१३ तारीक शाम न्यूज़ रूम में बैठा था....अचानक खबर आई की पुणे में बम बिस्फोट हो गया है....फेमस जगह जर्मन बेकरी में....जहाँ विदेशी बड़ी संख्या में आते-जाते हैं...लग गई....हर तरफ अफरा तफरी का माहौल, पुलिस , पर्शासन, खुफिया एजंसियां सभी जैसे रात की नींद से जागे.....और टीमें रवाना हुई...कोई मुंबई से कोई दिल्ली से...सारा देश और मीडिया की नज़र वहीं पर लग लगी...हमने भी कवरेज करने के लिए अपने रिपोर्टर को भेजा ....थोड़ी देर में स्क्रीन पर मंजर देखा तो विसुअल्स बड़े सोचनीय थे....बहुत दुःख हुआ...देखकर कितने मासूम मौत के घात उतार दिए गए..सबसे पहले उन लोगों को श्रधांजलि !और इश्वर उनके परिवारों को दुःख सहन करने की ताकत दे !
कहते हैं पत्राकारिता में फीलिंग्स को कण्ट्रोल करके रखना पड़ता है....और इनको आड़े नहीं आने देना चाहिए अपने काम में.....मैंने भी इतने साल रिपोर्टिंग में रह कर यही सीखा था, एक बार फिर से देश पर हमला हुआ...अमन और चैन के दुश्मन फिर से इस सुन्दर देश को अपने कारनामों से लहू-लुहान करने में लगे हैं.....इन सबके खिलाफ पूरे देश को एक जुट खड़ा होना पड़ेगा.अगले दिन १४ फ़रवरी को Velentine Day था इसलिए हम भी प्लान कर रहे थे कैसे कैसे खबर आएँगी, और क्या क्या चलाना चाहिए...सब बम विस्फोट ने सत्यानाश कर दिया....खैर लाइव भी हुए....खबर भी चली.....रात १ बजे ऑफिस से निकले...सुबह जल्दी आने पड़ेगा करके......घर पंहुचा रात 2 बजे...बिस्तर में गिरते ही नीद की बेहोशी छा गई ......ये सोच के की सुबह जल्द उठ के ऑफिस जाऊंगा....सुबह नीद खुली ११ बजे..फटा फट उठा और नहाया धोया, देखा तो कोई भी कमीज में प्रेस नहीं थी..हे भगवान् ! अब क्या होगा...छोटा भाई को ऑफिस के काम से चंडीगढ़ जाना था इसलिए उसकी कमीज नहीं पहन सकता था....क्यूंकि पता नहीं कौन सी ले जाये और कौन सी नहीं ...और मामी जी ने पहले कह रखा था की उसके कपडे मत पैरना.....जल्दी से नहाया, तैयार हुआ और फटाफट कमीज में उलटी सीढ़ी प्रेस की...प्रेस वाले को कपडे देने का समय न मिलने के कारन ऐसा हुआ....तब तक मामी जी ने नास्ता तैयार कर दिया था.....तैयार भी होते रहा और नास्ता भी करता था....चल दिया ऑफिस के लिए...ऑफिस पंहुचा १ बजे.......इस बीच रास्ते में देखा और ख्याल आया की आज तो वेलंटाइन डे है.....चलो देखते हैं क्या फिज़ा देखने को मिलेगी....कहते हैं दिल्ली दिल वालों की होती है..लेकिन 'दिल के दिन' दिल वाले गिने चुने ही दिखे...दिल्ली की सड़कों पर.....देखा तो महिपालपुर चौक खाली...फूल वाले खाली बैठे थे......फिर वसंत विहार..वहाँ भी वही हाल....मुनिरका वही हालत...आर के पुरम फिर वही सीन ......और अंत में दिल्ली में सबसे ज्यादा फूल बिकने वाली सरकारी ग्रामीण जगह 'दिल्ली हाट'.....वहां पर भी शांति...कोई लड़का नहीं कोई लड़की नहीं.....साउथ एक्स आया तो कुछ दिखा ....एक गुलाब लिए लड़का साउथ एक्स में दिखा....सोचा चलो इसने इज्जत रख दी...वेलेंटाइन बाबा की .....मगर लगा लड़की फूल ले या न ले....कहते हैं सबसे ज्यादा ६० फीसदी लड़के फूल खरीदते हैं और बांकी लड़कियां या अन्य.....लेकिन न लड़के दिखे न लड़कियां.....मसला वही ..... सन्डे ! फूल वाले फूलों को देखकर मुश्कारा जरुर रहे थे....मगर कितने पैसे का फूल है ..यह प्रश्न करने की हिम्मत नहीं जुटा सका.....इस साल २०१० में सबसे ज्यादा रास्ट्रीय पर्व सन्डे के दिन ही हैं....मीडिया वालों को छोड़ कर बाकी को नुकशान होने वाला है....मीडिया को कोई फरक नहीं पड़ता है.....क्यूंकि इनके लिए कोई दिन कोई फेस्टिवल नहीं होता है...ये लोग दुनिया को दिखाते तो हैं लेकिन अपने लिए कुछ नहीं कर पाते है.....खैर काम तो काम है ! ऑफिस में काम स्मूथ चल रहा था..इस बीच हमारे बरिष्ठ मान्यवर ने कहा की शाम का खाना आज ऑफिस में होगा....और घर का बना होगा.....इस महान काम में लगा दिया हमारे सहयोगी अजीत और हमारे बरिष्ठ अजय जी, जो हमेशा मदद के लिए तत्पर रहते हैं....और शान्ति और चालाकी से काम करने में यकीन करते हैं....खैर दिन बीता......शाम बीती...और अंत में समय आ गया खाने का....हमारे मान्यवर बरिष्ठ ने कहा की चलो कैफेटेरिया में बैठते हैं ...सभी चले गए वरुण रह गया था...उसको मैंने कहा की चला जा फिर आ जाना...डेस्क पर कोई नहीं है....वैसे बुलेटिन नहीं था...सन्डे होने के कारन ! इसलिए थोडा समय मिला गया...और अंत में सब मिले कैफेटेरिया में ....जो पहली मंजिल पर है.....और हमारा न्यूज़ रूम बेस-मेंट में .राम सर, रुपेश सर, अजय सर, अजीत, वरुण, जीतेन्द्र और अभिषेक जो बाद में आया और आजकल नाईट वाच मैन की भूमिका में है.... और उसी समय पंजाब से लौटा हुआ था....और आउट पुट से राजीव जी...कैफेटेरिया में गया तो देखा की पूरा टेबल तरह तरह के ब्यंजनों से भरा हुआ था...कोई खड़े खड़े कोई बैठे सब लपेटने में लगे हुए थे....और साथ में खाने का मज़ा भी कुछ और ही होता है....मज़ा आ गया..... पनीर, दाल मखनी , हाथ से बनी कोमल रोटी, सब्जी, अचार.......वाह ! मज़ा आ गया....वाह.! सभी ने पेट भर के खाना खाया....!
कुल मिलाकर वेलंटाइन डे शानदार रहा....! अब जून का इंतज़ार है ...क्यूंकि दूसरा वेलेंटाइन डे 12 तारीक ब्राज़ील में मनाया जाता है.....14 फ़रवरी को पूरे विश्व में और १२ जून को ब्राज़ील वाले पागल होते हैं ....उस दिन फूल और गिफ्ट एक दुसरे को देते हैं प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी या अन्य लोग.........ब्राजील मनायेगा तो हम भी मना लेंगे.....वैसे भी हम हिन्दुस्तानी दूसरों का फेस्टिवल बड़े चाव से ....शौक से...और गर्व से मनाते हैं.....है की नहीं ......? एक बार फिर से सब को हैप्पी वेलेंटाइन डे......2010 !
कहते हैं पत्राकारिता में फीलिंग्स को कण्ट्रोल करके रखना पड़ता है....और इनको आड़े नहीं आने देना चाहिए अपने काम में.....मैंने भी इतने साल रिपोर्टिंग में रह कर यही सीखा था, एक बार फिर से देश पर हमला हुआ...अमन और चैन के दुश्मन फिर से इस सुन्दर देश को अपने कारनामों से लहू-लुहान करने में लगे हैं.....इन सबके खिलाफ पूरे देश को एक जुट खड़ा होना पड़ेगा.अगले दिन १४ फ़रवरी को Velentine Day था इसलिए हम भी प्लान कर रहे थे कैसे कैसे खबर आएँगी, और क्या क्या चलाना चाहिए...सब बम विस्फोट ने सत्यानाश कर दिया....खैर लाइव भी हुए....खबर भी चली.....रात १ बजे ऑफिस से निकले...सुबह जल्दी आने पड़ेगा करके......घर पंहुचा रात 2 बजे...बिस्तर में गिरते ही नीद की बेहोशी छा गई ......ये सोच के की सुबह जल्द उठ के ऑफिस जाऊंगा....सुबह नीद खुली ११ बजे..फटा फट उठा और नहाया धोया, देखा तो कोई भी कमीज में प्रेस नहीं थी..हे भगवान् ! अब क्या होगा...छोटा भाई को ऑफिस के काम से चंडीगढ़ जाना था इसलिए उसकी कमीज नहीं पहन सकता था....क्यूंकि पता नहीं कौन सी ले जाये और कौन सी नहीं ...और मामी जी ने पहले कह रखा था की उसके कपडे मत पैरना.....जल्दी से नहाया, तैयार हुआ और फटाफट कमीज में उलटी सीढ़ी प्रेस की...प्रेस वाले को कपडे देने का समय न मिलने के कारन ऐसा हुआ....तब तक मामी जी ने नास्ता तैयार कर दिया था.....तैयार भी होते रहा और नास्ता भी करता था....चल दिया ऑफिस के लिए...ऑफिस पंहुचा १ बजे.......इस बीच रास्ते में देखा और ख्याल आया की आज तो वेलंटाइन डे है.....चलो देखते हैं क्या फिज़ा देखने को मिलेगी....कहते हैं दिल्ली दिल वालों की होती है..लेकिन 'दिल के दिन' दिल वाले गिने चुने ही दिखे...दिल्ली की सड़कों पर.....देखा तो महिपालपुर चौक खाली...फूल वाले खाली बैठे थे......फिर वसंत विहार..वहाँ भी वही हाल....मुनिरका वही हालत...आर के पुरम फिर वही सीन ......और अंत में दिल्ली में सबसे ज्यादा फूल बिकने वाली सरकारी ग्रामीण जगह 'दिल्ली हाट'.....वहां पर भी शांति...कोई लड़का नहीं कोई लड़की नहीं.....साउथ एक्स आया तो कुछ दिखा ....एक गुलाब लिए लड़का साउथ एक्स में दिखा....सोचा चलो इसने इज्जत रख दी...वेलेंटाइन बाबा की .....मगर लगा लड़की फूल ले या न ले....कहते हैं सबसे ज्यादा ६० फीसदी लड़के फूल खरीदते हैं और बांकी लड़कियां या अन्य.....लेकिन न लड़के दिखे न लड़कियां.....मसला वही ..... सन्डे ! फूल वाले फूलों को देखकर मुश्कारा जरुर रहे थे....मगर कितने पैसे का फूल है ..यह प्रश्न करने की हिम्मत नहीं जुटा सका.....इस साल २०१० में सबसे ज्यादा रास्ट्रीय पर्व सन्डे के दिन ही हैं....मीडिया वालों को छोड़ कर बाकी को नुकशान होने वाला है....मीडिया को कोई फरक नहीं पड़ता है.....क्यूंकि इनके लिए कोई दिन कोई फेस्टिवल नहीं होता है...ये लोग दुनिया को दिखाते तो हैं लेकिन अपने लिए कुछ नहीं कर पाते है.....खैर काम तो काम है ! ऑफिस में काम स्मूथ चल रहा था..इस बीच हमारे बरिष्ठ मान्यवर ने कहा की शाम का खाना आज ऑफिस में होगा....और घर का बना होगा.....इस महान काम में लगा दिया हमारे सहयोगी अजीत और हमारे बरिष्ठ अजय जी, जो हमेशा मदद के लिए तत्पर रहते हैं....और शान्ति और चालाकी से काम करने में यकीन करते हैं....खैर दिन बीता......शाम बीती...और अंत में समय आ गया खाने का....हमारे मान्यवर बरिष्ठ ने कहा की चलो कैफेटेरिया में बैठते हैं ...सभी चले गए वरुण रह गया था...उसको मैंने कहा की चला जा फिर आ जाना...डेस्क पर कोई नहीं है....वैसे बुलेटिन नहीं था...सन्डे होने के कारन ! इसलिए थोडा समय मिला गया...और अंत में सब मिले कैफेटेरिया में ....जो पहली मंजिल पर है.....और हमारा न्यूज़ रूम बेस-मेंट में .राम सर, रुपेश सर, अजय सर, अजीत, वरुण, जीतेन्द्र और अभिषेक जो बाद में आया और आजकल नाईट वाच मैन की भूमिका में है.... और उसी समय पंजाब से लौटा हुआ था....और आउट पुट से राजीव जी...कैफेटेरिया में गया तो देखा की पूरा टेबल तरह तरह के ब्यंजनों से भरा हुआ था...कोई खड़े खड़े कोई बैठे सब लपेटने में लगे हुए थे....और साथ में खाने का मज़ा भी कुछ और ही होता है....मज़ा आ गया..... पनीर, दाल मखनी , हाथ से बनी कोमल रोटी, सब्जी, अचार.......वाह ! मज़ा आ गया....वाह.! सभी ने पेट भर के खाना खाया....!
कुल मिलाकर वेलंटाइन डे शानदार रहा....! अब जून का इंतज़ार है ...क्यूंकि दूसरा वेलेंटाइन डे 12 तारीक ब्राज़ील में मनाया जाता है.....14 फ़रवरी को पूरे विश्व में और १२ जून को ब्राज़ील वाले पागल होते हैं ....उस दिन फूल और गिफ्ट एक दुसरे को देते हैं प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी या अन्य लोग.........ब्राजील मनायेगा तो हम भी मना लेंगे.....वैसे भी हम हिन्दुस्तानी दूसरों का फेस्टिवल बड़े चाव से ....शौक से...और गर्व से मनाते हैं.....है की नहीं ......? एक बार फिर से सब को हैप्पी वेलेंटाइन डे......2010 !
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