बुधवार, 28 अप्रैल 2010

गवायिंत का अंदाज

दिन रविवार और जगह बाहिरी दिल्ली का एक सुन्दर गाँव ! रविवार के दिन मेरा वीकली ऑफ था, सुबह में घर से निकला सीधे हमारे बरिष्ठ साथी और पत्रकार भारद्वाज जी के ऑफिस में गया.....कुछ देर बैठने के बाद वो आये और हम दोनूं एक पास ही एक गाँव की ओर चल दिए....मैंने भी सोचा चलो देख आते हैं क्या नज़ारा है वहां का? काफी समय हो गया है उस इलाके में गए हुए.... भारद्वाज जी ने बताया मुझे की किसी का कारज है....उसमे जाना है.....कारज किसी की मौत के बाद उसकी याद में कार्यक्रम किया जाता है...और गाँव और रिश्तेदारों को भोजन किया जाता है....पंडित तो होंगे ही.....खैर....पहुचे वहां तो अजीब-अजीब बातें हुई जिन्हें मैने सोचा कि आपके साथ शेयर करूँ....

गावं में पहुचे तो देख कर सामने दांग रह गए....'व्हाईट हाउस'...तक़रीबन एक हज़ार गज जमीन में बना हुआ तीन मंजिला व्हाईट हाउस...क्या डिजाइन था....उसकी एक बालकोनी कुछ महिलाएं कड़ी थी और गुफ्तुअगु में मशगूल थी....हमने गाडी बहार सड़क किनारे कड़ी की और गेट के अन्दर घुसे तो देखा सामने बड़ा टेंट लगा हुआ है और कुछ लोग नीचे बैठकर खाना खा रहे हैं, दाई और प्लाट के कुछ बुजुर्ग लोग मुढे में बैठे हैं और हाथ में शरबत के गिलास के साथ गर्मी को दूर कर रहे हैं. भरद्वाज जी सीठे वही गए,एक दो गाँव वालों को राम राम कह कर...ये क्या ? जब हमने देखा वहां बैठे बुजुर्ग शरबत नहीं बल्कि अंग्रेजी शरबत पी रहे थे. मुढे के साथ में अंग्रेजी शराब की बोतल रखी हुई थी और हाथ में प्लास्टिक के ग्लास में शरबत....जिससे किसी को बोतल भी नहीं दिखे और लोग समझेंगे कि शराब नहीं बल्कि शर्बात पी रहे हैं...हमारे जानकार एक अंकल भी उनमे से...हमें देख कर तुरंत खड़े हो गए और स्वागत किया....कहते हैं ना कि गाँव के बुजुर्ग बढे सयाने [समजदार] होते हैं वही हुआ....सभी ने शरबत कि ग्लास नीचे रख दी...एक ग्लास मुझे भी दे..मैंने भी शरबत समझ कर पी लिया, शुक्र है शराब मिक्स नहीं थी उसमे....खैर आगे गए भरद्वाज जी बोले चलो भोजन कर लिया जाये...भारद्वाज जी बोले कहाँ बैठें मैंने कहा कि नीचे बैठते हैं और खा लेते हैं, लेकिन अंकल ने कहा कुर्सी आ रही है उसमे बैठ के खायेंगे...उन्हूने आवाज दी अरे सुनिओ भाई कुर्सी लाना...दो कुर्सी आ गई, दोनू में भरद्वाज जी और में बैठ गए....एक और मंगाई गई खाना रखने के लिए जो डाइनिंग टेबल का काम कर सके....फिर एक और मंगाई जो अंकल को बैठा सके....कुल मिला कर कुसियाँ लाने और बैठने का दौर चलते रहा और हमें आंखिर कार कुर्सी मिल भी गई.

अंकल ने आवाज दी पूरी लाइओ भाई ! गरम गरम लाना ! एक आदमी भागा आया और एक टोकरी में पूरी ले आया...बोला 'ताऊ' ताती हैं, गरम नहीं हैं.......उफ्फ्फ ताती और गरम तो एक ही होते हैं...लेकिन वो आदमी सच्चा था डबल न समझ कर सिंगल दिमाग लगाने वाला...इसलिए उसने जो था वो बोल दिया...शहरी सब्द गरम को नहीं अपना पाया और न ही बोला....खैर ! अच्छा लगा ये सुन कर...अभी लोग दिल्ली जैसे बड़े शहर में लोग कितने सीमित विचार धारा के हैं. उनके लिए सरकार के विकास और तरकी के मायने ज्यादा नहीं हैं. ...एक प्लेट में उसने 7-8 पूरी रख दी, ताती ताती ...और फिर सीता फल कि सब्जी पूरी प्लेट भरकर...और बोरिंग आलू कि भी...इससे पहले 4 लड्डू रखे एक हट्टे कट्टे युवक ने, कहा ताऊ लाड्डो खा ले....लाड्डो भी बड़े बड़े थे..मैंने भी 2 खा दिए....देखि जाएगी.....[हरियाणा में कारज में खाने से पहले मीठा दिया जाता है और लाड्डो का प्रचलन खूब है] ..1 भरद्वाज जी ने और अंकल ने नहीं खाए...वो विदेशी सरबत में ब्यस्त में थे.....मीठा और रंगीला कर देता उनको...समझदार थे...मुझे बताया गया कि सीताफल कि सब्जी स्वादिस्ट है..खासकर तौर पर बनाने वाले को बुलाया गया है...चखी तो सच में स्वादिस्ट थी...खाना खाया हमने सब सब्जी और पूरी सहीद कर डाली पेट के अन्दर...तीनों ने..! अब पानी कहाँ मिलेगा..देखा तो आस पास कुछ नहीं ...बहार गए गेट के तो देहा सामने 3-4 ड्रम रखे हुए हैं प्लास्टिक के...और कुछ बच्चे पानी निकालने में लगे हुए हैं...वो भी प्लास्टिक कि बोतल काट कर बनाए गए बर्तन से....वाह क्या आईडिया था....

बारी थी अब उनसे मिल लिया जाए..जिन्हूने ये 'कारज' पार्टी रखी है....जी हाँ उन्हूने मुझे भी पहचान लिया...राम राम हुई दोनू तरफ से....पता लगा इन जनाब ने अपने पिता जी का जिन्दा जी कारज कर डाला....लो कर लो क्या करोगे अब ! जी हाँ जिन्दा जी...श्राद सुना है लकिन कारज .....ऊपर से मूर्ति और बनवा दी उसे प्लाट के एक कोने में....वाह...पता लगा कि 14000 पत्तल जो समां चुके हैं लोगों के पेट में बाकी और आयें, ये कोई गारंटी नहीं है.....सुनने में आई कि कोई जमीन में हाथ मार लिया....कुल मिलाकर पौ बारह ! जनाब करते क्या हैं ? लोगों को यात्रा पत्र देते हैं....बोले तो डीटीसी में कंडक्टर हैं....जी हाँ......गजब के इंसान ! पेशे से कंडक्टर.....और पार्ट टाइम प्रोपर्टी डीलर वो भी सरकारी/गैर सरकारी जमीन के....जो कहीं न बेच पाए वो ये बेच खायेंगे...और कोठी सफ़ेद रंग कि, इटालियन मार्बल से जड़ी हुई ....गाँव का ताज महल कहें तो बुरा नहीं... जो लोग देखते रह जाए.....कुल मिलाकर गवायंत कि बात ही कुछ और है...लोग गाँव में रह कर भी धन दौलत के साथ तरक्की करने में लगे हुए हैं....कुल मिलाकर गाँव का दौरा अच्छा रहा और काफी कुछ सीखने को मिला..अच्छा लगा सब कुछ देख कर.. ...

1 टिप्पणी:

anees alam ने कहा…

अनीस आलम राजस्थान/
good experience,वेसे गाँधी जी ने कहा था की भारत की आत्मा गाँव में ही बस्ती है

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