बुधवार, 21 जुलाई 2010

राजनीतिक हंगामा या फिर टीवी के लिए तमाशा?

बिहार विधान सभा में हंगामा...सभी अखबार चैनेल्स इस खबर को दिखाने में लगे हुए हैं...सिंपल फंडा है..चुनाव की खुजली बिपक्ष खासकर लालू यादव एंड पासवान कंपनी को होने लग गई है..उसी का नतीजा है यह...ठीकरा फोड़ रहे रहे हैं सत्ता पक्ष पर..जैसा की अमूमन होता है.....घोटाला के वक्त लालू यादव की धर्मपत्नी राबड़ी देवी की सरकार थी....उसके बाद नितीश आये....विकाश निधि का करोड़ों रुपये का घोटाला जो हुआ है....उसको नितीश भी उजागर कर सकते थे ....क्योँ चुप रहे जांच के बाद भी निकल आता या नहीं सरकार जाने...या फिर कहीं चारा घोटाले की तरह कमजोर न हो जाये मामला...जांच कितनी बिठा लो...नेता तो राजनीती करने से नहीं चूकेगा...

कोई विधायक धरने पर बैठा है तो कोई विधायिका गमले तोड़ रही है....वो भी एक नहीं दो नहीं पूरे पंद्रह गमले चकना चूर कर दिये...बेचारे फूल...पौधे...उनका क्या कसूर था ...फूल पौधे के लिए आवाज उठाने वाले 'पेटा' वालों को भनक नहीं लगी ?..और जो गमले तोड़े उनका नुकशान? ... और बेचारे कुम्हार की मिटटी का खुले आम बलात्कार हो रहा था..पटना विधान सभा की सीड़ीयौ में....वो भी खुले आम...! दुर्भाग्य था की पुलिस...गार्ड सब देखते रहे और पंद्रह गमले तोड़ने दिए...विसुअल्स तो एक गमले में ही बन पड़ते...पिछली रात को लालू को विधान सभा परिशर में जाने की अनुमति नहीं दी गई..बस क्या था अगले दिन बिदक गए..कर डाली प्रेस कांफेरेंसे...अब लालू की प्रेस कांफेरेंस हो और मीडिया का तेल ना फुके..ऐसा कैसे हो सकता है...मैराथन प्रेस कांफेरेंस कर डाली...ये होता है लोगों को दिखाने के लिए की हम अभी जिन्दा है और चुनाव नजदीक हैं...और हम क्या कर सकते हैं...कैसे कर सकते हैं और किस तरह की उल्टी सीधी हरकतें कर सकते हैं .....टीवी पर देख लो...वाह रे इंडियन पोलिटिक्स !.....

ओमामा के 'सफ़ेद हाउस' के गमले तोड़ के दिखाओ ना? पता चल जायेगा....खैर...ये सोची समझी योजना है नेताओं की ...चुनाव सर पर हैं और लोगों को चेहरा दिखाने के लिए कुछ ना कुछ ऐसा कर डालो ...जिससे सरकार भी घिरे..और टीवी पर हम भी दिखे....क्यूंकि अब गाँव देहात में जाने पर जनता नेताओं को घास नहीं डालती है..बस २१ इंच के 'टीवी बॉक्स' में सब कुछ कर डालो....वोट जनता दे ही देगी...वहीं से....लेकिन जो हर काटें देखने को मिली वो शर्मसार करने के लिए तोक्तंत्र को काफी है...फिर चाहे अन्दर सदन में चप्पल फैंक लो या बहार गमले फोड़ लो.....और बिहार में तो अभी शुरुवात है...चुनाव से पहले देखते जाओ क्या क्या विसुअल्स देखने को मिलते हैं...हालांकि ६७ विधायक सस्पेंड कर दिए गए..लेकिन क्या यह सजा उचित है...?बड़ा प्रश्न है..?

समय का तकाजा है, नेता लोगों को 'सभ्य' होने का बिल सदन में जल्द पेश हो...नहीं तो आने वाले दिनों में नेताओं के बीच जूतम पैजार या फिर गमला तोड़ प्रतियोगिता शुरू हो सकती है.....

2 टिप्‍पणियां:

anees alam ने कहा…

अनीस आलम राजस्थान

इनको देख कर तो अब लगने लगा हैकी अब नेता अपनी साफ सुदरी छवि की नोटंकी से उकता गए है इसलिए अब ये गुंडा गर्दी वाली छवि को [ jo kaiyo ka Back ground hai ]अपना कर जनता के बिच जाना चाहते है. और अब ये भी लगता है की नेता की बुद्दी ने भी काम करना बंद करदिया है

लेकिन भाइयो ये मत भूलो की जनता अब सब जानती है

वही गमलो के फुल पोधो की बात करे तो अब तो ये फुल भी कविता गुनगुनाते है की || न किसी नेता पर या न किसी मंत्री पर चढ़ाना हमें, हमें तो किसी शहीद की समाधी पर चड़ा देना है वन माली ||

SSJ ने कहा…

baat to sahi hai netaon ke is drama main dekha jaye to netaon par gusa nikalna samjh ata hai lekin in fool podhon ka kya jinhone kabhi hamre ko kuchh dene main apna lalch nahi dekha,aunty gamle podhe ukhad fenkti rahi lekin rokne wala koi nahi tha asl main netaon ne apni notnki racha dali lekin in bejubano ka dard kisne samjha,ab saja inke sath hue durachar ke liye kya ise dega,apke duara sach samne lana srahniy hai chlo kisi ne to asli dukhiye ki baat jani nahi to inka dard chhup kar rah jata.

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