हमारे पड़ोसी देश पकिस्तान को आज़ाद हुए लगभग ६० साल हो गए हैं लेकिन आज़ादी से आज तक उसने भारत के नाक में दम कर रखा है, चाहे वो राजनीतिक बयान बाज़ी हो, दिपक्षीय वार्ता हो, या फ़िर किसी अन्य बात पर अपना पक्ष रखने की बात. मौका देखकर पलटने में वहा के हुक्मरान समय जाया नही करते . पाकिस्तान का बयान बाज़ी का स्तर बहुत ही निम्न स्तर का रहा साथ ही बहुत गैर जिम्मेदाराना बयाहार रहा है। पाकिस्तान में राजनीतिक नेत्रत्व हमेशा से ही हाशिये पर रहा है इसमे कोई शक की कोई गुंजाईश नही है।
इतनी जल्दी और तत्परता वह अन्य चीजू में नही लगाता जितनी भारत के साथ आपसी विचार विमर्श, कूटनीतिक सम्बंद्हू की बातू पर. लेकिन अहम् बात यह है की आज के समय में जब राजनीतिक के बयानू को अन्तराष्ट्रीय पटल पर बड़े ध्यान से सुना जाता हो या लिखा जाता ह. ऐसे में जब सुचना तंत्र के युग में ये बाते बहुत महत्वा रखती है. पहले ऐसा नही होता था. महीनू आम जनता तक पहुचने में लग जाते थे तब तक उस बात का कोई अर्थ नही रह जाता था. पाकिस्तान की हालत हमेशा से दुबिधा से पीड़ित मरीज़ की तरह रही है और यह वह ख़ुद भी अची तरह जनता है. प्रधानमन्त्री और रास्त्रपति दोनू ही अलग अलग बयान जारी करते हैं. भूत्पूर्ब प्रधानमन्त्री ,अन्य जनरल के बयान अलग होते हैं. ऐसे में प्रश्न यह उठता है माने तो किसकी माने और प्रमुख बात क्या माने. इस लिए उसकी हर बात पर प्रश्न चिन्ह लगा रहता है. अभी कुछ दिनू पहले की बात है भुत्पूर्ब प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ ने माना की कस्साब पाकिस्तानी है और अबुसके दो दिन बाद बयान आता है की नही ऐसा नही है. कत्तार्पंधियौं और सेना के दबाव में आकर से ऐसा कर बैठे. आई एस आई चीफ को भारत भेजने के मामले में भी ऐसा ही हुआ. ऐसे में इन लोगू पर कितना यह्कीन किया जाए. जो देश की बागडोर सँभालने की बात करते हैं, उनका यह हाल है. छोटे बचू की तरह अपने बयानू को कुछ ही पल में बदल डालते हैं.
सबसे बड़ी समस्या वह सेना की रही है फ़िर भी कत्तार्पन्थियौं जो अब सीधे सरकार पर हावी हो रहे है. सेना की वह एक तरह से सरकार चलती है. और सेना आधे से ज्यादा फैसले ख़ुद तय करती है. सबसे बड़ी बात और ख़ास यह है की सेना पकिस्तान की विदेश नीति तय करती है. हुकूमत या आम जनता तो सिर्फ़ मूकदर्शक बनी रहती है. सेना के फैसले हमेसा कठिन और ताना तनी वाले होते हैं. सेना हमेसा युद्ध की सोचती है. वैसे भी वह की सेना ४ बार मार खा चुकी है हमसे. इसी बौखलाहट में वो आज तक है. वह क्योँ भूलेगी उस मार को. नतीजा यह रहा की परोक्ष युद्ध थोरा हुआ है उसने. आई एस आई और अन्य जिहादी गुट जैसे लश्कर,जैश,इख्वान,ज़माद उल दावा हो या अन्य कोई गुट सब एक जबान बोलते हैं वो है जिहाद. यह जिहाद पता नही कौन से किताब में लिखा है की निर्दोष निह्ठे लोगू को कत्ले आम कर दो. उनकी रोज़ी रोटी इसी से चलती आई है । भारत के ख़िलाफ़ कम करने में वह पर उनको शाबाशी और ईनाम दिया जाता है. इस तरह की हर्कतू कर वो अन्तराष्ट्रीय पटल पर अपनी कई दफा बेईज्ज़ती करवा चुका है. मगर बेशर्मी की हद होती है जो पकिस्तान और उसके हुक्मारानू, सेना पर लागू कटाई नहिः होती है. वह की आवाम भी जानती है इस तथ्य को लेकिंग वो क्या करे ? आज तक वह की आवाम कत्तार्पन्थियौं, सेना,पुलिस की डर से खुलकर सामने नही आ पाई है.
बयानबाजी या कोई बक्ताब्या सरकार की तरह से आने पर उसका एक महत्व होता है. एक एक सब्द के टोल कर बोला जाता है. उसका एक मतलब होता है. एक शब्द कई लोगू के दिमाग की उपज होती है तब जाकर वह नेता तक पंहुचा है. अंत में नेता के विवेक पर आधारित होता हाही की कितना तोडे-मरोड़े उस बयान को. अधिकतर यही होता है. जो लिखा गया हो या "ब्रीफ" किया गया हो उसी को वो बोले. लेकिन पकिस्तान के हुक्मरानू के बीच ऐसा कुछ नही दीखता. खासकर भारत के साथ सम्बंद्हू को लेकर वह बिल्कुल भी भरोसेमंद नही रहा. इन सब चीजू से आपसी बिश्वास पर शक की निगाह रहती है. जिसकी कोई दावा नही होती है. अमेरिका उसको पूरी कोचिंग देता है बयान बाज़ी की कोचिंग क्योँ नही देता है. उसने अपना उल्लू सीधा कर लिया अपनी सेना को वह पर उत्तारकर. आतंकवाद के नाम पर वो किसी भी देश में घुश जाता है लेकिन अपनी जरूरातू को पुरा करने के लिए. इराक़ ,अफगानिस्तान,वियतनाम में हम उसे देख चुके हैं. वह के हुक्मरान सेना और आई एस आई के अधिकार्यौं से घिरे रहते हैं. कोई रस्त्राध्यक्ष आएगा तो हमारे देश में कुछ और भाषा बोलता है और वह जाकर कुछ और बोलता है पता नही कौन सा मंत्र पढ़ते हैं जो ऐसा जो जाता है. कुल मिलाकर बयान बाज़ी बहुत ही निचले स्तर की रही है पकिस्तान की. आज की पढ़ी लिखी आवाम को समझना चाहिए की उनके लिए क्या जरूरी है क्या नही और ऐसे हुक्मारानू को सबक सिखाना चाहिए । क्यूंकि सब अमन और विकास चाहते हैं खून खराबा नही. ..
सबसे बड़ी समस्या वह सेना की रही है फ़िर भी कत्तार्पन्थियौं जो अब सीधे सरकार पर हावी हो रहे है. सेना की वह एक तरह से सरकार चलती है. और सेना आधे से ज्यादा फैसले ख़ुद तय करती है. सबसे बड़ी बात और ख़ास यह है की सेना पकिस्तान की विदेश नीति तय करती है. हुकूमत या आम जनता तो सिर्फ़ मूकदर्शक बनी रहती है. सेना के फैसले हमेसा कठिन और ताना तनी वाले होते हैं. सेना हमेसा युद्ध की सोचती है. वैसे भी वह की सेना ४ बार मार खा चुकी है हमसे. इसी बौखलाहट में वो आज तक है. वह क्योँ भूलेगी उस मार को. नतीजा यह रहा की परोक्ष युद्ध थोरा हुआ है उसने. आई एस आई और अन्य जिहादी गुट जैसे लश्कर,जैश,इख्वान,ज़माद उल दावा हो या अन्य कोई गुट सब एक जबान बोलते हैं वो है जिहाद. यह जिहाद पता नही कौन से किताब में लिखा है की निर्दोष निह्ठे लोगू को कत्ले आम कर दो. उनकी रोज़ी रोटी इसी से चलती आई है । भारत के ख़िलाफ़ कम करने में वह पर उनको शाबाशी और ईनाम दिया जाता है. इस तरह की हर्कतू कर वो अन्तराष्ट्रीय पटल पर अपनी कई दफा बेईज्ज़ती करवा चुका है. मगर बेशर्मी की हद होती है जो पकिस्तान और उसके हुक्मारानू, सेना पर लागू कटाई नहिः होती है. वह की आवाम भी जानती है इस तथ्य को लेकिंग वो क्या करे ? आज तक वह की आवाम कत्तार्पन्थियौं, सेना,पुलिस की डर से खुलकर सामने नही आ पाई है.
बयानबाजी या कोई बक्ताब्या सरकार की तरह से आने पर उसका एक महत्व होता है. एक एक सब्द के टोल कर बोला जाता है. उसका एक मतलब होता है. एक शब्द कई लोगू के दिमाग की उपज होती है तब जाकर वह नेता तक पंहुचा है. अंत में नेता के विवेक पर आधारित होता हाही की कितना तोडे-मरोड़े उस बयान को. अधिकतर यही होता है. जो लिखा गया हो या "ब्रीफ" किया गया हो उसी को वो बोले. लेकिन पकिस्तान के हुक्मरानू के बीच ऐसा कुछ नही दीखता. खासकर भारत के साथ सम्बंद्हू को लेकर वह बिल्कुल भी भरोसेमंद नही रहा. इन सब चीजू से आपसी बिश्वास पर शक की निगाह रहती है. जिसकी कोई दावा नही होती है. अमेरिका उसको पूरी कोचिंग देता है बयान बाज़ी की कोचिंग क्योँ नही देता है. उसने अपना उल्लू सीधा कर लिया अपनी सेना को वह पर उत्तारकर. आतंकवाद के नाम पर वो किसी भी देश में घुश जाता है लेकिन अपनी जरूरातू को पुरा करने के लिए. इराक़ ,अफगानिस्तान,वियतनाम में हम उसे देख चुके हैं. वह के हुक्मरान सेना और आई एस आई के अधिकार्यौं से घिरे रहते हैं. कोई रस्त्राध्यक्ष आएगा तो हमारे देश में कुछ और भाषा बोलता है और वह जाकर कुछ और बोलता है पता नही कौन सा मंत्र पढ़ते हैं जो ऐसा जो जाता है. कुल मिलाकर बयान बाज़ी बहुत ही निचले स्तर की रही है पकिस्तान की. आज की पढ़ी लिखी आवाम को समझना चाहिए की उनके लिए क्या जरूरी है क्या नही और ऐसे हुक्मारानू को सबक सिखाना चाहिए । क्यूंकि सब अमन और विकास चाहते हैं खून खराबा नही. ..
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