के अशोक विहार में हुए तिहरे हत्याकांड के बारे में देखते, सुनते आये हैं. ये तीनों आरोपी फरार हैं. इन्हूने जान ले ली तीन लोगों की ....पुलिस ने पचास हज़ार का इनाम भी पटक डाला...और २४ जून को तीनों पकडे भी गए...गाज़ियाबाद के गढ़मुक्तेश्वर इलाके से...हम जो विसुअल्स देख रहे थे टीवी स्क्रीन पर उसमे अंकित कह रहा थाकि क़त्ल हमने नहीं किया...बाकी दोनु चुप थे...हमने तो टीवी पर देखा हमें तो कुछ नहीं मालूम,फंसाया जा रहा है.....सो ....सो...ये उसके बयान थे.
सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि अभी कुछ दिनों से ऐसा क्या हो गया कि सरकार,कोर्ट,और अपने को सामाजिक रूप से लिबरल कहने वाले लोगों के गले की फांस बन गया है मुद्दा . ओनर किल्लिंग के नाम पर मीडिया, सरकार,कोर्ट और अपने आप को लिबरल कहने वाले ठेकेदार लामबंद हो गए हैं. अचानक खाप पंचायत का विरोध होने लगा है. जहाँ खाप नहीं है वहां क़त्ल नहीं हो रहे हैं क्या? एक तरह सरकार पंचायाती राज लागू करने जा रही है और मजबूत करना चाहती है...दूसरा पंचायत के फैसलों को गलत बता रही है. सरकार कहती है कि पंचायत को मजबूत किया जायेगा....लोकल मुद्दे पंचायत में निपट जाए तो ठीक है....वहीं अब दो प्यार करने वाले अगर शादी कर लेते हैं या फिर एक गोत्र में शादी करते हैं तो उनका क़त्ल कर दिया जाता है..ऐसा क्योँ ? कुल मिलाकर सरकार का दोहरा चेहरा ? एक तरह विरोध वहीं दूसरी तरह समाज में जाने पर उनका समर्थन...क़त्ल पहले भी होते थे...प्रेमी जोड़े पहले भी भागते थे...सजा पहले भी दी जाती थी...खाप को पहले गैर जाट बहुल समाज जानता तक नहीं था...खाप की पंचायत होती थी मीडिया देखता भी नहीं था उसकी ओर...खाप तो चलो हरियाणा और कुछ उत्तर प्रदेश के हिस्से में देखने को मिलती है...वो भी जाट बहुल इलाकों में....लेकिन बाकी देश के अन्य हिस्से में भी तो लोग रहते हैं...वहां पर भी इस तरह के फैसले और सजा दी जाती है...उस पर कोई बवाल नहीं करता...सामाजिक रूप से कोई भी अपनी इज्ज़र नहीं खोना चाहेगा...और पश्चिमी सभ्यता अपनाने का आप विरोध करते हैं...कोई करे तो करे क्या...कुल मिलकार युवा पीढ़ी चौराहे पर खादी है...कोई उसे समझाने वाला नहीं है....इसका नतीजा भटकाव के रूप में देखा जा रहा है...और भयानक मंजार हमारे सामने है...अचानक क्या हो गया कि प्रेमियौं कि शामत आ गई....और एक के बाद एक प्रेमी जोड़े भागने लग गए....उनका क़त्ल होने लग गया...समाज में तरह तरह के नारे लगने लग गए कुछ पक्ष में कुछ विपक्ष में...दबे जुबान से नेता भी बोलने लग गए....
ये ऊपर तीन चेरे, युवा हैं पढ़े लिखे हैं, अच्छे घर के खाते पीते हैं, लेकिन क्या मिला ये सब कर के....जेल की चार दीवारी..कुछ करने, गुजरने की हसरत धरी रह गई...माता पिता,भाई बहन के लिए जिंदगी भर का दुःख..टैग लग गया इन पर 'कातिल' का वो भी एक नहीं दो नहीं तीन लोगों का कत्ल का.....लेकिन इस सबके लिए जिम्मेदार कौन था...क्या ये तीनों अकेले थे....या फिर घर वाले..या फिर हालात जो इन्हूने देखे...? किसी ने जानने की कोशिश नहीं की ....क़त्ल करना गलत है, था और करना भी नहीं चाहिए..लेकिन जब इंसान इंतना मजबूर हो गया, तीन लोगों का क़त्ल कर दिया तब कुछ न कुछ मजबूत कारण रहा होगा...वो क्या था किसी ने जानने के कोशिश नहीं की...और सरकार को यह बात समझनी होगी...नहीं तो आगे और भी भयानक नतीजे हो सकते हैं..समाज में उथल पुथल के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद हम, सरकार जिम्मेदार हैं. सालों से गोत्र में शादी नहीं होती थी..अचानक विरोध होने लगा..की नहीं गोत्र नाम की चीज़ नहीं है..एक गाँव में शादी कर लो....तो फिर क्योँ भारत को संस्कृति वाला देश कहा जाता है ....बनाना क्या चाहते हैं इस देश को ....?हर चीज़ का हल होता है..इसलिए सरकार को समाज के साथ मिल बैठकर कोई ठोस नतीजे पर आना चाहिए....नहीं तो कोर्ट,सरकार और समाज आपस में सर फोड़ते रहेंगे.....और हल कुछ नहीं निकलना वाला...क्यूंकि यह मुद्दा किसी एक आदमी का नहीं बल्कि हर उस इंसान से जुदा है, धर्म से जुडा है वो संस्कृति के साथ जीना चाहता है...
अभी नेता दबी जबान से बोल तो रहे हैं लेकिन ब्याक्तिगत तौर उनसे पुचा जाये तो तो भी नहीं चाहते कोई बात समाज के खिलाफ जाए...फिर चाहे वो वोट बैंक कारण हो या फिर उनका पारिवारिक मामला....ऐसे ही हर इंसान पर लालू होता है...खाप पंचायत हिन्दू मैरीज एक्ट में संसोधन की मांग कर रहे हैं तो क्योँ नहीं सरकार उन्हें बुला लेती बातचीत के लिए ....आंखिर सरकार समाज,देश से ऊपर तो नहीं है...खाप जो इतने सालों से चलती आ रही हैं...उनको एक झटके में दरकिनार भी नहीं कर सकते...और अगर करोगे तो हम उसका मंजर रोज देख रहे हैं..आज वो प्रेमी जोड़ा मारा गया..आज वो भाग गया...सो- सो .... कोर्ट के ऊपर में टिपण्णी नहीं करना चाहता, लेकिन सरकार कदम उठाये तो हर चीज़ संभव है..नहीं तो क़त्ल तो और भी होंगे...कोई अपनी इज्ज़त समाज में ऐसे नहीं उछालना चाहेगा..कोई नहीं चाहेगा कि घर कि बहन बेटी या फिर बेटा कहीं और बिना बताये चला जाये या फिर ऐसा कर ले जो समाज को स्वीकार नहीं हो..शादी करना गलत नहीं है... आंखिर कोर्ट कितने प्रेमी जोड़ों को सुरक्ष्या दे पायेगा? और सरकार कितना विरोध कर पाती है या सपोर्ट कर पाती है उसकी भी लिमिट है मगर यह देखने वाली बात होगी...हल कुछ नहीं निकलने वाला....समाज को अगर विखरने से बचाना है तो सरकार,समाज और जो एनजीओ समाज के लिए काम कर रहे हैं वो सब मिल बैठकर बातचीत करें और उचित फैसला लें. जो समाज और देश के हक़ में हो...और आने वाले दिनों में इज्ज़त और नाम के खातिर समाज में किसी का क़त्ल न हो जिससे पढ़े लिखे युवा अपना जीवन गर्त में न डालें.....
वहीं इस केस में दिल्ली पुलिस की किरकिरी हुई है...क्रेडिट उत्तर प्रदेश की पुलिस ले गई......मसला दिल्ली का था और प्रेस कांफेरेंस लखनऊ से हो रही थी...और दिल्ली पुलिस टीवी पर देख कर अपने हाथ मॉल रही थी......कुल मिला कर सरकार को इस मसले पर बढे सोच समझ कर कोई हल निकालना चाहिए, समाज की भावनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए...किसी की हत्या करना बिलकुल गलत कदम है....लेकिन ऐसे नौबत ना आये इसके लिए समाज को जागरूक होने की जरुरत है...सरकार, समाज, पंचायत सभी को मिलकर बैठ कर कोई हल निकालना चाहिए...
कातिल पढ़े लिखे युवा थे, संपन्न घरों से ताल्लुक रखते थे, तीनों कातिल सब कुछ समझते थे, लेकिन अपने समाज और परिवार की खातिर तीन पढ़े लिखे लोगों का क़त्ल कर दिया गया.....चाहे पुलिस दे? या सरकार दे? या फिर गाँव की पंचायत? कहीं न कहीं कमीं तो जरुर है.... लेकिन जवाब तो समाज को देना ही होगा ..........
सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि अभी कुछ दिनों से ऐसा क्या हो गया कि सरकार,कोर्ट,और अपने को सामाजिक रूप से लिबरल कहने वाले लोगों के गले की फांस बन गया है मुद्दा . ओनर किल्लिंग के नाम पर मीडिया, सरकार,कोर्ट और अपने आप को लिबरल कहने वाले ठेकेदार लामबंद हो गए हैं. अचानक खाप पंचायत का विरोध होने लगा है. जहाँ खाप नहीं है वहां क़त्ल नहीं हो रहे हैं क्या? एक तरह सरकार पंचायाती राज लागू करने जा रही है और मजबूत करना चाहती है...दूसरा पंचायत के फैसलों को गलत बता रही है. सरकार कहती है कि पंचायत को मजबूत किया जायेगा....लोकल मुद्दे पंचायत में निपट जाए तो ठीक है....वहीं अब दो प्यार करने वाले अगर शादी कर लेते हैं या फिर एक गोत्र में शादी करते हैं तो उनका क़त्ल कर दिया जाता है..ऐसा क्योँ ? कुल मिलाकर सरकार का दोहरा चेहरा ? एक तरह विरोध वहीं दूसरी तरह समाज में जाने पर उनका समर्थन...क़त्ल पहले भी होते थे...प्रेमी जोड़े पहले भी भागते थे...सजा पहले भी दी जाती थी...खाप को पहले गैर जाट बहुल समाज जानता तक नहीं था...खाप की पंचायत होती थी मीडिया देखता भी नहीं था उसकी ओर...खाप तो चलो हरियाणा और कुछ उत्तर प्रदेश के हिस्से में देखने को मिलती है...वो भी जाट बहुल इलाकों में....लेकिन बाकी देश के अन्य हिस्से में भी तो लोग रहते हैं...वहां पर भी इस तरह के फैसले और सजा दी जाती है...उस पर कोई बवाल नहीं करता...सामाजिक रूप से कोई भी अपनी इज्ज़र नहीं खोना चाहेगा...और पश्चिमी सभ्यता अपनाने का आप विरोध करते हैं...कोई करे तो करे क्या...कुल मिलकार युवा पीढ़ी चौराहे पर खादी है...कोई उसे समझाने वाला नहीं है....इसका नतीजा भटकाव के रूप में देखा जा रहा है...और भयानक मंजार हमारे सामने है...अचानक क्या हो गया कि प्रेमियौं कि शामत आ गई....और एक के बाद एक प्रेमी जोड़े भागने लग गए....उनका क़त्ल होने लग गया...समाज में तरह तरह के नारे लगने लग गए कुछ पक्ष में कुछ विपक्ष में...दबे जुबान से नेता भी बोलने लग गए....
ये ऊपर तीन चेरे, युवा हैं पढ़े लिखे हैं, अच्छे घर के खाते पीते हैं, लेकिन क्या मिला ये सब कर के....जेल की चार दीवारी..कुछ करने, गुजरने की हसरत धरी रह गई...माता पिता,भाई बहन के लिए जिंदगी भर का दुःख..टैग लग गया इन पर 'कातिल' का वो भी एक नहीं दो नहीं तीन लोगों का कत्ल का.....लेकिन इस सबके लिए जिम्मेदार कौन था...क्या ये तीनों अकेले थे....या फिर घर वाले..या फिर हालात जो इन्हूने देखे...? किसी ने जानने की कोशिश नहीं की ....क़त्ल करना गलत है, था और करना भी नहीं चाहिए..लेकिन जब इंसान इंतना मजबूर हो गया, तीन लोगों का क़त्ल कर दिया तब कुछ न कुछ मजबूत कारण रहा होगा...वो क्या था किसी ने जानने के कोशिश नहीं की...और सरकार को यह बात समझनी होगी...नहीं तो आगे और भी भयानक नतीजे हो सकते हैं..समाज में उथल पुथल के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद हम, सरकार जिम्मेदार हैं. सालों से गोत्र में शादी नहीं होती थी..अचानक विरोध होने लगा..की नहीं गोत्र नाम की चीज़ नहीं है..एक गाँव में शादी कर लो....तो फिर क्योँ भारत को संस्कृति वाला देश कहा जाता है ....बनाना क्या चाहते हैं इस देश को ....?हर चीज़ का हल होता है..इसलिए सरकार को समाज के साथ मिल बैठकर कोई ठोस नतीजे पर आना चाहिए....नहीं तो कोर्ट,सरकार और समाज आपस में सर फोड़ते रहेंगे.....और हल कुछ नहीं निकलना वाला...क्यूंकि यह मुद्दा किसी एक आदमी का नहीं बल्कि हर उस इंसान से जुदा है, धर्म से जुडा है वो संस्कृति के साथ जीना चाहता है...
अभी नेता दबी जबान से बोल तो रहे हैं लेकिन ब्याक्तिगत तौर उनसे पुचा जाये तो तो भी नहीं चाहते कोई बात समाज के खिलाफ जाए...फिर चाहे वो वोट बैंक कारण हो या फिर उनका पारिवारिक मामला....ऐसे ही हर इंसान पर लालू होता है...खाप पंचायत हिन्दू मैरीज एक्ट में संसोधन की मांग कर रहे हैं तो क्योँ नहीं सरकार उन्हें बुला लेती बातचीत के लिए ....आंखिर सरकार समाज,देश से ऊपर तो नहीं है...खाप जो इतने सालों से चलती आ रही हैं...उनको एक झटके में दरकिनार भी नहीं कर सकते...और अगर करोगे तो हम उसका मंजर रोज देख रहे हैं..आज वो प्रेमी जोड़ा मारा गया..आज वो भाग गया...सो- सो .... कोर्ट के ऊपर में टिपण्णी नहीं करना चाहता, लेकिन सरकार कदम उठाये तो हर चीज़ संभव है..नहीं तो क़त्ल तो और भी होंगे...कोई अपनी इज्ज़त समाज में ऐसे नहीं उछालना चाहेगा..कोई नहीं चाहेगा कि घर कि बहन बेटी या फिर बेटा कहीं और बिना बताये चला जाये या फिर ऐसा कर ले जो समाज को स्वीकार नहीं हो..शादी करना गलत नहीं है... आंखिर कोर्ट कितने प्रेमी जोड़ों को सुरक्ष्या दे पायेगा? और सरकार कितना विरोध कर पाती है या सपोर्ट कर पाती है उसकी भी लिमिट है मगर यह देखने वाली बात होगी...हल कुछ नहीं निकलने वाला....समाज को अगर विखरने से बचाना है तो सरकार,समाज और जो एनजीओ समाज के लिए काम कर रहे हैं वो सब मिल बैठकर बातचीत करें और उचित फैसला लें. जो समाज और देश के हक़ में हो...और आने वाले दिनों में इज्ज़त और नाम के खातिर समाज में किसी का क़त्ल न हो जिससे पढ़े लिखे युवा अपना जीवन गर्त में न डालें.....
वहीं इस केस में दिल्ली पुलिस की किरकिरी हुई है...क्रेडिट उत्तर प्रदेश की पुलिस ले गई......मसला दिल्ली का था और प्रेस कांफेरेंस लखनऊ से हो रही थी...और दिल्ली पुलिस टीवी पर देख कर अपने हाथ मॉल रही थी......कुल मिला कर सरकार को इस मसले पर बढे सोच समझ कर कोई हल निकालना चाहिए, समाज की भावनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए...किसी की हत्या करना बिलकुल गलत कदम है....लेकिन ऐसे नौबत ना आये इसके लिए समाज को जागरूक होने की जरुरत है...सरकार, समाज, पंचायत सभी को मिलकर बैठ कर कोई हल निकालना चाहिए...
कातिल पढ़े लिखे युवा थे, संपन्न घरों से ताल्लुक रखते थे, तीनों कातिल सब कुछ समझते थे, लेकिन अपने समाज और परिवार की खातिर तीन पढ़े लिखे लोगों का क़त्ल कर दिया गया.....चाहे पुलिस दे? या सरकार दे? या फिर गाँव की पंचायत? कहीं न कहीं कमीं तो जरुर है.... लेकिन जवाब तो समाज को देना ही होगा ..........
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