हम भगवान् के दर्शन के लिए गए... लेकिन दर्शन नहीं हुए....वाह रे नसीब वालो ....भगवान् भी रविवार होने के कारण विश्राम कर रहे थे.. .और हमें दर्शन नहीं दिए... मगर सबसे बड़ी बात.... हम उदास नहीं हुए बल्कि प्रण कर के आये कि फिर आयेंगे और दर्शन कर के जायेंगे........फिर किसी दिन भगवान् मिलन की भयानक योजना अमल में लायी जाएगी......योजना कार के अन्दर बनेगी.....ड्राइव करते हुए क्यूंकि अमूनन वही हमारी बातचीत करने की सबसे अच्छी और महफूज जगह होती है...और सकूँ से हम ड्राइव करते-करते देश दुनिया प़र तर्क वितर्क,ख़बरों की चीड-फाड़ कर इस नवाबी,अंग्रेजी,और मुगलाई शहर के साथ हमराह होते हुए कार्यालय तक पहुच जाते हैं....चलो सोचा आपके साथ भी शेयर करूँ....
नंबर प्लेट गड्ढे के कब्र में दफ़न हो गई है....अब वो नयी बनवानी है..जय हो एमसीडी की...जय हो गड्ढे की...वो इसलिए की एक दिन की छुट्टी तो मिली...योगिंदर को बोल रखा है वो बनवा के रखेगा, लगवा कर चल पड़ेंगे..लेकिन महिपालपुर पहुचे... तीनों मिले भी ..नंबर प्लेट नहीं मिली...पंडित जी को समय नहीं मिला...और हमें लगवानी पड़ी....लगवाई वो भी...रास्ते में रविवार होने की वजह से ट्राफिक भी कम था...ऑफिस के नजदीक पहुचे तो हमारे पास पूरे पैन्तालीश मिनट थे...मंदीप बोला चल कहीं चलते हैं टाइम बचा है ....उसे पहले ऑफिस के अन्दर जाना पसंद नहीं है...सर में दर्द हो जाता है...कारण कई हैं...वो जानता है या में जानता हूँ....तीन बजे की ड्यूटी है........तीनों ३ बजे उंगली लगाने के चक्कर में आराम-आराम से ऑफिस जा रहे थे...लेकिन हमारे पास ४५ मिनट बाकी थे... और मंदीप बोला चल कही चलते हैं...टाइम है अभी...मैंने आईडिया दिया इस्कोन मंदिर चलते हैं...दिल्ली में इकलौता मंदिर है..और सुना है भगवान् वहां पर अंग्रेजी में बोलते हैं...विश्व प्रसिद्ध भी है...बड़ा मन कर रहा था देखने को काफी सालों से...पिछले २ सालों में हज़ार चक्कर काट चूका हूँगा मंदिर के आगे पीछे... मगर अन्दर जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका..लगता है भगवान् ज्यादा ही नाराज़ हैं..सोचा नजदीक भी है... और में भी कभी पहली बार दर्शन कर के आऊंगा ..भगवान् के दर्शन भी हो जायेंगे..वह भी नहीं गया था...पंडित जी परिवार वाले हुए इसलिए वो पहले हाथ मार आये थे..और हमारे लिए अच्छा भी था.....कोई तो होगा जो रास्ता बतायेगा....लवर बॉय के दर्शन करने को .....! गया तो पहले तो सोचना पड़ा कि कहाँ कार पार्क की जाए?..मुश्किल से पार्किंग ढूंढी...क्यूंकि रविवार होने की वजह से ज्यादातर जगह खाली थी....हम भी कम नहीं थे सीधे गाडी ले गए ऊपर पहाड़ जैसी जगह पर जहाँ पार्किंग के लिए पर्ची काटने वाला प्राणी भी नहीं था...कार खडी की...मंदीप साहब ने कार की इतनी बार कटाई कर दी...में भी हैरान ...ये कर क्या रहा है..टेढ़ी, मेधी, सीधे,तिकोना, वो कोना..सब ! कोई कोना नहीं छोड़ा हाई ने.....अंडी आदमी है! [हरयाणवी में अंडी का मतलब जबरदस्त,झक्कास]...
खैर ढूँढा भगवान् का द्वार.. .मैंने पूछा कहाँ मिलेंगे भगवान् ?पंडितजी ने कहा नीचे ...मैंने सोचा नीचे तो पातळ लोक होता है ..फिर भी गए तो गेट पर काली मूर्ति थी...फिर सोचा क् कृष्ण भगवान् इतने काले तो नहीं थे...इंसान ने बना दिए होंगे...उनको नमस्ते की ! फिर आगे चले गए..देखा बाएं हाथ एक रेस्टोरेंट...! लंच, डिन्नर,नास्ता सब...पानी, नमकीन,मिठाई सब अन्दर मिलता था..लिखा तो था...अन्दर नहीं गए....सामने क्या...?एक चोटी नुमा आदमी सफ़ेद धोती पैजामा में बैठा....सामने उसने सीसे के घर के छोटे से अन्दर तीन लड्डू रखे हैं..एक मोतीचूर का...एक नारियल और एक पता नहीं काला काला जैसा था...आगे लिखा था प्रसादम ! देख के ऊपर चले गए...एक काली टी शर्ट में युवक आया ...बोला भगवान् बंद हैं...चार बजे आना...! ओए ये क्या...किस्मत...?वह बोला मुजियम देख लो....गुस्सा बहुत आया ..और भगवत गीता सुनायेंगे...हम कहाँ भगवत गीता सुनने वाले थे..ध्याड़ी पर जो जाना था, वहां की गीता कौन सुनेगा...उसने सोचा लफंगे, आवारा हैं ये.....क्या पता था कि उसे ये दोनू प्रताड़ित पत्रकार हैं....और एक लाइन मारने वाला ग्राफिक्स डिजाइनर !
1 टिप्पणी:
bhagvan aaj kal amir logon ke hain,kher vaise to apki yatra bombay to goa se kam nahi thi hasi,majak,khana peena chalo bhaiachhe dost sath ho ton kisi bhagvan se kam nahi hote sir.aaj ke samay main jitna dost sath de dega utna saga rishtedar bhi nahi deta ye akeli khavat nahi balke ek anutha sach hai.
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