शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

लॉकडाउन में जिंदगी अगंरेज की...

यह देख रहे हैं न आप लोग...यह कुत्ता है...
गलियों में आवारा घूमता रहता है, इसका नाम मैंने रखा है "अंगरेज".  अंग्रेज इसलिए क्योँकि इसकी आँखें भूरी हैं अंग्रेजी में ब्राउन कहते हैं जिसे. अभी चंद महीनों का है. इसके भाई-बहन थे, हमारे गेट के आगे, गली में उत्पात मचा के रखते थे. यह अंगरेज उनमें से इकलौता बचा है अब.
अंगरेज रात में 
इसकी मम्मी को खुजली वाली बीमारी हो गयी. इसलिए उसको कोई पसंद नहीं करता न इंसान न कुत्ते. इसकी फोटो इसलिए खींची मैंने क्योँकि इसने जिंदगी को बहुत नजदीकी से देखा और कई मौतों को दरकिनार कर जिंदगी बचाई अपनी. इसने अपने भाई बहनों को अपने सामने मरते देखा, गायब होते देखा. कहते हैं न सबसे पहले इंसान जिन जानवरों के बीच रहा या इंसान ने जिन जानवरों को अपने पास रखा उनमे से कुत्ता भी था. घोड़ा पहला था. इसका एक भाई तो इसी के रंग का था अंग्रेज टाइप ..ट्रैक्टर आया कुचल कर चटनी बना कर..10 मीटर आगे चला गया. फिर ब्रेक लगे रुक गया..क्वाव क्वांव एक दो बार हुई बस..तब तक काम तमाम हो चुका था. यह अंग्रेज देखता रहा, भटकता रहा मौत को अपने मन में रख कर.थोड़ी देर पहले खेलते थे साथ लेकिन अब नहीं है वह दूसरा अंग्रेज. 3 ठण्ड से मर गए. एक को दुसरे कुत्तों ने रात के 3 बजे नोंच नोंच कर फाड़ डाला.....सर अलग धड़ अलग. जब तक गली में इंसान निकला तब तक काम तमाम हो चुका था...थर्ड क्लास शिकारी कुत्ते खिसक चुके थे मौका-ए-बारदात से. लेकिन उस रात की दर्द की दहाड़ मेरे दिल में अभी भी जिन्दा है...पछतावा है...बचा नहीं सका उस बेचारे पिल्ले को. सबसे अहम बात देखिये, कुत्ते खुद कुत्ते को काट रहे हैं..क़त्ल कर रहे हैं. वो भी नवजात बच्चे को. कुछ महीने का पिल्ला. कोरोना तो इंसानों को आसानी से मार रहा है. इनसे बढ़िया कोरोना....
अंगरेज दिन में 
खैर,अब बचा है यह अंगरेज. इसको भी कई कुत्तों ने हमला किया कई बार, लेकिन इधर उधर घुस घुसा कर बच निकला...अभी जी रहा है जिंदगी अपनी. कितने दिन जियेगा पता नहीं. कभी कभार मैं भी एक दो निवाले डाल देता हूँ. कल रात को फोटो खींच रहा था इसकी, तो गर्दन इधर उधर कर रहा था, इसे पता था यह इंसान कुछ कर रहा है मेरे ऊपर...फिर आज सुबह गली में उजाले में खींची फोटक तो, पूँछ हिला रहा था..शायद फिर, समझ गया फोटक खींच रहा है यह इंसान करके. आज ज़िंदा है बेचारा...ये अंग्रेज भी इसलिए आ जाता है क्योँकि हमारे घर के गेट के आगे दुकान हैं, रोज लोग आते हैं क्याप क्याप ले जाते हैं ये देखता रहता है,कोई इसको पूछता नहीं है. कोई इसको नहीं खिलाता क्याप-क्याप.. इसकी मां को खुजली हो गयी..उसको न लोग देखते हैं, न खाना देते हैं, न कुत्ते पसंद करते हैं. जब देखो उसको काटने को दौड़ते हैं. वो भी लॉक डाउन में, ऐसी फंसी है जैसे रजिया डाकू के बीच फंस जाती है...अंगरेज जी रहा है..इसे क्या पता कोरोना वायरस क्या होता है ? इंसान का हाल भी आजकल इस जैसा तो नहीं, लेकिन इनसे भी अच्छा नहीं है..लेकिन कुत्तों की जिंदगी के किस्से भी अजीब हुए. यह भी एक हिस्स्सा था, मेरी आँखों देखी. आपके बीच शेयर कर रहा हूँ. जीता-जागता किस्सा ठैरा...बल !

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