एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी
दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी
ख़ामोशी का हासिल बही इक लम्बी सी ख़ामोशी ह
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
[गुलजार की कलम से ]
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी
दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी
ख़ामोशी का हासिल बही इक लम्बी सी ख़ामोशी ह
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
[गुलजार की कलम से ]
1 टिप्पणी:
सर आपकी लिखावट का जवाब नहीं वाकी इ बहोत ही सुन्दर, लिखावट आप आइसे ही आम लोगोके दिलो तक पहुंचे यही शुभकामनाये शिर्डी वाले साईं बाबा की चरनोसे , आप इससे बड़ी कामयाबी की बुल्लंदी पे पहुचे यही प्रार्थना हम साईं से कृते हैं सर ,
एक टिप्पणी भेजें