गुरुवार, 1 जनवरी 2009

ये कैसा "हैप्पी न्यू इयर" ?

हमें आजाद हुए आज ६० वर्ष हो चुके हैं,इस देश के लोगू को अन्ग्रेजू का हंटर अभी तक याद है. उसी हंटर का नतीजा है की हम अभी तक अपना नव वर्ष न मनाकर अन्ग्रेजू का "हैप्पी न्यू इयर " मानाने में लगे हुए हैं. ३१ दिसम्बर या फ़िर १ जनवरी को हम साल के अहम् दिन मानते हैं. जबकि इसमे ऐसा कुछ भी नही है. जैसे और दिन होते हैं वैसे ही ये भी है. और न ही कोई प्राकर्तिक बदलाव इन दिनू में देखने को दीखता है. एक सनक है अंग्रेजी कैलंडर शुरू होता है तो अँगरेज़ तो मनाते ही हैं साथ में हम भी उनके पीछे पीछे हो लेते हैं. नक़ल करने की हमारी आदत आज तक नही गई और अब तो यह हर हिन्दुस्तानी के खून में दौर्द्ता है। बात यह नही की यह त्यौहार या दिन नही मानना चैये बात है जब उनका आप लोग मन रहे हैं तो हम अपना क्योँ नही मानते हैं। किसी भी त्यौहार को मानना अच्छी बात है। खुसी किसी भी रूप में मनाई जाए उसकी कोई जगह नही ले सकता है। में यह नही कहता की यह नही होना चैये या फ़िर इसकी आलोचना कर रहा हूँ बल्कि मेरा मन्नना है की आज के युग और पढ़े लिखे भारतीय को अपने त्यौहार मानाने में क्या आप्पत्ति है। हम जितना तरक्की कर रहे हैं उतना ही अपने तौर तरीके भूलते जा रहे हैं। वही चीन, जापान, कोरिया ऐसे मुल्क है जो अपनी संस्कृति का ताना बाना बुनकर आगे जन चाहते हैं ।
अब देखिये नया साल मुबारक हो, हैप्पी न्यू इयर,सेम तो यू कहते कहते हम अपने आप दिमागी रूप से संतुष्ट करना चाहते हैं। क्या यही है हमारा तरीका बोलने का या फ़िर सुभकामना देने का? अंग्रेज्जी कैलेंडर एक जनवरी से शुरू होता है। अंग्रेजियत तो इस पर काम करती ही है और उसे काम करना भी चैये । मगर भारत जैसे पारंपरिक देश को इस पर इतना गर्व होने का क्या औचित्य है। हम ६० साल से आजाद है लेकिन आज तक इस 'हैप्पी न्यू इयर' की संस्कृति को पाले हुए है। और वो भी इतनी बुरी तरह की अपना पराया सब भूल कर। अन्गिनात पैसे फूकते हैं, पार्टी करते हैं, नाचते गाते हैं। न जाने क्या क्या कर बैठते हैं। इस दिन के लिए जबकि हिंदू कालानेंदर शुरू होता है । चैत्र के महीने में लेकिन उस दिन को कोई भारतीय इस तरह तवज्जू नही देता है। ऐसा क्योँ? जबकि हम पूजा पाठ, शादी ब्याह, हवं कोई शुभ काम हुमपने कैलेंडर को देखकर करते हैं। लेकिन उसी कैलेंडर का पहला दिन या नव वर्ष हैप्पी न्यू इयर भूल जाते हैं। ये कहा की मंशिकता है। इस मंशिकता को बदलने की जरूरत है । मैं चाहता होऊं की इस दिन को भी भारतीय अनय फेस्टिवल की तरह पूरी जोश नत्मयता से मनाये। जितना अंग्रेज़ी कैलेंडर के पहले दिन को हम मानते हैं। जिससे इस दिन का महत्व बढे और इसको उसका असली नाम मिल सके ..


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